"एक थकी हुई सुबह, कुछ उलझे लम्हे और नींद की एक झपकी" || दिलायरी : ०२/०६/२०२५

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सवेरे की बेचैनी और तीन बजे की जाग

सुबह से कुछ ख़ास किया नहीं है, न ही काम, न ही  कुछ पढ़ना लिखना..! सुबह तीन बजे आँखे खुल गयी थी और फिर चार बजे नींद आयी..! स्वास्थ्य सम्बन्धी पीड़ाओं से ग्रसित होने लगा हूँ प्रियंवदा। सुबह तीन बजे CHATGPT से सलाहें ले रहा था। नींद के लिए उसने एक सलाह दी, तीन सेकंड में सांस खींचो, चार सेकण्ड साँस रोको, और छह सेकंड तक छोडो..! और यह कीमिया काम कर गया। चार बजे आँख लग गयी।





CHATGPT की साँसों वाली सलाह

सुबह वही साढ़े सात को उठा, तैयार हुआ, और नौ बजे ऑफिस। लेकिन ऑफिस पर भी भारी असमंजस में रहा, डॉक्टर के पास जाऊं या नहीं। एक पहचान वाले डॉक्टर से फोन पर बात की, वह परसो आएगा। इस मामले में गजा भारी हिम्मती है। बोला नींबूपानी पियो। एक-एक ग्लास गटक गए। एक तो वैसे ही तबियत लूस थी, और एक लेबर बहस करने लग गया मुझसे। दोपहर को सो गया लगभग आधे घंटे की एक बढ़िया झपकी ले ली। लेकिन बहादुर ने जगा दिया। सोते हुए आदमी को पानी देने आया था वो.. 


जूते की तलाश और खाली हाथ लौटना

खेर, दोपहर को मार्किट का कुछ काम था, मैं और गजा चले गए। फिर सोचा लगे हाथो जूते भी खरीद लेते है। चले गए केम्पस में। इनकी कुछ अलग ही डिज़ाइन है। मुझसे एक पसंद आया था, लेकिन वह छोटी साइज का था। खाली हाथ लौट आए ऑफिस पर। अभी भी लिखने की जरा इच्छा नहीं है। बस खिंच रहा हूँ इसे। सोचता हूँ फिर से दिनचर्या में एक निश्चित बदलाव करूँ। लेकिन हो नहीं पाता है। 


गजा की हिम्मत, सलाहें और एक नॉर्मल बीपी

शाम तक आज परेशान ही रहा हूँ। चिंताएं बड़ी घेर लेती है मुझे। यह मैं जान चूका हूँ, मन बड़ा ही कमजोर है मेरा। हाँ ! वस्तुतः स्वीकारना मुश्किल हो जाता है। लोग तरह तरह की सलाहें देते है। मैं मान भी लेता हूँ। अभी अभी ब्लड प्रेशर चेक करवाया है। जो कि गजे के विश्वास की तरह नॉर्मल ही आया। गजा बड़ा होंसला बंधाता है। खेर, अभी कुछ भी लिखने का मन नहीं है। 


बस विदा दो, कल मिलेंगे, नए पन्ने पर।

शुभरात्रि। 

(०२/०६/२०२५, १८:२३)

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