"आराम की छुट्टी, बेआराम दिन – Viral Fever से दिलबाग तक || दिलायरी 05/10/2025"

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तबियत की शुरुआत – जब शरीर ने थकान जताई

    प्रियम्वदा !

    आज तो दिलायरी लिखनी बनती है। तबियत ठीक भी है, और शायद नहीं भी। कल रात को बड़ी मुश्किल से घर पहुंचा था। और पहुंचते ह हाथ मुंह धो कर थोड़ा सा खाना खाया, और पास के ही क्लीनिक पर चल पड़ा। घनघोर नींद आ रही थी, और पूरा बदनदर्द..! मेरा वाला डॉक्टर भी मस्त मानुस है..! जीभ निकलवाई और बोला, वायरल फीवर की स्टार्टिंग ही थी, और उसने सोलह गोलियां दे दी... दो सुबह दो शाम, दो दिन तक। 


    मैंने उनसे कहा, "मुझसे खाना नही खाया जा रहा है।" तो साहब बोले, "बहुत अच्छी बात है। पानी खूब पीओ।" इनकी हमेशा से आदत है, यह मूल मुद्दे तक रोग समझाते है। एक दिन मैं उनके पास बैठा था, एक पेशंट आया। साहब ने उसे सीधे ही मुंह पर ही कह दिया, "केंसर है।" कोई फॉर्मेलिटी नही, कोई मीठे बोल नही, बात में कोई नरमाई नही। सीधी बात नो बकवास..!


"दिलायरी लिखते हुए लेखक, दिलबाग के फूलों के बीच"

आराम की छुट्टी... पर आराम कहाँ!

    मैं एक टाइम की चार गोलिया खाकर नौ बजे सो गया। एक घंटे मुझे हुकुम ने जगाया, क्योंकि उनकी बस थी। दवाई ने एक ही घण्टे में अपना असर दिखा दिया था। ऊर्जाहीन शरीर फिर से बलशाली हो चुका था। बल्कि फिर तो रात के बारह बजे तक नींद नही आई मुझे। एक दम फिट एन फाइन। खेर, आज मैंने छुट्टी रख ली थी, इस तबियत के चलते। सोचा था आराम कर लूंगा। लेकिन सच कहूं तो आराम करने की जरा जरूरत नहीं लगी मुझे। सवेरे मस्त अपना उठकर जगन्नाथ जी गया, वहां से दुकान, उतने में पत्ते का फोन आया कि, उसने कार सर्विस में दी है, तो मैं उसे घर छोड़ दूं। उसके बाद घर के कुछ काम कर लिए। घर पर तो टाइम निकालना बड़ा ही मुश्किल काम है प्रियम्वदा। मुझसे तो न हो पाए। 


ऑफिस की आदतें छुट्टी पर भी पीछा नहीं छोड़तीं

    बोर हो ही रहा था, कि फिर से पत्ते का फोन आया, बोला कार रेडी हो गयी लेने जाना है। नेकी और पूछ पूछ? चल पड़े सर्विस स्टेशन। मैं छुट्टी पर होऊं तब भी मानसिक तरीके से ऑफिस पर ही होता हूँ। फोन पर ही पुष्पा से ऑफिस में एक बिल बनवाया। घर लौटा, खाना खाकर कुछ देर आराम करने के बजाए, मैं एक अपना ऑफिस बैग लेकर बैठ गया। कितने ही महीनों से खाली करना था उसे, लेकिन समय नही मिल पा रहा था। ऑफिस के बैग में ऑफिस के कागज़ ज्यादा होते है। 2021 और 2023 के कागज़ भरे पड़े थे। ऑफिसों का रिवाज़ तो यही है कि उन्हें जला दिया जाए। इसी बहाने अब मेरे पास एक खाली बैग हो गया, ट्रिप पर काम आएगा।


ट्रिप की उलझनें और महाराष्ट्र की पुकार

    अरे हाँ! कल से यह ट्रिप भी तो हाँ / ना हो रही है। दिन ज्यादा है, लगभग दस दिन। इस कारण से एक सहयात्री डगमगा गया। क्योंकि वह परीक्षाओं की तैयारी करता रहता है। उसे दस दिन का गैप नही चल सकता। मैं और पुष्पा फिर कुछ प्लान्स में बदलाव करने लगे, सीधा ही वाराणसी जाकर रिटर्न आ जाएं, ऐसी कोई सेटिंग बिठा रहे थे। ट्रेन्स देखी, फ्लाइट भी देखी.. किसी मे तालमेल नही बैठ पाया। 


    तो हमने प्लान ही ड्रॉप कर दिया। मुझे तो याद नही आया, क्योंकि मेरी कल तबियत अचानक ही डाउन होने लगी थी, और मैं नींद में घिरता जा रहा था। पर पुष्पा को प्लान बी अच्छे से याद था। हमने तय कर रखा था कि इस दीपावली पर काशी-देवघर नही जा पाए, तो महाराष्ट्र चले जाएंगे। जाना हमें ज्योतिर्लिंग ही है। उल्टा महाराष्ट्र में तो तीन है। 


Travel Planner का दिल – Excel Sheet में घूमती यात्राएँ

    उसका भी टूर lay-out मैंने बना रखा था। ट्रिप्स बनाने में तो मैं शायद एक्सपर्ट हो चुका हूँ। कितनी कार चलानी है, किस डेस्टिनेशन पर नाइट स्टे लेना चाहिए.. वगेरह वगेरह..! देखते है, अब यह त्रयम्बकेश्वर, भीमाशंकर और घृष्णेश्वर की ट्रिप भी ज़मीनी हकीकत पर उतरती है, या मेरी एक्सेल शीट में ही पड़ी रहती है। यहां तो वह तीसरा सहयात्री राजी है, ऐसा कल मैंने नींद में ही सुना तो था।


गरबी चौक की मस्ती और बच्चों की शरारतें

    दोपहर को बस सोने की तैयारी में था, उतने में पुष्पा का फोन आया, वह मेरा ऑफिस भूल चुका फ़ोन चार्जर लाया था। हाइवे पर मैं पिकअप करने पहुंचा, तब गरबी चौक के और लड़कों का भी फोन आ गया, बोले, हमने नेट और बॉल ले ली है। आप एक बार आकर बता दो, कहाँ इसे इनस्टॉल कर सकते है। मुझे याद आया, हमने गरबी चौक में फालतू की घुसपैठ रोकने के लिए वहां डेली रात वॉलीबॉल खेलना तय किया था। पुष्पा से अपना चार्जर लेकर, गरबी चौक पहुंचा, वहां नेट लगवाई, और फिर हम लोग खेलने भी लगे। साढ़े चार बज गए, पता भी न चला। वापिस घर लौटा, एकाध चाय पी, और सोचा, बाइक अब वाशिंग मांग रही है। 


कुँवरुभा की सीख और बचपन की नकलें

    थोड़ा श्रम खुद कर लेना चाहिए, सोचकर दो बाल्टी पानी उड़ेल दी। लेकिन सच कहूं तो कीचड़ जिद्दी है अपने यहां का। अंगुलिया छिल जाए, लेकिन प्रेशर पंप के बगैर, अगर हाथ से धोने की बात है, तो यह कीचड़ नही निकल सकता। जैसी तैसी साफसुफ़ कर, वापिस गरबी चौक। फिर से कुछ देर वॉलीबॉल खेले, कुँवरुभा भी मेरे साथ ही थे आज दिनभर। भाईसाहब, बालकों से बहस मतलब जिंदगी तहसनहस..! यूँ तो अब मेरे आंखों के इशारे से डरते है, लेकिन जिद्द पर हो, तो वे भी सीधी बात नो बकवास करते है। साहबज़ादे झुकाम के बावजूद चिप्स के पैकेट, चॉकलेट्स और एक कॉक चट कर गए। इनकी धमाल भी बहुत ज्यादा बढ़ती जा रही है। पांच वर्ष के बच्चे जो देखते है, उसका अनुकरण करते है। 


    कुछ दिनों तक उन्होंने कहीं से सीखा हुआ, पुष्पा झुकेगा नही साला किया, कुछ दिनों तक तमाचा झड़ने वाली मुद्राएं धारण की, कुछ दिनों तक धमकियाँ देते रहे। एक दिन मेरे कुछ कहने पर उन्होंने मुझे मिडिल फिंगर दिखा दी। मैं चौंक गया, लेकिन मुझे लगा पहली उंगली दिखाकर चिल्लाना उनकी आदत है, आज गलती से दूसरी वाली दिखा दी। लेकिन दूसरे दिन भी वही बात.. मेरा माथा सनका, और कॉलर से पकड़कर एक हल्की चपत लगा दी। कुछ देर रोए, लेकिन दोबारा अंगुलियों की करामात भूल गए। 


    आज भी पूरा दिन उन्होंने मुझे यहां से वहां दौड़ाया है। अभी कुछ देर पहले उन्होंने बताया कि, उन्हें फांस लगी है। फांस माने किसी कांटे का टुकड़ा जो अंगुली की चमड़ी में रह जाता है। वह रह रहकर टीस उठाता है। बालक तो कहीं भी हाथ मारते है। बड़ी मुश्किल से आखिरकार फांस निकाल दी। फिलहाल छत पर दिलबाग के बीच बैठकर यह दिलायरी लिख रहा हूँ।


कौन खिला, कौन ठहरा – दिलबाग की रिपोर्ट

    लगे हाथ दिलबाग के भी हाल सुना देता हूँ। दिलबाग में अभी तो जैसे बसंत की बहार आयी है। वे पोर्तुलाका भर भर के फूल दे रहे है। सफेद, पिले, लाल, गहरे-गुलाबी। सदाबहार में तो आते ही है। आज गेंदे में भी दो कलियाँ खिली मिली। गुड़हल में फिर से वो वाली समस्या मिली, फूल आते है, लेकिन खिलते नही है। वो स्नेक प्लांट आज पर्यन्त बस दो पत्ते के साथ खड़ा है, न बड़ा हो रहा है, न मुरझा रहा है। क्रोटोन थोड़ा बड़ा जरूर हुआ है। और वह लकी बैम्बू भी। देशी गुलाब में फूल की कली लगी है, लेकिन उसे खिलने न देने की सलाह मुझे नर्सरी वाले ने दी थी। पता नही, अब मैं समझ नही पा रहा हूँ, कि कली खिलने दू, या तोड़ दूं? 


    हाँ वो गोल्डन मनीप्लांट की लंबाई काफी बढ़ती जा रही है। जेड प्लांट तो मैं लाया, तब से मुझे उसका सिस्टम ही समझ नही आ रहा है। पता नही, वह बढ़ रहा है, या कर क्या रहा है? जब देखो तब पत्ते तो हरे ही मिलते है उसके। लेकिन न हाइट में बड़ा हो रहा है, न ही चौड़ाई में फैल रहा है। सबसे ज्यादा मजेदार आज मुझे मधुमालती लगी। दुनिया भर की कलियाँ आज उसमे लग चुकी है। कितने सारे फूल है.. यह भी मजेदार पौधा है, पहले दिन इसके फूल सफेद होते है, दूसरे दिन वही फूल लाल हो जाते है। अब मैं एक अपराजिता की बेल, और कुछ इंडोर प्लांट्स और लाने की सोच रहा हूँ..!


"दिलबाग के रंग-बिरंगे फूल – जीवन का सौंदर्य"


रात की शांति और मन की बेचैनी

    रात के ग्यारह बज रहे है। मौसम में एक शीतलता है। मैंने अपने कानों पर अजरख बांध लिया है। झिंगुरो की आवाजें एक पल के लिए भी नही रूक रही। फिर भी एक शांति और सुकून अनुभव हो रहा है। आराम करने के लिए मैंने छुट्टी रखी थी। लेकिन मैंने आराम के सिवा सब कुछ ही किया है। ऐसा ही है मेरा। घर पर रुका ही नही जाता मुझसे। मेरे लगभग दोस्त घर पर बड़े ही आराम से पड़े रह सकते है। दोपहर की नींद भी ले सकते है। मैं या तो बीमार होऊं, या रात की नींद टूटी हो, तो ही दोपहर को झपकी ले पाऊं। 


    कभी कभी सोचता हूँ, हमने जो निर्धारित किया हो, अक्षरसः उसका अनुसरण क्यों नही हो पाता कईं बार? मैं छुट्टी पर होऊं, तब भी मुझे ऑफिस की जिम्मेदारी निभानी होती है। मैं आराम फरमाना चाहू, तो शरीर मना कर देता है। मैं कोई बुक पढ़ना चाहूँ, तो मन कहीं और भटकने लगता है। मैं कोई मैनेजमेंट में लगा होऊं तो, मेरे दाव उल्टे पड़े.. मेरे लिए भी वह बात सटीक बैठती है, कर्म करने जाता हूँ, पर कांड हो जाते है..!


प्रियम्वदा को समर्पित – संवादों का ऋणानुबंध

    प्रियम्वदा, आज काफी दिनों बाद किसी से कुछ देर बात हुई, बड़ा अच्छा लगा। मुझे कभी किसी की परवाह नही होती, लेकिन यहां मैं अजीबोगरीब बात करने लगता हूँ.. आज भी मैं इसे ऋणानुबंध ही मानता हूँ। हाँ! यहाँ इतना अच्छा है, कि यहां कोई कांड नही हो रहा है। सच मे अगर कोई पिछला जन्म होता होगा, तो जरूर से मैंने पिछले जन्म में आराम ही फरमाए है, कोई झंझट नही पाली है। इसी कारण से आज बहुत सारे झमेले में बेमन से पड़ा हूँ। यहां दो पल का सुकून किसी मित्र की बातों में मिल जाता है। और खासकर दूर के मित्रों के साथ और भी मन मिलता-खुलता है। क्योंकि वहां कोई भी भयस्थान अनुभव नही होता मुझे। 


    यही था प्रियम्वदा, आज दिन, जहां केवल केवल भागदौड़ की मैंने, आराम की छुट्टी के नाम पर। कल से फिर से ऑफिस पर नौकरी वाली मानसिक भागदौड़ जारी रहेगी। 


    शुभरात्रि

    ०५/१०/२०२५, ११:११

|| अस्तु ||


प्रिय पाठक !

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