सहने की कला – मुस्कान के पीछे छिपा धैर्य और जीवन का संतुलन || दिलायरी : 06/10/2025

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सोमवार का मन और जीवन की थकान

    प्रियम्वदा !

    इस सोमवार की तो क्या कहूँ तुम्हे? मैं समझ नही पा रहा हूँ, कि मैं नौकरी कर रहा हूँ? या मजदूरी? इतनी झंझट तो शायद खेतों में भी न होती होगी? हाँ वैसे किसे पता है, वहां इससे ज्यादा मेहनत है.. तभी तो किसानों की संख्या कम होती जा रही है। मैं अपने आसपास की ही बात करूं, तो मेरे कितने ही रिश्तेदार खेती छोड़कर छोटीमोटी नौकरी करने लगे है, या फिर कोई धंधा..! धीरे धीरे मुझे लगता है, अपने यहां भी कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग होने लगेगी हर जगह..! बड़ी कंपनियां मैदान में उतरेगी, सालों की लीज़ पर जमीनें लेंगी, सारी ही जमीन का रस-कस चूस कर निचोड़ लेगी। और फिर नई जमीन..! मैं भी वैसे ऐसी ही कोई कंपनी में इंटरेस्टेड हूँ। क्योंकि मेरी जमीन पिछले कईं सालों से खाली पड़ी है। 


“सहने की कला – मुस्कान के पीछे छिपी सहनशक्ति और जीवन का संघर्ष”

हर आम इंसान में छिपी असाधारण सहनशक्ति

    खेर, आज तो सवेरे उठकर सबसे पहले दिलबाग में ही गया था। बहुत अच्छी फूलबहार आयी है। कुछ बेल को सहारा वगेरह दिया, पानी दिया, और फिर तैयार होकर ऑफिस चल पड़ा। कल के दिन की छुट्टी का सारा काम मुझे आज निपटाना पड़ा। यह तो हाल है मेरा। और ऐसा जब भी होता है, तो हर नौकरियात के दिमाग मे एक ही बात आती है, कहीं मेरी पगार कम तो नहीं है? और हकीकत तुम्हे बताऊं प्रियम्वदा, तो आज हम कुछ लोग बैठे थे। सबका ओपिनियन एक ही था। महीने पैतालिश-पचास हजार तो मिनिमम घर खर्च के लिए चाहिए ही चाहिए। यह वाला अर्थशास्त्र कुछ ज्यादा ही नही दौड़ रहा है? मैं वास्तव में कन्फ्यूज़्ड हूँ, कि देश तीसरी सबसे बड़ी इकोनॉमी बनने की रेस में है। लेकिन रुपया फिर भी डॉलर के सामने नब्बे को छूने को दौड़ रहा है। 


    रुपया गिरता जा रहा है, महंगाई बढ़ती जा रही है। और पगार भी बढ़ते जा रहे है.. पहले मिनिमम सेलरी न्यू कमर के लिए सात से दस हजार हुआ करती थी। आज डबल से भी ज्यादा है। लगभग दस ही साल में। फिर भी कम लगती है। क्योंकि आज महीने दूध का बिल पांच हजार के करीब आ जाता है, चार फेमिली मेंबर्स में। यह चल क्या रहा है, मुझे तो यही समझ नही आ रहा है। पार्लेजी फिर भी पांच का है.. समोसा बीस का हो गया..! सोने की चमक से ज्यादा तो उसके भाव से आंखे चौंधिया जाती है। अरे मैं यह कौनसी बातें लेकर बैठ गया? वैसे यह भी मेरे ही मुद्दे से ही जुड़ी हुई बात है। मुद्दा तो कुछ खास नही है, लेकिन आज आम आदमी, या मध्यमवर्गीय घरों के इंसानों में एक कला अपने आप प्रकट हुई है, वह है सहने की कला..!


मुस्कान – भीतर के तूफ़ान की ढाल

    कुछ लोग, मुस्कान से अपना दर्द छिपा लेते है। वे हँसते रहते है, लेकिन भीतर अपनी सारी अव्यक्त भावनाओं को कईं सारे बोझ तले दबाकर। वे दूसरे लोगों पर यह अपने गमों का भार नही डालना चाहते। एक व्यक्ति जीवनभर में कितना कुछ सह जाता है। कभी पिताजी की मार, कभी माँ का क्रोध, कभी पत्नी के ताने, कभी बच्चों की जिद्द, कभी बॉस की तानाशाही, तो कभी किसी की उधारी की वसूली, कभी लोन की क़िस्त, तो कभी पंक्चर्ड टायर का बोझ, कभी महीने के अंत मे आती तंगी, तो कभी शाम की बिना नमक की दाल..! लेकिन सारे ही मनोभावनाओं का संतुलन बनाए रखने के लिए ही एक और शक्ति इंसान में पनपी.. सहनशक्ति। 


    काम से घर लौटे पुरुष के चेहरे पर मुस्कान हो, तो कोई यह नही कह सकता, कि उसका दिन अच्छा ही गया है। वह कईं बार अपनी मुस्कान को ढाल बनाकर घर मे प्रवेशता है। ताकि अपने परिवार को अपने पर आयीं आफतों से और परेशानी न हो। जो उसने सहन किया है, वह उसका परिवार न सहे। या फिर यह उदाहरण देना भी जरूरी है, ताकि संतुलन बना रहे। कि कईं बार काम से लौटे पुरुष को उसकी स्त्री हँसते मुंह पानी देती है। तो वह भी संभावना है, कि उसने भी अपनी दिनभर की थकान, और सास या रिश्तेदारों के तानों को अपनी मीठी मुस्कान तले दबे लिया है। यही तो सहनशक्ति है। अपने दुःख का भार दूसरों पर न आने देना।


सहनशक्ति : कमजोरी नहीं, आत्मबल का प्रमाण

    सह लेना कोई कमजोरी नही। बल्कि यह तो अपने भीतर की गहराई का प्रमाण है। कोई अपने भीतर कितना गहन है, वह कोई नही जान सकता। सिवा उसकी सहनशक्ति की सीमा आए। कोई पुरुष रातभर यह सोचता पड़ा रह सकता है, कि उसकी स्त्री उससे विश्वासघात कर रही है। वह अपने सिरहाने की कोर को भी भीगने नही देता। उसके आंसू भी उन्ही गहराइयों में चले जाते है, जहां इस सहनशक्ति का स्त्रोत है। वे आंसू इस सहनशक्ति को वैसे ही सिंचित करते है, जैसे किसी भूमि को जल। जैसे किसी सिप को स्वाति का जलबून्द। सहनशक्ति की तुलना और किसी भी मापदंडों के साथ नहीं हो सकती। 


झुक जाना भी एक रणनीति है

    बहुत बेहतर है, टूट जाने के बजाए, समय रहते झुक जाना। आर्मी में एक शब्द है, 'टैक्टिकल रिट्रीट'.. एक नियत, निश्चित और अनुशासनपूर्ण पिछेहट। वो कहते है न, शेर दो कदम पीछे ले रहा है, उसका अर्थ यह नही है, कि वह मैदान छोड़ रहा है। वह तो छलांग लगाने के लिए पीछे हटा था। कभी कुछ कटु प्रसंग घटित हो जाते है। वहां डटकर खड़े रहकर कट जाने में हानि ज्यादा है। जब पता हो, कि अब हमारे सिवा इस रन में अपने पक्ष में कोई नहीं। तब वहां सहनशक्ति काम आती है। अपमान सहकर भी जिन्होंने प्रतिशोध लिया है, उन्होंने कभी न कभी विजयश्री पाई है। यहां उदाहरण देना मुझे पसंद नही, लेकिन मुहम्मद गौरी कईं बार हारने के बावजूद वापिस आता, लड़ता, और एक दिन वह विजेता हुआ। 


‘सब ठीक है’ कहना भी एक कला है

    'सब ठीक है..' कहने का आशय कईं बार झूठ बोलना नही होता है। वहां बस सच्चाई छिपाने का एक प्रयास मात्र है। हालांकि यह सहनशीलता बादमे बहुत उलझने बढाती है। सब ठीक है कहने वाले, अक्सर बाद में बहुत बड़े रकाज़ उगलते है। जिनका कोई हल न हो ऐसी समस्याएं भी, कुछ लोगों के मुख से बस 'सब ठीक है' में समाहित हो जाती है। बड़े से बड़ी विपदा भी, बेबस हो जाती होगी, जब कोई उन्हें 'ठीक है' कहकर टाल देता होगा। या 'चलता है' कहकर कोई इग्नोर ही कर दे तब? वह झूठ भी नही है, और न ही वह समस्या को नजरअंदाज कर रहा है। वह अपनी गहराइयों में उस समस्या को होम रहा होता है, और वहीं से उसके लिए कोई हल खोज रहा होता है।


पर्सनल स्पेस और आधुनिक युग की सहनशीलता

    आजके समय मे हर किसी के पास अपना बोझ है, जब से यह 'निजी जगह' (पर्सनल स्पेस) आयी है। हर कोई अपनी उलझनों से जूझ रहा होता है। किसी के पास भी खाली समय उतना नही है, कि वह किसी और से उसकी समस्या में फ़िज़ूल में शामिल हो। सिवा वहां कोई स्वलाभ हो। वैसे भी, यह पर्सनल स्पेस बनी ही शायद इसी कारण से है, कि व्यक्ति अपनी समस्याओं से वहां मल्लयुद्ध कर सके। दिनभर की थकान के पश्चात सोते हुए भी, जब कोई इस मल्लयुद्ध में उतरता होगा, तब वहां उसका सबसे बड़ा हथियार यह सहनशक्ति ही रहती होगी। यह सहनशक्ति ही शायद उसे सुलाने में प्रभावशाली रहती होगी। जीवन को बिना शोर के समझना, वही है सहनशक्ति। आघात पर प्रत्याघातों के शोर न उठे, वहां सहनशक्ति ने प्रभाव जमा लिया होगा। तलवारों से ढाल टकराती है, तो चिंगारी तो वहां भी उठती है। लेकिन ढाल उलटप्रहर नही करती। वह बस धकेल सकती है। सहनशक्ति वह ढाल है, जो जीवन मे होते कईं आघातों के शोर दबा लेती है, अपनी गहराइयों में।


सहनशक्ति – जीवन की ढाल

    लेकिन सिर्फ सहनशक्ति के जोर पर युद्ध एकतरफा हो जाते है। अनेकों घावों से क्षति तो होगी ही। उन घावों के निशान भी रह जाते है। वे निशान बाद में एक लंबी दास्तान बनते है। उन निशानों में अनेकों कहानियां होती है। किसी ने अपने शरीर पर अस्सी घाव लिए थे, तो उसके पास अस्सी कहानियां है, अपने वारिसों के लिए। प्रत्येक घाव, बहुत कुछ कहने को प्रदर्शित रहते है। लेकिन कईं बार वही सहनशक्ति, उन घावों को भी कुछ कहने नही देती। कभी कभी वे घाव गलत समय पर सहन कर लेने के कारण भी बनते है। सहनशक्ति का उपयोग सही स्थान, और समय पर हो, यही समझदारी है।


    अधूरी चाह प्रियम्वदा.. अधूरी चाहत या समझौता.. मैं समझ नही पाता हूँ.. वह मुस्कान कितनी शक्तिशाली है ! जो अधूरी चाह को भी अपने पीछे छिपा लेती होगी। दिनभर में कितने ही समझौते करने पड़ते होंगे किसी को, तब जाकर शाम ढलती होगी, घर पहुंचने के लिए। कदम कदम पर समझौते किए हो, वह भी अपनी एक ही मुस्कान से कितना कुछ छिपा लेता होगा। प्रत्येक मौन के पीछे, या कईं अनुत्तरता के पीछे भी प्रेम, धैर्य और विश्वास की गहराई कितनी होगी, कोई अनुमान नही लगा सकता इस बात का। सहना सीख लिया, उसने जीना सीख लिया प्रियम्वदा। सहन करना भी सीखना होता है, कितना सहना, कहाँ सहना, और क्यों सहना.. यह तीन क पता होने चाहिए। यह तीन पता हो, तब सहना केवल सहना नही रह जाता, वह सहनशक्ति बन जाता है।


सहनशक्ति की पराकाष्ठा – नई शांति की स्थापना

    आत्मा की सबसे शांत पुकार सहनशक्ति है। जब आत्मा कहती होगी, बस यहां विद्रोह नही करना है। अब शांति चाहिए। संघर्ष को एक लंबी अवधि का विराम देना चाहिए। तब यह जिम्मा सहनशक्ति लेता है। वह अनेकों अत्याचार अपनी छाती पर लेकर भी प्रतिकार नही करता। अत्याचार के हाथ अपने आप थक जाते है। वह कितना ही प्रताड़ित कर ले, वह कितना ही उपयोग, उपभोग कर ले, किसी दिन सहनशक्तियों का सीमांकन करीब आ जाता है। तब कोई स्तंभ फटता है। कोई विकराल रूप वहां से उठ खड़ा होता है। अर्ध-पशुता से भरा, रौरव की अग्नि को अपनी जिह्वा से फेंकता हुआ, अपनी भुजाओं में सातों आसमानों को धारण किए हुए, अपने दंतशूलों मे महासूर्य का तेज प्रकाशित किए हुए, अपने नाखूनों से वज्र को मसल देने वाली तीक्ष्णता को लिए हुए। सहनशक्ति की पराकाष्टा से उद्भवित व्यक्तित्व, नूतन शांति की पुनः स्थापना करता है। 


    शुभरात्रि

    ०६/१०/२०२५, ११:०५

|| अस्तु ||


प्रिय पाठक !

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