मंगलवार की शुरुआत: भीड़, रंगरोगन और दर्शन
मंगलवार तो बड़ा ही भारी निकला प्रियंवदा ! सोचा नहीं था कि दिनभर में इतनी भीड़ का सामना करूँगा। हाँ ! आज तो मेरे प्रिय वाछटीये ने भी हल्की-फुलकी चोटें खायी है।
जब वाछटीया प्यासा था और रास्ते थकाने वाले
आज सुबह जगन्नाथजी के वाहन पर रंगरोगन चालु था। रथ तो खड़ा हो चूका है, बस नयी फूलोंवाली डिज़ाइनिंग बना रहे थे पेंटर साब। मैं दर्शन करके निकला, सीधे दूकान पर। दूकानदार से बातों बातों में कल रात की बात आ गयी.. कल रात घर जाते हुए भारी समस्या हो गयी। मेरे वाछटीये (मोटरसायकल) ने प्यासा होने की बात तो बता ही दी थी। तो रस्ते में ही पड़ते पेट्रोलपंप पर तेल भरवा कर घर निकल जाऊंगा, यही सोचकर ऑफिस से निकला। हाइवे पर चढ़ते ही भारी ट्रैफिक से पाला पड़ गया। ट्रक्स के बिच बने गलियारे से जैसे तैसे कर के आगे बढ़ता रहा, लेकिन पेट्रोलपंप तक तो नहीं ही पहुँच पाया।
सुमसान रास्ते और बारिश की कच्ची गलियाँ
सोचा इस रस्ते से तो नहीं जा पाउँगा। एक और रास्ता है, बड़ा ही सुमसान है। उस रस्ते पर तो कोई गलती से लिफ्ट मांगने खड़ा हो तो भी गुजरने वाला भूत के भ्रम में फंस जाए - ऐसा सुमसान रास्ता है वह। इस ट्रैफिक जैम से मैंने मुँह और मोटरसायकल दोनों मोड़ लिए। एक कच्ची सड़क से सोचा घर चला जाऊं। लेकिन दोपहर को हुई बारिश ने कमर तक गढ्ढे जन्माए थे, उस कच्ची सड़क पर। फिर मैंने अंततः वही सुमसान सड़क पर ही, जो होगी देखि जाएगी सोचकर, अपने वाछटीये को दौड़ा दिया। और कोई डर नहीं था, बस कहीं प्यास के मारे वाछटीया खड़ा न हो जाए, यह ही भयस्थान था मेरे लिए। बड़ा ही लोंगकट लेकर आखिरकार घर पहुंचा था।
भूख, वापसी और दोपहर का ट्रैफिक संग्राम
दोपहर तक आज गजा ऑफिस पर था नहीं। और दोपहर को लग आयी भूख। तो सोचा घर चला जाया जाए। निकल तो गया। लेकिन उसी पेट्रोल पंप तक पहुँचने में फिर से भारी ट्रैफिक जैम। इस बार तो हॉर्न बजा-बजा, आडी-टेढ़ी करते हुए, एक दो जगह ट्रक्स के बोनेट से अपने वाछटीये के शीशे का स्पर्श कराते हुए, हाइवे चढ़ ही गया। आगे कहीं जैम नहीं था, लेकिन वापसी वाले लेन पर करीब ३-४ किलोमीटर का जैम था। भोजनादि से निवृत होकर ढाई बजे वापिस ऑफिस के लिए निकला, लेकिन लगभग आधा घंटा लग गया केवल पांच किलोमीटर काटने में।
पुरानी पोस्ट्स, नयी थकावटें
वैसे तो दिनभर आजकल अपनी पुरानी पोस्ट्स पढ़ता हूँ, और जरुरत अनुसार कुछ सुधार करता हूँ। इसी चक्कर में नया कुछ पढ़ने में आता नहीं है, और लिखने में भी दिनचर्या के सिवा कोई बढ़िया बात आती नहीं है। वो कल्पना वाला अश्व फिर से एक बार बेलगाम हुआ कहीं चला गया है। शायद दो दिन के लिए ही वापिस लौटा था। फिर जब अनुभव ही लिखने है, तो एक बात मैं भी बेलगाम होकर लिख देता हूँ। बस थोड़ी मर्यादा का पर्दा आड़े रहेगा।
और फिर वो नज़रों की भेंट...
प्रियंवदा ! कुछ दिनों पहले, मेरे लिए वो "घर से निकलते ही कुछ दूर चलते ही.. रस्ते में है उसका घर.." वाला गीत सच हो गया। लेकिन उससे थोड़ा विपरीत। प्रियंवदा ! समय बीत जाने के बाद अक्सर नजरें नहीं मिलती। अगर नजरें टकरा भी जाए, तो कुछ ही मिली-सेकण्ड्स में जैसे विस्फोट हुआ हो, और उस प्रकाशपुंज से आँखे चौंधिया गयी हो, उस तरह नजरें झुक जाती है। उस दृष्टिपात से मेरे कदम डगमगा गए थे। कुछ देर तो लगा जैसे सारी ही संवेदना अपना कार्यक्षेत्र छोड़ कहीं चली गयी है। सारे विचार एक केन्द्री हो गए थे। लेकिन यह सब सेकंड के दसवे हिस्से तक ही रहा। तुरंत ही सारा होश लौट आया।
उसने भी क्या अनुभव किया होगा?
मैं अपने फोन में देखते हुए, जानबूझकर नजरें चुराता हुआ आगे बढ़ गया। पीछे मुड़कर देख भी नहीं पाया था। क्या देखता मैं? और भला क्यों? जीवन की दिशाएं बदल चुकी है, ढंग बदल चूका है, परिस्थितियां भी। लेकिन अब भी मेरे मन में यह ख्याल जरूर उठ खड़ा होता है, कि क्या उसने भी ऐसा ही कुछ अनुभव किया होगा? क्या उसने भी पीछे मुड़कर नहीं देखा होगा? भूतकाल में भी नहीं? वो अचानक से हुई उस भेंट ने मुझे तो झकझोर दिया था, फिर उसके कदमों में अलग ही स्थिरता मैंने क्यों देखी? वो तुरंत ही नजरें हटाकर नजरअंदाज करना, इतना आसान है क्या? फिर स्वतः ही मुझे लगता है, यही दुनियादारी है.. यहाँ हर कोई अलग है, सबकी अलग राह है, सब की अपनी मंजिल..!
शुभरात्रि।
(२४/०६/२०२५)
|| अस्तु ||
"और पढ़ें"
पढ़िए दिलायरी, जहाँ यादें, बारिश और इंतज़ार बुनते हैं आत्मसंवाद।
चुम्बन और चुम्बक : आकर्षण का विज्ञान और भावना..
प्रिय पाठक!
यदि आपने कभी ट्रैफिक जाम में उलझे मन और किसी अचानक मिली झलक से काँपते हृदय को महसूस किया है, तो यह दिलायरी आपके लिए है।
इसे पढ़ें, सोचें, और प्रियंवदा को याद करते हुए शेयर करें।
Like करें, Comment करें और अपने दोस्तों को भेजें।
#दिलायरी #प्रियंवदा #BarishMeinDiary #TrafficJamThoughts #HindiBlog #BhaavnaoKaSafar #BheedAurBhent #MonsoonMemoirs #BikeWaliDiary