कहानी हो या वास्तविकता.. जब तक आकर्षण, आनंद न हो तो उसे घसीटना ही कहा जाता है। || भूलभुलैया ३. || Be it a story or reality... unless there is attraction and pleasure, it is called dragging. || Bhool Bhulaiyaa 3 ||

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कुछ बाते, चीजे ऐसी हो जाती है, जिन्हे आगे बढ़ाई जाए, तो पहले जैसी नहीं होती.. या फिर पहली बार के आकर्षण जैसा दूसरा अनुभव कभी नहीं होता। क्योंकि वह एक ही बार की प्रक्रिया है। उसमे जो भी नूतनता थी, वह दोबारा नूतनता नहीं आ पाती। कोई खाने की चीज हो जैसे, पहला अनुभव हुआ, पहला स्वाद चखा, दूसरी बार भी बिलकुल पहले जैसा ही स्वाद आना थोड़ा असंभव है। हाँ, कोई कोई कारीगर, एक टेस्ट को मेन्टेन रख पाते है। लेकिन ज्यादातर प्रसंगो में पहली अनुभूति दोबारा कभी भी अनुभव नहीं की जा सकती। चलो ज्ञान या कुछ लाक्षणिक बाते आपने पढ़ ली, अब मुद्दा भी बता देता हूँ। कुछ नहीं, भूल भुलैया ३ देखि है आज। आज तो नहीं वैसे कल रात्रि को शुरू की थी। लेकिन निंद्रा, और ऑफिस के चलते आज अभी दोपहर को पूरी कर पाया। वो बात तो सच है कि अब बॉलीवुड में वह दम नहीं रहा। क्या बनाया है, मेरे हिसाब से तो बेकार ही फिल्म है। यह जो हॉरर कॉमेडी के नाम पर कुछ भी बनाए जा रहे है उन पर पाबंदिया लगनी चाहिए। निर्मला मेडम को इनपर असंख्य गुना टेक्स डालना चाहिए। ताकि ऐसा मुजस्सिम्मा फिर कभी बने नहीं।



नहीं ! मतलब फिल्म कहना क्या चाह रही है? सबसे बड़ा मुद्दा यही समझ नहीं आया। चलो मनोरंजन के दृष्टिकोण से देखु तब भी समझ नहीं आता कि फिल्म में हो क्या रहा है? कभी मंजुलिका आ रही है। कभी अंजुलिका आ रही है। फिल्म में कई जगहों पर कार्तिक आर्यन अक्षय कुमार को मिमिक कर रहा है ऐसा लगता है। पहले मुझे फिल्मो का, फ़िल्मी गानो का बड़ा शोख था, अब उतना नहीं रहा। या फिर शायद अबकी बॉलीवुड फिल्मे इतना आकर्षण नहीं बना पा रही। इस मामले में साऊथ है, अपनी कहानिया, अपना प्रभाव हर फिल्म में बनाती ही है। यह भूल भुलैया २ भी कोई इतनी दमदार नहीं थी। मंजुलिका और अंजुलिका नाम के दो केरेक्टर्स ले आए थे, लेकिन अक्षय वाली भूलभुलैया को नहीं भुला पाती एक भी। उस कहानी में दम था। और ये जो दो भाग बनाए है, उन्हें देखकर लगता है, कहानी को घसीट रहे है फिल्म बनाने के नाम पर। अच्छी भली कहानी थी, एक मेन्टल हेल्थ इस्स्यू के नाम पर बनी भूल-भुलैया में अब मेंटल हेल्थ के बदले भूत-प्रेत की कहानिया बना रहे हो। कहाँ ले जा रहे हो..? मत बनाओ चचा ऐसा सब..


प्रियंवदा.. कहानी हो या वास्तविकता.. जब तक आकर्षण, आनंद न हो तो उसे घसीटना ही कहा जाता है। जैसे मैं तुम्हारे पीछे घसीटा आता हूँ। क्यों? पता नहीं। शायद आकर्षण जिम्मेदार है। वही पहले आकर्षण का सिद्धांत शायद, प्रथम आकर्षण जितना जोरदार दूसरा कुछ नहीं हो सकता। पहले स्पर्श सा अनुभव फिर कैसे होगा, क्योंकि फिर या तो स्पर्श की आदत हो जाती है, या फिर अनुभव उत्सुकता मिटा देता है। जैसे तुम मेरी कल्पनाओ में बसी हो, कहीं नहीं जाती, क्यों? क्योंकि मैं तुम्हे कल्पना से भी कैसे जाने दूँ? अब तुम मेरे पास मात्र मेरी कल्पनाओ में ही तो हो। वास्तविकता तो कईं किलोमीटर के फासले की है। जो न तुम मिटा पाओगी, न मैं। तुम्हारा स्वर आज भी कभी कभी मेरे कानो में गूंजता है। उस दिन तुमने पहली बार जब मेरा नाम लिया था। वही अंदाज, वही आवाज की मीठी रणक, आज भी मुझे उसी तरह याद है जैसे याद होता है बारमासी को प्रतिदिन खिलना। कैसा भी दिन हो, धुंध हो, वर्षा हो, अगन बरसती धूप हो, या कड़ाके की ठण्ड। बारमासी उगती है, उसकी कलियाँ खुलती है, खिलती है। उसी तह तुम भी प्रतिदिन मेरे मन में खिलती हो, और मैं बस देखता हूँ। तुम्हारे मुख को, तुम्हारे सौंदर्य को। लेकिन फिर कोई आता है, कहता है, "मेरे पास HD में भूलभुलैया ३ है, देखनी है?" और मैं उसे ना नहीं कह पाता हूँ। काश मैंने "ना" कही होती।


 || अस्तु ||


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