The Alchemist और आत्म-साक्षात्कार की यात्रा || The Alchemist and myself...

0

विश्वासघात: जब अपेक्षाएं टूटती हैं

    विश्वासघात वह आघात होता है, जो अप्रत्याशित रूप से आता है। अगर तुम अपने दिल को अच्छी तरह से जानते हो, तो वह तुम्हारे साथ विश्वासघात कभी नहीं कर पाएगा, क्योंकि तुम्हे उसके ख्वाबों और ख़्वाहिशों की जानकारी होगी, और तुम्हे यह भी मालूम होगा कि उनसे कैसे निपटा जाए।
 - The Alchemist


The Alchemist की आत्मिक यात्रा और उसका प्रतीकवाद

    पता नहीं प्रियंवदा ! लोग इतनी दार्शनिक बाते कैसे कर लेते है। एल्केमिस्ट पढ़ ली, स्वप्न के पीछे इतना लम्बा सफर... वैसे बहुत सी अजीब भी लगी। क्योंकि यह शायद अरेबियन नाइट्स और माईन कॉम्फ के बाद बहार की किताब पढ़ी थी। किताब में सिर्फ कहानी नहीं होती, एक संस्कृति की झलक दिखती है। अपने यहाँ पिता कभी पुत्र को छोड़ता नहीं, न ही समझदार पुत्र। क्योंकि अपने यहाँ संस्कृति है कुटुंब की। वहां नहीं है, उस किताब में। वहां अकेला आदमी, अकेला जीवन, अकेले ही सब कुछ करना है। 


    वह उस खजाने की खोज में निकला जहां से निकला था अंत में उसे वहीँ पर खजाना मिला.. लेकिन जो सफर का रोमांच है, सफर का अनुभव है, सफर का शिक्षण है शायद वो उसे नहीं मिल पाता अगर उसे सीधे ही खजाना मिल जाता। वह कीमियागर नहीं बन पाता, वह प्रकृति के संकेतो को नहीं सिख पाता। लेखकने लड़के को कहीं नाम ही नहीं दिया था, ज्यादातर पात्रो को नाम नहीं दिया गया था, ताकि पाठक खुद किसी की कल्पना करे। या फिर स्वयं को उस लड़के के पात्र में अनुभव करे। अच्छी किताब थी, इतना ही कहूंगा, क्योंकि पूरी कहानी यहाँ लिख कर रिपीट कौन करे?


मेरे एकांत की परिभाषा

    विश्वासघात की अच्छी समझ लिखी है ऊपर, उस बुक में। विश्वासघात वैसे एक दृष्टि से देखे तो हमारी परिकल्पना साकार नहीं हुई, या हमारी अपेक्षा पूरी नहीं हो पायी उसी का एक नाम है। लगभग सभी ने कहीं न कहीं इसे अनुभव किया ही है। सबके जीवन में कहीं न कहीं इसका साक्षात्कार हुआ ही है। कई अपेक्षाए होती है, यात्रा करनी होती है। आजकल तो ट्रेंड भी सोलो ट्रेवलिंग का। अच्छा है, स्वयं से साक्षात्कार, स्वयं की क्षमता का परिक्षण और स्वानुभव से रूबरू होने का उत्तम जरिया है यह। एकांत मुझे भी पसंद है। पर मेरा एकांत थोड़ा सा अलग है। समुद्र के किनारे क्षितिज पर नजर गड़ाकर बैठे रहना, या फिर बीहड़ में किसी वृक्ष के तले किसी जलाशय में उठते वमल-तरंगो को निहारना, या फिर टेकरी की छोटी पर से दूर दूर तक बस कुछ तो ढूंढते रहना। 


    यहाँ कोई पुकार सुनाई देती है। सोमनाथ के समुद्र पर इतनी चहल-पहल के बावजूद मैं क्षितिज पर एकाग्र हो पाया था। गिरनार और हस्तगिरि के शिखर पर से चारोओर फैली एक धुंध में मुझे एक अलग ही शांति सुनाई पड़ी थी। आँखे बंद करके हवाओं को अपने चेहरे पर अनुभव करना, आसपास की चहलकदमी को अनसुना करके कहीं दूर से आती आवाजों को सुनना, पागलपन लग सकता है, पर अनुभव की दृष्टि से नहीं। सबसे बड़ा विश्वासघाती समय है। अपने सारे आगामी निर्णयों को समय ही बना और बिगाड़ सकता है। मेरे दो गंतव्यों को समय ही साकार नहीं होने दे रहा। बनारस की गंगा की कल्पना जो मेरे मन में है, वह साकार नहीं हो पाती क्योंकि समय विश्वासघात करता है।


अनुमति और अनुभव का संतुलन

    अनुमति.. यह भी एक बड़ी बला है। इसने भी कई स्वप्नों को साकार होने से रोक रखा है। जरुरी भी है। इसका आदर बनाए रखना बहुत जरुरी है। क्योंकि इसी के प्रभाव से कई बार कोई अनहोनी होती रुक जाती है। अनुभवी की अनुमति खूब मायने रखती है। कोई मार्ग प्रशिक्षण में, पथिक से ज्यादा अनुभव किसके पास होता है? तो वहां पथिक की अनुमति के बिना चलना अनेको संकटो से भरा हो सकता है। या फिर उस पथिक की अनुमति और आदेश उस पथ को सुलभ और सुगम बना देते है। 


सफर, स्वप्न और प्रतीक्षा की प्यास

    तभी तो अनुमति का अपना महत्त्व है, क्योंकि विषमताओ से लड़ने में ऊर्जा व्यर्थ करने से अच्छा है अनुमति के आश्रय में उस पथ का और विस्तृतीकरण में वह ऊर्जा उपयोगी हो। ताकि फिर कभी कोई उस पथ पर चले तो उस पथ को और भी आगे बढ़ा सके। यही शायद प्रकृति का नियम है, परिवर्तन का नियम है, नूतन संस्करणों में ढलना इसी लिए आवश्यक होगा, और अनुमति का माहात्म्य बना रहेगा।


    आज इतना काफी है प्रियंवदा ! मैं भी कई अनुमति, विश्वास, और सफर की आशा में प्यासा हूँ।


|| अस्तु ||

#TheAlchemist #PauloCoelho #Dilayari #आत्मसाक्षात्कार #विश्वासघात #एकांत #अनुमति #SpiritualJourney #TravelWithin #GujaratiWriter


***

Post a Comment

0Comments
Post a Comment (0)