आज तुमसे क्या कहूं प्रियम्वदा? हररोज तो यही तुमसे कुछ न कुछ उटपटांग बाते करता रहता हूँ.. लेकिन आज जैसे बातो का कूप खाली हो चुका, जैसे सरोवर सूख गया, बादल खाली हो गया। प्रतिदिन कुछ न कुछ लिखने की जो यह चेष्टा है, या एक स्ट्रीक बना रखी है, वह न जाने कब तक मैं कर पाउँगा.. दिन भर हुए प्रसंग से लेकर कल्पना की लेखनी रोज रोज तो नहीं चलाई जाती.. क्योंकि वही बात है, जितना लिखना हो उससे कई ज्यादा पढ़ना होता है, लेकिन पढ़ने के नाम पर तो फिलहाल यूट्यूब में प्रसारित होते वर्ल्ड अफेयर्स ही सुन रहा हूँ। वही लिख दूँ क्या जो याद आ रहा है? एक अनुच्छेद यही लिख देता हूँ। तो कल यही सुन रहा था की आने वाले चार साल मतलब की ट्रंप के राष्ट्रपति पद सँभालने के समयकाल में वेस्ट एशिया (मिडल ईस्ट) के नक़्शे बहुत बदलने वाले है। जैसे अभी से इजराइल, गाज़ा, सीरिया के नक़्शे तो बदल चुके है। लेबनॉन भी थोड़ा बहुत बदला है। एक नया देश दुनिया में जन्मने वाला है ऐसा समाचार है। सोमालिया गर्भधारण किया है सोमालीलैंड का। सुना है ट्रंप चचा आते ही सोमालीलैंड को मान्यता देंगे। अब ट्रंप चचा के साढ़ू, और समधी जैसे ताइवान, जापान वाले भी चचा के नक़्शे कदम पर चलते हुए सोमालीलैंड को नया देश स्वीकार कर लेंगे। करना पड़ेगा, क्योंकि वे लोग चचा पर कुछ ज्यादा ही निर्भर है। अब जिन पर निर्भरता होती है उनका आदेश सरमाथे पर रखना पड़ता है। वही गरज में गधे को बाप कहना। ऐसा है, चचा को हिन्द महासागर में एक और मिलिट्री बेज़ चाहिए। जिबोटी में है लेकिन वह थोड़ा अंदर पड़ जाता है, यह सोमालिया हाइवे टच (आई मीन सी-वे टच) प्रॉपर्टी है। तो चच्चा को यहाँ बेज़ के लिए जमीन मिल जाए तो न्यारे-व्यारे हो जाए। सोमालिया तो दाद नहीं दे रहा, तो चचा ने वहां के सोमालीलैंड की मांग कर रहे लोगो को अपना सपोर्ट देकर नया देश बनाएँगे। फिर वहां जमीन लीज़ पर लेंगे, और हाइवे (सी-वे) टच प्रॉपर्टी का लुत्फ़ उठाएंगे। एक तरफ गवर्नर जस्टिन ट्रुडो जगत जमादार अमरीका की बिजली काटने पर उतारू हुआ है। क्योंकि चचा ने ट्रुडो को कहा था, "केनेडा को अमरीका का इक्यावनवा राज्य बना दो।" ऐसी जिगर तो चचा के पास ही है। हमने तो कभी नेपाल से नहीं कहा कि, "आओ, सखी आन मिलो।" जबकि भारत आज़ाद हुआ तब नेपाल राणा ने भारत का राज्य बनने की इच्छा जाहिर की थी लेकिन तब अपने वाले चचा ने मना किया था। एक वो चचा है जो पडोशी को कहते है आओ, एक अपने चचा थे जो कहते थे जहाँ हो वहीँ रहो।
अभी आगे क्या लिखू? कुछ भी नहीं सूझ रहा, तुम ही बता दो प्रियंवदा...! चलो मैं ही बताता हूँ कुछ, तुम तो बस अपने ख्यालो में रहो... IG आज तो जैसे सुबह के बाद खोला ही नहीं.. फालतू के कामो में व्यस्त हूँ। ऑफिस में कभी कभी बेमतलब के काम भी होते है। जैसे कि कोई ऊपरी अधिकारी सामने बैठा तो खाली फ़ोकट में ही कंप्यूटर के कीबोर्ड पर उंगलिया पटकना, और क्रोम के किसी एक पेज को बार बार रिफ्रेश करते रहना, या फिर कुछ ऍप्लिकेशन खोलते रहना और बंद करते रहना, ताकि आप व्यस्त दिखो.. क्योंकि व्यस्त होने से ज्यादा दिखना जरुरी है। तभी तो लगेगा कि "हाँ, आदमी बहुत काम का है।" दूसरे लोग तो ऑफिस + फिल्ड वर्क के है तो वे तो बाहर कुछ टाइमपास कर आते है। अपना यही 6X6 में पड़े रहना फिक्स है। तो बस दिन काटना होता है। वो क्या है अपन थोड़ा फोर्मलिटी में मानते है। जैसे कोई पूछे की सबसे ज्यादा स्फूर्ति कौन दिखा सकता है? तो जवाब दिया जाए कि, जूठ, अफवाह.. इससे ज्यादा स्फूर्ति किसके पास है, कुछ ही देर में पूरा गाँव, शहर, जिल्ला तक इसकी स्फूर्ति का कायल हो सकता है। जूठ या अफवाह कितनी जल्दी से फैलती है, उसमे भी यह सोसियल मिडिया, कनेक्टिंग पीपल.. पीपल के पत्तो से भी तेज लहराता हुआ जूठ हर जगह घूम आता है। एक मुंह से अगले कान, एक फोन से दूसरी चेट में, एक मेसेज से पुरे ग्रुप में.. सत्य बहुत धीरा है। वह जब तक पहुँचता है, जूठ बहुत कुछ बदल चूका होता है।
चलो यार नहीं लिखा जा रहा आगे कुछ...