"चाँद, प्रेम और रविवार: एक बेरोज़गार दिल की दिलायरी" || दिलायरी : ०१/०६/२०२५

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"रविवार – एक ओफिस वाले बेरोज़गार का बेस्टफ्रेंड या सबसे बड़ा विलेन?"

क्या ही रविवार के कहने प्रियंवदा..! हर सप्ताह आता है, और रोजमर्रा को तहसनहस करके चला जाता है। लगातार नौकरी करने वालो को रविवार बड़ा प्यारा लगता है, लेकिन मैं कहाँ नौकरी करता हूँ, मैं तो मेरे शेठ से बस ऑफिस में बैठने की पगार लेता हूँ, जो भी काम आता है, आधा गजे के सिर, और थोड़ा बहुत बुधे पर डाल देता हूँ। और मैं.. मैं बस कुछ न् कुछ सर्फिंग करता रहता हूँ। यही मेरी जिंदगी है, पता नही मुझे क्या चाहिए..? और मैं क्या क्या सर्फिंग करता रहता हूं, क्या क्या यूट्यूब पर सुनता रहता हूँ। इसी कारण से ख्याल आता है, किसी एक ही दिशा में दौड़ना कितना आवश्यक है.. कभी फ़िल्म देख ली, कभी कुछ पढ़ लिया, कभी किसी का पॉडकास्ट सुन लिया, और वर्ल्ड-अफेयर्स? वो मेरे कहाँ काम आते है, पता नही। लेकिन मैं फिर भी सुनता रहता हूँ। न ही मुझे चीन कहीं काम आना है, न ही अमरीका। रसिया से मुझे कौनसा क्रूड मंगाना है, लेकिन मैं सुनता रहता हूँ।


Chaand se Chatting Karte Dilawarsinh..!

"जब ऑफिस सिर्फ सर्फिंग का ठिकाना बन जाए.."

खेर, आज भी सुबह साढ़े सात को जाग गया था। कभी कभी तो लगता है, मेरी कोई गलती पर भी साढ़े सात को ही आंखे खुलेंगी..! आज पहली तारीख थी, काफी सारे हिसाब किताब थे। समय से ऑफिस पहुंच गया। हमारी गैंग का सरदार कहीं बाहर गया है, तो वित्त वितरण का सम्पूर्ण भार मुझ पर ही था। और जब मुझ अकेले पर ही यह कार्यभार होता है तो मैं बड़ी जल्दी से निपटा देता हूँ। एक तो वैसे ही मार्किट में लेबर की कमी है, तो हमारे यहां भी भारी सहूलियतों की डिमांड करने लगी है लेबर। कोई बोलता है, ठंडे पानी का प्लांट लगवाओ, कोई कहता है पूरे प्लाट में पानी छिडकवाओ, तो कोई ज्यादा मजदूरी मांगने लगे है। सबको 'कल' की गोली देकर साढ़े बारह तक मैं फ्री हो गया था। 


"पहली तारीख और पगार – एक स्क्रैच कार्ड की कहानी.."

पहली तारीख मतलब एक महीने का मेहनताना मिलने वाली तारीख.. हालांकि यह तो एक से सात दिनों की वेलिडिटी वाला स्क्रैच कार्ड है। लेकिन अपने पास इस स्क्रेच कार्ड का हैक है इस लिए अपना काम चल जाता है। मैं अपना काम तो निकलवाता ही हूँ, और साथ ही गजे का भी..! एक डेढ़ बजे तक तो आज घर पहुंच गया था। तीनेक बजे तो जेब का भार अनुभव होने लगा। तो थोड़ा बोझामुक्ति अभियान में लग गया। अपनी संस्कृति में ब्राह्मण से अधिक महत्व भांजे-भांजी का है। ऐसा कहते है कि सो ब्राह्मणों को भोजन कराओ, या एक भांजे को..! दोनो बराबर है। पांचेक बजे भाणीबा को लेकर मार्किट चला गया। बढ़िया बढ़िया कपड़े वगेरह की खरीदारी करवा दी, हुकुम के लिए मेडिसिन्स, कुँवरुभा के लिए स्कूल बैग, और फिर घर लौट आए।


"बादल, सूरज और चाँद – आज का आकाशीय महाभारत.."

आज दिनभर बादलों से सूर्य ने चीरफाड़ की है। कभी बादल घेर लेते, तो कभी सूर्य अपना ताप दिखाता.. कभी लगता कि आज तो सूरज को शाम तक किडनैप करके रखेंगे बादल, तो फिर थोड़ी देर में पवन देव उन बादलों को खदेड़ देते.. भारी समरांगण के बाद शाम को सकुशल सूर्य अपनी क्षितिज को पार कर गया, लेकिन बादल, वे अब भी आसमान में कोई व्यूह रच रहे है। चंद्र का बादलों से शायद कोई शांति समझौता है। वह मुक्त गगन में ऐसे विचर रहा है, जैसे कोई मुग्धा अपने प्रेमभुवन मे। अभी कुछ देर पूर्व ही, सूर्य के सेनापति वायुदेव ने अपनी शक्तियों से सारे व्यूह का घेरा तोड़कर बादलों को भगा दिया है। और भागते बादलों ने जाते जाते गिनती के दो बूंद आंसू बहाए। 


"चाँद, प्रेमी और कवि – सबका shared crush..!"

प्रियंवदा? इस चंद्र को देखते हुए सोच रहा हूँ? इसे साहित्यकारों ने इतना महत्व क्यों दिया है? खासकर प्रेमियों ने? कभी किसी प्रेमी ने यह क्यों नही कहा कि "सूर्य सी महबूबा हो मेरी.." वो चांद सी महबूबा ही कहता पाया जाता है। भले ही चांद इतना ऊबड़खाबड़ ही क्यों न हो..! स्वयं से तेजहीन, और परप्रकाश पर निर्भर होता है तब भी। कोई नही कहता कि "सूर्य सिफारिश जो करता हमारी.." या फिर "ये रवि सा रौशन चेहरा.." शायद इस लिए की भरी दोपहरी के सूर्य से कोई भी आंखे नही मिला पाता, लेकिन आधी रात को चांद से नजरें मिला सकते है। चांद शीतल है, और प्रेमी तप रहा है, तपता हुआ शीतलता की ही तो कामना करता है। दिनभर जिसने मजदूरी की है, वो प्रेमी चंदन जब रात को अकेला होता है, तो चांद में अपनी आशिक़ी खोजता है.. जैसे उसकी महबूबा भी जस्ट अभी अभी बर्तन मांजकर उसी चांद में अपने चंदन को देखने आई हो।


"कवि और चाँद – एकतरफ़ा प्यार की ग्लोबल गैंग.."

मुझे तो यह समझ नही आता कि जो चांद खुद अधूरा होता है, उससे लोग अपने प्रेम को पूरा करने की मांग करते है.. वही बात हो गयी कि जोमैटो वाले से स्विगी वाले का नंबर मांगना..! यह नवरे आशिक, चांद को केंद्रबिंदु मानकर चारोओर चांदनी से लेकर सितारों को भी घसीटते हुए दो टके की शायरी लिखते है..! और 'फंगस फलानवी' बने सोसयल मीडिया पर डालते है। मेरे जैसे वाहियात नवरे वाहवाही भी करते है, क्योंकि बदले में मुझे भी तो मेरी पोस्ट्स पर लाइक कमेंट चाहिए..! एक हाथ ले, दूसरे हाथ दे.. तू मुझे बापु कह, मैं तुझे राष्ट्रीय शायर कहूंगा..! हाँ, दिनभर जले को चांदनी शीतलता देती है, लेकिन कुछ लफंगे लवरिये तो इस चांदनी को भी नही बख्शते..! चांदनी से भी 'गू-फक्त-गू' कर बैठते है। फिर यह चांद आईना भी बनता है, प्रेमिओ का आईना। जवाब नही देता, लेकिन यह लोग लगे पड़े अपनी सुनाने में.. उसका चेहरा चांद जैसा है, उसके बिना चांद भी सूना लगता है.. कपोल कल्पना.. चांद खुद अधकटा है आजका।


"चाँद से मोहब्बत या उसकी मजबूरी?"

ऐसे ही नही लिख रहा हूँ यह सब मैं, अधकटा चांद मेरे समक्ष खड़ा है आसमान में। वो कुछ बोलता नही है, इसका मतलब यह थोड़े है कि हम बेरहम हो जाए.. वो बेचारा अकेला कितनो की महबूबा को संदेशा पहुंचाने जाएगा? चांद है वो, डाकिया नही। लेकिन कुछ महत्वाकांक्षियो ने चांद पर भी अपना स्वामित्व व्यक्त किया.. जैसे चांद इनके घर का चौकीदार हो..! कोई सदाबहार रोतलु शायर चांद को देखकर कोई विरहगीत लिखता होगा तो चांद भी सोचता होगा कि यह फिर आ गया, शायद इसी लिए कई बार चांद जल्दी आसमान छोड़ देता है। कभी कभी तो दिन में भी चांद इसी लिए दिखता है, कि रात को तो यह शायर-कवि लोग उसे तरह तरह के नाम से चिढ़ाते है.. कोई प्रियतमा, कोई प्रेयसी, कोई सखी, कोई प्रियंवदा कह देता है उसे.. नासा और इसरो के उपयोगी ऑब्जेक्ट चांद को कवि अपनी महबूबा मानकर लंबे-लचक काव्य लिखता है। दिन में सूर्य की साक्षी में मुस्काई अपनी प्रेयसी की मुस्कान को, कवि फिर भी चांद या चांदनी से जोड़ देता है।


चांदनी चौक की टिकिट लेकर कवि चांद तक चला जाता है अपनी कल्पनाओं में.. इसको महंगाई कैसे परेशान कर सकती है? मुझे तो लगता है कि, किसी दिन चांद ही कवि को तमाचा मारकर कहेगा कि, 'भाई, थोड़ा सूर्य पर भी लिख ले, मुझे नींद लेने दे रात को।'


"शुभरात्रि, चाँद... और प्रियंवदा के नाम एक खामोश सलाम.."

नींद प्रियंवदा.. अब मुझे नींद आ रही है। चांद को वही रहने दो, आशिकों की उपलब्धि से ऊपर.. बहुत दूर आसमान में… सितारों से घिरा हुआ, लेकिन अकेलेपन को एन्जॉय करता हुआ.. अपन.. कल मिलेंगे ना, नए पन्ने पर.. तब तक के लिए,

शुभरात्रि।

(०१/०६/२०२५, रात्रि के ११:११)


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