"परिश्रम, लगाव और आदत की रातें: थकी आत्मा की दिलायरी" || Attachment and habit both complement each other.

0

परिश्रम और प्रेम की उलझन: एक रात की आत्मस्वीकृति

शारीरिक श्रम के बाद मानसिक थकान का सवाल

    परिश्रम.. अब रात के १२:२८ पर क्या लिखू ? शारीरिक परिश्रम के पश्चात मानसिक श्रम करना चाहिए या नही, समझ नही पा रहा हूं। कल भी रात दो बजे सोया था, आज साढ़े बारह हो चुके है.. रात को नवरात्रि की तैयारियों का शारीरिक श्रम करने के उपरांत सवेरे साढ़े छह को मैदान की रनिंग भी निश्चित है। आज कुछ ज्यादा ही मेहनत हो गई.. लगभग सौ बार सीढ़ी चढ़-उतर की होगी..! समस्या अभी नही होती है, सवेरे उठा ही नही जाता। सालभर ऑफिस में बैठे बैठे शरीर आलसी हो चुका है.. जरा सी मेहनत में हांफने लगता है। कभी कभी हम अत्यधिक उत्साह में कुछ अधिक ही काम कर जाते है, फिर दूसरे दिन बस सोचते है कि यह इतना एक साथ नही करना था..!



आदत और लगाव: क्या अंतर है इन दोनों में?

    आज एक लेख पढ़ा, वही डायरी स्टाइल..! मन मे मचे उत्पात को कागझो पर उतारना। शीर्षक गजब था, "लगाव या आदत"। विकट प्रश्न है.. लगाव और आदत दोनो ही एकदूसरे के पूरक है, लगाव आदत में परिवर्तित हो सकता है, आदत लगाव में भी..! यानी दोनो रूप भी बदलते है। लगाव कहो, स्नेह कहो यह विपरीत लिंग प्रति तो स्वाभाविक ही होता है। जैसे माँ को बेटा प्यारा होता है, बाप को बेटी, भाई - भाई चाहे लाठी से लड़ते हो पर भाई-बहन का संबंध बखाना जाता है। और ऐसा ही स्नेह प्रेमियों का होता है। पर प्रेमी ओ के लगाव में एक त्रुटि दिखती है। 


रिश्तों की मर्यादा और असंतुलन

    प्रेमी ओ का लगाव मर्यादित है, मात्रा औरों से कम है शायद। वैसे इस लगाव की बात में सब कुछ सम्भव है, माँए तो वृद्धाश्रम में भी पड़ी है.. भाई बहन के बीच बोलाचाली भी बंद दिखती है कई बार। हालांकि इसे अपवाद में गिनना चाहिए। क्योंकि ज्यादातर लगाव प्रेमी ओ का ही पहले खत्म हो जाता है। अब कोई कहे कि लगाव था इस लिए खत्म हो गया, प्रेम होता तो नही होता.. फिर मुझे भी अपने शस्त्र तैयार करने पड़ेंगे की लगाव ही (कथित) प्रेम का प्रथम चरण है..। आकर्षण होता है, मन करता है अभी जाकर मिल आऊं। या फिर उसकी फोटो को घूरते (देखते) रहना, या फिर कोई गीत गुनगुनाना.. आकर्षण / लगाव नामक रोग के प्रारंभिक लक्षण है यह। 


आदत भंग होने का गुस्सा और बेचैनी

    फिर धीमे धीमे यह आकर्षण आदत में परिवर्तित होने की कोशिश करता है। कोई समझदार होगा तो वह यहीं से वापिस मुड़ जाएगा लेकिन ज्यादातर लोग इस गढ्ढे में गिरने को आतुर ही मिलेंगे। अब आदत के अनुसार हाय-हेलो होता है, G.M. और G.N. के मैसेजेस का आदान-प्रदान होता है..! अच्छा कोई तो और आगे बढ़कर रात रात भर जगराता करता है, और अंतिम चरण में वही अटल प्रश्न "थाना थाया?" खेर, फिर आदतानुसार व्यवहार बदलेंगे। एकदूसरे की डली हुई आदतों के आश्रित होंगे, एक दिन भी बात न हुई तो इनकी दुनिया बेरंग हो जाती है। वही आदतके अनुसार न चलने के कारण पूरा दिन गुस्सेल सांड की तरह इधर उधर सिंग मारते घूमते रहेंगे.. आदत भंग हुई है न भाई..!!!


    (दिनांक : ०१/१०/२०२४, १:३९)


***


शीशे में खुद को न देख पाने की सुबह

    आज सवेरे साढ़े छह उठ तो गया था, ब्रश करने तक पहुंचने कि हिम्मत दिखाई शरीर ने, पर शीशे में खुद के चहरे को न देख पाने तक आंखे बंद हो रही थी, मुड़ा और वापस सो गया। फिर सीधे ही आठ बजे आंखे खुली.. अपन तो दीवाली को भी ऑफिस पर हाजिर रहते है। तो बस अभी ऑफिस में बैठे लिख रहा हूं.. 


ऑफिस, चाबी और मल्टीटैलेंटेड होने की उलझन

    सवेरे घर से निकलते समय ध्यान में आया कि मेरे ऑफिस के केश-लॉकर की चाबी नही मिल रही है। थोड़ी देर तो भयंकर टेंसन हुई, बहुत याद किया कहाँ रखी थी, रात को ऑफिस से निकलते हुए साथ ली थी या नही वह भी याद नही आ रहा था, घर से निकलकर पहली ही दुकान पर एक सिगरेट ली.. भागा भागा ऑफिस पहुंचा तो पाया कि चाबी लॉकर में ही लटकी हुई थी, तब जाके राहत हुई। 


जबरजस्ती नहीं, दिल से लिखना चाहिए

    कई बार जल्दबाजी में या फिर कहीं और ध्यान हो तब ऐसा हो जाता है। आजकल जीवनी ही ऐसी है, मेरे जैसे लोग मल्टीटेलेंटेड होने के चक्कर मे हर विषय का अधूरा ज्ञान पाकर जमीन से दो फिट ऊंचे चलने लगते है। या फिर कोई कोई तो ऐसे भी होते है कि बस मैं ही हूं.. मेरे बिना तो कोई काम हो ही नही सकता। हमारे आसपास यहवाले खूब दिखते है जो सोचते है मैं ही सर्वेसर्वा हूं, मुझे सब पता है, यह काम हो ही जाना चाहिए। कूपमण्डूकता मरवायेगी किसी दिन..!


    और.. और.. क्या लिखा जाए ?

    "जबरजस्ती नही लिखना चाहिए..!"


    (दिनांक : ०२/१०/२०२४, १०:०६)

|| अस्तु ||


"क्या आपको भी आदत और लगाव के फर्क ने कभी उलझन में डाला है? या परिश्रम की रातों ने थका कर भी सुकून दिया है? नीचे लिखिए अपनी दिलायरी…"

बरसात, ऑफिस और सरफिरा सपना
→ ऑफिस और व्यक्तिगत जीवन की कशमकश।

#दिलायरी #शारीरिकथकान #लगाव #आदत #रातकीबात #मनकीडायरी #प्रेमऔरथकान #डायरीलेखन #थकाहुआमन

Post a Comment

0Comments
Post a Comment (0)