"झूठ बनाम सत्य: प्रियंवदा को लिखी एक दिलायरी" || दिलायरी : ०६/०६/२०२५

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झूठ की लंबी उम्र और सच की तिल-तिल जलती आग



अयोध्या, रावण और कर्ण: इतिहास के झूठ

    "प्रियंवदा ! यह बात तो तय ही है, कि झूठ सच से ज्यादा अच्छी जिंदगी जीता है। अजीब है न? लेकिन सच है। वही.. जिसे कड़वा कहा जाता है, वही सच। झूठ की आयु भी बड़ी लम्बी होती है, हाँ ! परास्त होता है। लेकिन परास्त होने से पूर्व सारे ही ऐशो-आराम भोगकर विदा लेता है। झूठ अक्सर स्वांग रचकर आता है, सभ्य, सुसंस्कारी होने का। लेकिन यह मुखौटा जब उतरता है, तो घायल कर देता है। तुम्हे पता होगा, झूठ ने चौदह वर्ष अयोध्या की राजगद्दी संभाली है। वो बात अलग है, कि भरत ने ठुकरा दी थी। लेकिन कैकयी का झूठ - अयोध्या की राजगद्दी मांगना - सच - राम को चौदह वर्ष वनवास - पर भारी पड़ा था। यह एक दृष्टिकोण है। वो सारी बातें अलग है, कि देव थे, उनका कर्म था, या नियति थी, या लीला थी। कैकयी के झूठ ने चौदह वर्ष का लम्बा आयुष्य भोगा।

    यह रश्मिरथी का मुख्य पात्र कर्ण..! पूरा जीवन अपने सत्य को सर्वस्व मानता रहा, लेकिन उसका सत्य झूठ था, पूरा जीवन सूत-पुत्र रहा, जबकि सत्य था, कि वह ज्येष्ठ कुन्तीपुत्र था। झूठ ने एक महावीर को अपना सही स्थान हांसिल नहीं करने दिया। झूठ ने एक महान गुरु को रण त्यागने पर विवश कर दिया था, जब समाचार फैला, कि अश्वत्थामा मारा गया। रावण का झूठ सदा भारी रहा विभीषण के सत्य पर। ऐशो-आराम से लेकर सब कुछ था उस रावण के झूठ के पास। झूठ बड़ी जल्दी प्रसिद्धि दिलाता है। झूठ किसी उपलब्धि की प्राप्ति का साधन है। कर्ण ने शिक्षाप्राप्ति झूठ के दम पर की। आज भी इंस्टाग्राम - स्नेपचैट के फिल्टर्स झूठ का चोला पहनाकर प्रसिद्धि ही तो दिलवाते है। यूट्यूब पर विषयवस्तु से भिन्न थंबनेइल्स लगाकर लाखो में व्यूज़ नहीं छापे जाते है क्या?

सूर्य के आड़े सुदर्शन

    झूठ बेहतर नहीं है। झूठ की अपनी कुछ शक्तियां है जो सच को विवश कर बाँध लेती है, किडनेप कर लेती है। सच बाहर आता है, जब तक बहुत हानि हो चुकी होती है। सत्ता की हाँ में हाँ मिलाने वाले अक्सर आगे निकल जाते है। और सच या तो गिरा दिया जाता है, या तो इग्नोर। सच का तो शायद काम ही झूठ के बाद आने का रह गया है। गुनाह की सफाई भी तब दी जाती है जब तक मिडिया बदनाम  कर चूका होता है। लेकिन मुझे कृष्ण के झूठ बड़े पसंद आते है। कैसे उन्होंने सूर्य के आड़े सुदर्शन रखकर जयद्रथ का वध करवाया। और वो झूठ कितना मजेदार है, जब अयाचक व्रतधारी सुदामा कृष्ण के पास आता है, और कृष्ण जैसे कुछ भी मदद न की हो वैसे सुदामा को वापिस अपने घर भेज देते है। सुदामा को तो घर पहुँचने के बाद पता चला। की स्थितियां कितनी बदल गयी है। 

    वो कथा कितनी रसप्रद है, जब सत्यभामा ने स्वयं कृष्ण का तुलाभार किया। स्वर्ण तथा रत्नो से जब कृष्ण नहीं तोले गए, तब रुक्मिणी ने एक तुलसी पत्र के भार से कृष्ण का भार समतूला कर दिया। सत्यभामा का स्वर्ण-रत्नो का झूठ और रुक्मिणी का एक तुलसीपत्र का सत्य समान वजनी हुए। पता नहीं आज कैसे इतनी सच्ची-झूठी बाते कर दी मैंने प्रियंवदा..! मैं तो आया था अपनी दिलायरी लिखने। लेकिन यह भी सच नहीं। क्योंकि अक्सर दिलायरी में एक 'दिलावरसिंह' का झूठ उपस्थित रहता है। 

नींद का झूठ और जागृति का सच

    प्रियंवदा ! मुझे भी निंद्रा का झूठ बड़ा पसंद है, जाग्रति के सच से। क्या करूँ, नींद उड़ती ही नहीं मेरी। खोया-खोया सा रहता हूँ। अरे नहीं - प्यार में नहीं। प्रेम कभी भी देहाकर्षण से ग्रसितो में उद्भवता कहाँ है? मैं भी एक देहाकर्षण का ही तो रसिक हूँ। सुबह सुबह जल्दी जाग जाता हूँ, यह भी एक कारण है निंद्रा का। हाँ, छह बजे का समय मेरे लिए जल्दी ही है। लगभग 2-2.50 किलोमीटर की वॉकिंग.. आज थोड़ी और जहमत उठा ली। 250 मीटर की रनिंग भी की, और हर्डल जम्प भी किये। अभी तक मैच-पिच की बाउंड्री बरकरार है, तो वह कुछ 2-3 फुट की होती है। दौड़कर कूद जाने की। फिर कुछ देर स्ट्रेचिंग वगेरह की, तो आज दिनभर पैरों के तमाम जॉइंट्स मूवमेंट्स के समय अनुभव हुए। वैसे आज तो दोपहर तक आराम भी कहाँ था।

दिनचर्या, दौड़ और थकान की असलियत

    सुबह नियत समय ऑफिस पहुंच गया था, लेकिन कल जो सोच रखी थी, इनमें से कुछ भी नही हुआ था। आज भीम ग्यारस थी। ऑफिस पर ठंडाई और आम बांटने थे। कल दोपहर को मैं और गजा जूते लेने गए तब साथ ही गुलाब सरबत की आठ बोतल ले आए थे। लगभग सवासो आदमी के लिए ठंडा सरबत बनाना था.. दूध, बर्फ, पानी, सब सुबह सुबह मंगवाया। सरदार भी आम की पेटियां ले आया। लगभग बारह एक बजे तक यही सब चलता रहा। अच्छा बना था सरबत। हाँ, एक ड्रम थोड़ा कम मीठा बना था। सुबह सुबह लगाई दौड़, और फिर साढ़े बारह बजे तक कि यह भागदौड़ - मुझ से आलसी को थकाने के लिए सामर्थ्यवान रही। ऊपर से दोपहर को लंच में आम ही खाये.. नौ-दस केसर आम की जयाफ्त उड़ाने के बाद मैं और गजा लग गए काम पर। 

शाखा का बौद्धिक और निष्क्रिय सलाहकारों की सच्चाई

    मेरे पास तो काम था, हिसाब किताब इस पूरे सप्ताह के बाकी थे, वे सारे निपटाने थे। शाम तक यही सब चलता रहा, और दिलायरी लिखने बैठा तब गजा भी पास में बैठ गया। फिर मैंने कुछ लिखा नही। घर आकर भोजनादि से निवृत होकर शाखा में चला गया। बौद्धिक बहुत अच्छा था। प्रत्येक समाज मे तीन श्रेणी के लोग होते है। विरोधी, निष्क्रिय सलाहकार, और सहयोगी। विरोधी से बड़ी समस्या नही होती। सहयोगी तो होते ही भले है। खतरनाक होते है निष्क्रिय सलाहकार। वे कुछ लोग, जो सलाह देते है, ऐसे होना चाहिए, वैसे होना चाहिए.. लेकिन जब करने की बारी आई तब उनके कदम थम जाते है। कोई समाज का वकील है, वह सलाह देगा कि समाज को न्याय क्षेत्र में और आगे बढ़ने की जरूरत है। लेकिन किसी समाज के व्यक्ति का कोई न्यायिक केस लेकर उनके पास जाया जाए, तो उन वकील साहब के पास समय नही होता है। यह प्रत्येक समाज की समस्या है। नाम बड़े और दर्शन खोटे वाला मामला.. खेर, रात को ग्यारह बजे तक हम लोग बैठे रहे। हाँ!मुझे बड़ी नींद आ रही थी, क्योंकि वहां कोई एक व्यक्ति बोलता है, बाकी मौन रहकर सुनते है। और जब भी निष्क्रिय मौन रहकर मैं बैठता हूँ, तो मुझे बड़ी जोरो की निंद्रा आने लगती है। 

अधूरे अरमान और प्रियंवदा की स्मृति

    वैसे प्रियंवदा, रात्रि शाखा में सहगान की प्रथम पंक्ति ही मुझे भीतर तक हचमचा गयी थी। "आराम कहाँ जब जीवन मे, अरमान अधूरे रह जाते.. सागर में सीपे खोज-खोज, माला में मोती पोए थे, पर हाय अचानक टूट पड़े, यदि प्रेम तंतु जब पहनाते.." अधूरे अरमान अक्सर खटकते है प्रियंवदा.. शाखा में जाते समय एक चेहरा दिखा था, वो चेहरा अब, जब सामने आ जाता है, कल्पना से वास्तविकता के फन पर.. और फिर डसता है, उस विष का विचरण होने लगता है रक्तवाहिनियों में, जिसको सकुशल निष्क्रिय कर दिया गया था। रोशनी थी, वहां घना अंधेरा होने लग जाए। हम चाहते है, फिर भी नजरें नीची हो जाती है, या चुरा ली जाती है। जैसे एक असहजता के सैन्य ने चेतना पर छापा मारा हो.. 

    रात्रि के स्वप्न मुझे याद नही रहते प्रियंवदा। पर सोचकर तो उसे ही सोया था.. अब पता नही उस आमंत्रण को स्वीकारा गया था, या नही।

शुभरात्रि।
(०६/०६/२०२५)

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क्या आपने गर्मी देवी का इंटरव्यू पढ़ा? (यहाँ पढ़िए)


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