“स्वास्थ्य चिंता, अधिक चिंतन और भरोसा: आत्मसंघर्ष की एक डायरी” || दिलायरी : ०३/०६/२०२५

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शंकाशील स्वभाव का दर्द

प्रियंवदा ! शंकाशील स्वाभाव बड़ा दर्द देता है। खासकर भीरु लोगों को। जो छोटी छोटी बातों में बड़ी बड़ी शंका पाल लेते है। वे धक्के ही खाते है। मेरा भी स्वभाव कुछ शंकाशील ही है। मुझे कुछ होता है तो मैं बड़ी बड़ी शंका पालने लगता हूँ। चलो स्वीकार ही लेता हूँ, सीधा और स्पष्ट..! वो बात अनुभव से ही समझ आती है कि मन के हारे हार है, मन के जीते जीत। हुआ ऐसा था, कि दो-तीन साल पहले मुझे जबड़े कि दिक्क्त हो आयी थी, ऑफकोर्स मावा के ही कारण..! दिनभर मावा चबाए करता था, तो एक दिन स्वतः इच्छा हुई, कि यह सब छोड़ देना चाहिए।


ChatGPT se Salaahen Lete Dilawarsinh..!

गूगल की गलती: जबड़ा जकड़ने की कहानी

एक-दो हफ्ते के बाद जबड़े जकड़ गए। एकाध दिन तो चुपचाप सेह लिया, लेकिन गूगल करने पर पता चला की जबड़ा तो बड़े गंभीर कारणों से जकड़ा जाता है। पहली सीख : कोई भी शारीरिक समस्या हो, गूगल मत करो, डॉक्टर के पास जाओ..! अब मनोमन भारी तनाव होने लगा। ऐसी स्थितियों में अक्सर मन भ्रांतियां उत्पन्न करने लगता है। मित्रों से जानकारियां ली, तो पता चला, कि यह समस्या तो कैंसर वालो को होती है। और अक्सर जो लोग अचानक से व्यसन छोड़ देते है उन्हें तो होता ही होता है। 


दूसरी सीख : शंकाएं मत पालो

अब मेरे शंकाशील स्वभाव को तो तुरुप का इक्का मिल गया। धीरे धीरे भारी डिप्रेशन का शिकार हो गया। शाम तक तो कमजोरी ने भी घेर लिया। मन के हारे हार प्रियंवदा !.. दूसरी सीख : शंकाएं मत पालो.. दोपहर दो बजे मैं भागकर दवाखाने गया। वो भी कैंसर स्पेशियलिस्ट के पास। उसने मुँह में चिमटे डालकर कोना कोना चेक किया, और हँसते हुए बोला.. "कुछ भी तो नहीं है।" लेकिन शंकाशील स्वभाव प्रियंवदा, वो इतने से कहाँ संतुष्ट होने वाला था। कुछ भी चबाते समय कानो के पास जबड़ो का जॉइंट होता है, वहां टक-टक ऐसी आवाजें सुनाई देती मुझे। कैंसर वाला वहम तो गया, लेकिन अब नया वहम पाया मेने.. मुझे 'jaw disorder' हो गया है.. क्योंकि फिर से गूगल ने कहा था..!


शहर के नामी डेंटिस्ट के पास गया। वहां नन्ही सी डॉक्टर-मेडम थी, डेंटिस्ट के वहां एक बेड जैसी चेयर होती है, पेशंट को लेटा देते है उसपर, और मुँह पर लाइट रखकर चेक करते है। एक तो मुझे वैसे ही परस्त्री से बड़ी शर्म होती है, और ऊपर से यह खूबसूरत डॉक्टरनी..! गाल, और दांत का दर्द तो रहा बाजू में, मैं पसीने से भीगने लगा। उसने मुंह पर मास्क बांधकर फिर से मुँह में चिमटे दे दिए.. उसने भी कोने कोने से रोग खोजने की चेस्टा की, लेकिन असफल रही। क्योंकि रोग तो मन में था। मेरा शंकाशील स्वभाव। तरह तरह की भ्रांतियां रचता था। और मैं उन भ्रांतियों को सच मानते हुए पीड़ा भोगता था। इसकी असफलता ने मुझे इसकी काबिलियत पर शंका दिला दी। मैं पास के शहर के एक और डॉक्टर से मिला।


तीसरी सीख : भरोसा रखो

बड़ा हंसमुख डेंटिस्ट है। उसने शुरू से लेकर सारी बात सुनी और समझी.. फिर हँसते हुए बोला, "बापु! आपको बड़ी समस्या है। पहले तो आप विश्वास रखो मुझपर, कि मैं आपकी समस्या का जो निदान बताऊ, उसे मान लोगे।" मैंने हामी भरी.. उसने कुछ विटामिन्स की टेबलेट दी, और कहा, "मावा छोड़ना हो तो एकसाथ नहीं छोड़ते। दिन ब दिन संख्या घटाते हुए छोड़ना चाहिए। और यह दवाइयों का कोर्स पूरा करना, और अब किसी और डॉक्टर के पास मत जाना। थोड़ा विश्वास दिखाओ, ठीक हो जाओगे।" इसके दिलासे के आगे मेरी शंकाओने आत्मसमर्पण कर दिया। और मैं जीत गया। तीसरी सीख : भरोसा करना चाहिए। भरोसा शंका का शत्रु है।


शंकासुर का नया ब्रह्मास्त्र: हार्ट-अटैक

उसके बाद से, अब सर्दियों में एक बार वो दर्द जागता है, एकाध दिन अनुभव होता है। पुरानी यादों को याद कराकर चला जाता है। लेकिन उस युद्ध के दो-तीन साल बाद एक बार फिर से मुझ पर शंकाओ ने पुनः आक्रमण किया। इस बार भी बड़ा ही तीव्र हमला था। लेकिन पिछले युद्ध का अनुभव था मुझे। लेकिन पहली बार तो पीछेहठ फिर भी हुई मेरी। पिछले सप्ताह एक व्यक्ति मिला था मुझे। कुछ कुछ बातचीतों में उसने बताया, कि एक ही दिन में उसके दो पहचान वाले हार्टअटैक से मृत्यु पामे। बस शंकासुर के पास फिर एक ब्रह्मास्त्र आ गया, "हार्ट-अटैक"..


क्योंकि परसो रात को जब तीन बजे अचानक मेरी आँखे खुल गयी, और आँखों के आगे अँधेरा छाने लगा था। घुटन सी होने लगी, जबकि मैं तो छत पर सोया करता हूँ। वहां तो खुले आंधी से पवन चलते है। कुछ देर छत पर ही टहलने लगा। टहलते हुए ख्याल आया, कि इस बारे में और जानकारी लेनी चाहिए। वही पहले वाली गलती दोहरा दी..! इस बार गूगल के बदले chatgpt से पूछ लिया। मैंने लक्षण बताए, घुटन सी हो रही है, राइट साइड का कन्धा और हाथ दर्द कर रहा है। और चक्कर सा लग रहा है। उसने तुरंत रिप्लाय देते कहा, पहले तो किसी घर वाले को जगाओ, उसे अपनी स्थिति बताओ, और कुछ ज्यादा लगे तो तुरंत हॉस्पिटल जाओ.. यह एक हार्ट अटैक के लक्षण है। रात के तीन बजे इस chatgpt ने खुली छत पर और पसीने बहा दिए मेरे।


गजे का भरोसा, और मेरा पुनर्जन्म

पिछली गलती से सीख नहीं ली थी मैंने, भूल गया था। कल की दिलायरी भी बड़े ही टेंसन में लिखी थी, बस दिनचर्या लिखकर छोड़ दी। क्योंकि कल पूरा दिन भारी तनाव में बिता मेरा। वास्तव में गजा बड़ा हिम्मती है इस मामले में। दिनभर उसने मुझे दिलासा दिया, होंसला बंधाया। मैं तो सुबह सुबह हॉस्पिटल जाने ही वाला था। उसने सारी बाते सुनी, और बोला कुछ नहीं है। ऐसा मुझे भी हुआ था। मैंने यकीन तो किया, लेकिन पूर्णतः भरोसा नहीं कर पाया। क्योंकि हार्ट अटैक वाली बात दिमाग में घर कर गयी थी। शंकासुर का ब्रह्मास्त्र इस बार हार्ट अटैक था। मैं हार स्वीकार चूका था। शाम होते होते पास ही के छोटे से क्लिनिक पर पहुँच गया। गजा मेरे साथ चला। ब्लडप्रेशर चेक करवाया।


गजे का विश्वास खरा उतरा। बीपी नॉर्मल था। बोला गैस हो गया है आपको..! अपना कभी गैस से पाला नहीं पड़ा था। सुबह से डकारें तो आ रही थी, लेकिन समझ नहीं पाया। लेकिन फिर शंकासुर ने मुझे घेरना चालू किया। गैस में घुटन थोड़े होती है? गैस में तो कंधे थोड़ी दुखते है? गैस में पसीने थोड़े बहते है? इनका जवाब नहीं था मेरे पास। शाम सात बजे मैं घर पहुंच गया। माताजी बोले, दवाखाने जा। अब तो दवाखाने का स्प्पोर्टर बढ़ा। मैं चला गया। डॉक्टर बैठा था, मैंने सारा दिल का दर्द बयां कर दिया। यह वाला डॉक्टर भी बड़ा अलग कैरेक्टर है। आँखे मूंदकर सवाल जवाब करता है। सारी बाते सुनकर तीन बड़ी बातें बताई..! 


डॉक्टर की तीन सलाह और चौथी सीख

एक तो शारीरिक श्रम - अर्थात जॉगिंग या कसरत, योग करना है। दूसरी चीज यह जो पिछले साल भर से दोपहर १-३ भरी दोपहरी में घूम-घूम कर नाश्ते करते थे वो बंद करवा दिया, क्योंकि यह घुटन का कारण लू लगना है। तीसरी सलाह, अगर दी गयी दवाइयों से फर्क न पड़ा तो कार्डियो टेस्ट करवाना पड़ेगा.. मतलब की हार्ट चेक करवाना पड़ेगा। यहाँ ह्रदय में तो तरह तरह के लोग बसा रखे है मैंने, शायद वे ही पीड़ा पहुंचा रहे होंगे..! हालाँकि आज सुबह से तो काफी अच्छा अनुभव कर रहा हूँ। दवाइयां काम कर गयी है। हाँ घुटन तो अनुभव हो रही है, क्योंकि उमसभरा वातावरण रहता है। अच्छे भले हांफने लग जाए। सारी शंकाओं का समाधान हो गया। 


आदतों का आत्मविश्लेषण

डर.. यह जो डर है ना, बड़ा अच्छा है प्रियंवदा। बहुत सारी आदतों से लेकर व्यवहार तक बदलवा देता है डर..! कल रात दस बजते ही सो गया था, क्योंकि सुबह चार बजे हुकुम पधारने थे। साढ़े चार को उन्हें बस डेपो लेने गया। पांच बजे वापिस थोड़ी सी निंद्रा ली। और साढ़े छह को ग्राऊंड चला गया। हाँ! आज सुबह सुबह ग्राऊंड के ६-७ चक्कर तो काटे है। पिछले एक साल में शरीर ने काफी आराम लिया है। शारीरिक श्रम के नाम पर दिनभर में बस डेढ़सौ मीटर ही चलना होता था। दोपहरी भूख के नाम पर चटोरी जिह्वा को सारे शहर के नाश्तों का स्वाद चखाया है। भरी दोपहरी के सूर्य का अनादर कर मैंने बाइक राइड की है। अब इन सब का दंड तो पाना ही था। मिला एक सबक.. चौथी सीख : शारीरिक श्रम बड़ा जरुरी है।


दिनचर्या में छोटे लेकिन असरदार बदलाव

दिनचर्या ही ऐसी हो गयी, सुबह ऑफिस, दिनभर ऑफिस चेयर में कंप्यूटर के आगे, कम्प्यूटर से मोबाइल, मोबाइल से वापिस कंप्यूटर..! घर आकर भी बाइक पर ही ग्राउंड जाना। वहां कुछ देर गपशप या, फिर मोबाइल स्क्रॉलिंग। चलना-फिरना, कसरते यह सब से बड़ी दूरी बन गयी थी। आज तो सुबह सुबह थोड़ी कसरत की है। दिनभर में ऐसे ही थोड़ा थोड़ा चलता रहा हूँ। दोपहर को भी नाश्ते के बजाए सलाद ही खाया है। यह थोड़े थोड़े बदलाव जरुरी भी है, और अच्छे भी। दिनभर काफी काम रहा है आज। शाम होते होते सरदर्द करने लगा है। कारण मुझे पता है, सुबह जल्दी जाग गया था इसी लिए। लेकिन अब यही नित्यक्रम बनाना है मुझे। 


खेर, अभी समय हो चूका है साम के साढ़े सात। तनावमुक्ति के बावजूद मैं अपनी दूसरी श्रृंखला 'मैं खुद से मिलने निकला हूँ..' को एक ठन्डे बक्से में डाल चूका हूँ। वह श्रृंखला थोड़ी मानसिक तनाव कर देती है। कुछ दिन उसे वहीं रहने देंगे। दस दिनों की दवाइयां ही अब मेरी साथीदार है।


पाँचवीं सीख : स्वीकार करना भी एक कला है

ठीक है, प्रियंवदा। स्वीकार करना भी बड़ा कठिन काम है। यह भी एक सीख ही है, स्वीकार कर लेना।

शुभरात्रि।

(०३/०६/२०२५, १९:३६)

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