जब जिम्मेदारियां बोझ बनीं : ऑफिस की भागदौड़ और ढाबे की हरियाली || दिलायरी : 16/07/2025

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जब जिम्मेदारियां तय करना मुश्किल हो जाएं

    कभी कभी दिन में जिम्मेदारियां इतनी बढ़ जाती है, कि आप तय नही कर पाते है, कि यह सब इतना जरूरी है भी या नही? दिनभर ऑफिस में ऐसा व्यस्त रहा, और ऊपर से सरदार गैरहाजिर। मगझ के सारे तंतु परेशान हो चुके थे। और तय कर लिया था कि आज तो कुछ लिखना नही है। बस इसी कारण से दिलायरी आज सत्रह तारीख को लिख रहा हूँ। अक्सर शाम को ही लिख लेता हूँ। और यह भी खाली ही रहेगी।



तकनीकी समस्या और सरदार की गैरहाज़िरी

    सुबह ऑफिस पहुंचकर सोचा था, कि आज तो कुछ खास काम है नही, पूरा दिन आराम ही आराम है। लेकिन ऑफिस पहुंचने से पहले ही फोन आ गया कि, 'सर ! तीन मशीन बन्द हो गयी है।' जब ऑफिस पहुंचने से पहले ही कोई टेंशन दे, तो सारा मूड वहीं फुस्स हो जाता है। जगन्नाथ, दुकान और फिर ऑफिस पहुंचा। सारा मामला सॉर्ट-आउट होते तय हुआ, कि तीन बजे मशीनें शुरू हो जाएगी। सरदार की गैरहाजरी में ही यह सब पंगे उठ खड़े होते है। अकाल में अधिक मास स्वरूप सात गाड़ियां आ खड़ी हो गयी लोडिंग के लिए। लगभग रात के पौने नौ बजा दिए थे ऑफिस पर ही।


ढाबे की थाली और गार्डन की हरियाली

    दोपहर को लंच टाइम में ढाबे ही चला गया, मस्त दाल तड़का और तंदूरी दबाने के बाद वहां थोड़ी देर टहल रहा था। उसने अच्छा ढाबा बनाया था। पीछे की साइड छोटा गार्डन बना रखा है, जिसमे तरह तरह के पौधे लगे थे। एक pvc पाइप में कईं सारे छेद करके, बेल लगाने वाला यूट्यूबिया सेटअप भी तैयार किया था, और कई तरह के पौधे लगे थे। सबसे ज्यादा वो कोनोकार्पस के पेड़ थे, जिसे सरकार ने उखाड़ फेंकने का आदेश जारी किया था। बड़े शहरों में से तो वो पेड़ जड़ से खींच लिए गए है, लेकिन इस तरह छोटे मोटे प्राइवेट प्रोपर्टी में आज भी खड़े है।


शाम की थकान और रुकते नहीं कॉल्स

    शाम होते होते परेशानी बढ़ने लगी, कुछ जिम्मेदारियां बोझिल हो जाती है, और निर्णय लेने में दोराहे दिखते है। घर आने के बावजूद फोन कॉल्स चालू रहे। कुछ कंफर्मेशन्स देने पड़े, कुछ रोकी हुई गाड़ियां छोड़ने के लिए। कभी कभी ऐसा ही व्यस्त दिन जाता है। दिनभर में गिनती के चार बार ही ऑफिस से बाहर कदम रखा था। पूरा दिन बैठे रहना स्वास्थ्य पर गंभीर असर करता है। नियमित व्यायाम भी नही करता हूँ मैं तो। बस यही था सोलह जुलाई..!


    शुभरात्रि।

    (१६/०७/२०२५)

|| अस्तु ||


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प्रिय पाठक !

क्या आपके दिन भी ऐसे ही जिम्मेदारियों के बोझ से भरे होते हैं?
अपनी दिल की बातें नीचे कमेंट में जरूर लिखिए...
शायद आपकी थकान भी मेरी दिलायरी में सुकून पा जाए।


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