आभा या प्रभाव? कौन किस पर भारी?
आभा (AURA) सचमे होती है क्या? वैसे मुझे स्वानुभव से समझ नहीं आया, पर इतना जरूर जान पाया हूँ, की मेरे ही मित्रो में किसी एक के साथ होता हूँ तो उत्साह से भरा रहता हूँ, दूसरे के साथ होता हूँ तो गंभीरता छा जाती है। लेकिन यह अनुभव तो मेरा हुआ। लेकिन उनका क्या?
मुझे तो पता ही नहीं जो मेरे संपर्क में आते है उनपर मेरा क्या प्रभाव है? हालाँकि यह तो सेल्फिश साउंड करता है... लेकिन एक उत्कंठा तो है जानने की। क्योंकि मेरे तो पुरुष होते हुए भी मूड स्विंग्स होते है। शायद कुछ न कुछ पढता रहता हूँ इस लिए? छोड़ न यार होता होगा कुछ ओरा-फोडा.. किसी दिन यह फोड़ा फूटेगा तब जान लेंगे..
मन की तृप्ति और लाइक का गणित
आजकल मैं YQ पर किसी लहलहाते खेत में कूदते टिड्डे की माफिक यहाँ से वहाँ फांद रहा हूँ..! जिसकी ID में गिरा शायद उसे नोटिफिकेशनो की छड़ी लगती है। अब वास्तव में होता ऐसा है की शायद जिसकी आईडी में जा गिरा हूँ वह ऐसा सोचता होगा की इसने अपने लेख पढ़वाने के लिए मेरे यहाँ नोटिफिकेशन्स बरसाई है, और फिर वह मेरे यहाँ धड़ाधड़ लाइक्स की बौछार लगाता है।
मेरा शुरू से ऐसा ही है की पढ़ना है तो अगला-पिछला सब पढ़ो, इस चक्कर में उसकी पूरी आईडी छान लेता हूँ.. क्योंकि मेरा मन कई बार भरता नहीं पढ़ते हुए। एक अतृप्ति की घेलछा छाई रहती है। फिर मैं और पढता हूँ.. कई बार ऐसा हो चूका है, आज भी होता है। एक मित्र है, कई दिनों से उन्हें पढ़ा नहीं था, उनकी आईडी में जा गिरा.. लम्बी कहानिया, दो-पंक्तिया, मिम्स, सब पढ़ लिए..
हमने पढ़ा, अब आप भी पढ़िए – क्या ये सौदा है?
दूसरे दिन इंस्टा पर मेसेज आया, स्टोरी पर ब्लॉगपोस्ट की लिंक उन्होंने पढ़कर सराही..! वो YQ पर पुराना कहावत सा बन गया था कि "हमने आपको पढ़ा आप भी हमे पढियेगा.." लोगो ने वास्तव में इसे गंभीरता से लिया है..! मैं तो पढता हूँ मेरी तृप्ति को पोषने के लिए, पर आप इसे उपकारभावमें तो परिवर्तित न करो..!
खेर ! जो भी हो, जो भी होगा, जो भी हुआ, सब देखी जाएगी प्रियंवदा ! अपने को क्या है.. अपने को तो बस स्ट्रीक मेन्टेन करनी है। ठीक है न?
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"तो बताइए प्रिय पाठक,
क्या आप YQ की उस परंपरा को मानते हैं — 'हमने पढ़ा, अब आप भी पढ़िए'?
कमेंट में लिखिए — और हाँ, अगर इस डायरी में आपको भी अपनी कोई हल्की-सी छाया दिखी हो,
तो एक लाइक दीजिए…
क्योंकि आभा चाहे दिखे न दिखे, आपकी प्रतिक्रिया ज़रूर महसूस होती है!"
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ये भी पढ़ें: जब निराशा से मैत्री हो जाती है...
("जब आशा भी चुभने लगे और निराशा गले लगने लगे, तब क्या करे मन का पेंच...?")
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