अब क्या बताऊँ प्रियंवदा..! आज तो सुबह सुबह ऑफिस पहुँचते ही, सिक्युरिटी गार्ड ने बताया कि प्रयागराज के लिए गाडी आया है। वही बात हो गई, आकर्षण का सिद्धांत... Law of Attraction..! बड़ी इच्छा है, कुम्भ प्रयाग, बनारस, और अयोध्या भी। लेकिन बात वही है, इच्छा आचरण में नहीं उतरती। फिर ऐसे लगता है जैसे ब्रह्माण्ड मजे ले रहा है। लगातार ४ दिन से प्रयाग और बनारस से जुडी बाते ही आसपास के वातावरण में जैसे गुंजित हो रही है। बस तुम कुछ संकेत नहीं देती प्रियंवदा..!
कल रात को समाचार देखते हुए ख्याल आया। लोगो के मन में मथुरा की बात चल रही थी, बीचमे से संभल खोद दिया। अब एक पूरा समुदाय असमंजस में है। हर तरफ से out of syllabus ही हो रहा है, अयोध्या, मथुरा और काशी के अलावा, कभी लखनऊ में मंदिर खोज लिया जाता है, तो कभी तो सीधे अजमेर की ख्वाजा वाली दरगाह। मुझे तो डर इस बात का है की किसी दिन वो सऊदी अरब वाली जगहों का उत्खनन ना कर दिया जाए। जैसे अभी यह लोग समाचार चॅनेल्स के हिसाब से उन्नीस कूप यानी कुँए खोद खोद कर निकाल रहे है। मुझे समझ यह नहीं आ रहा है की, चलिए सारे कुँए, बावड़ी और मंदिर आप खोज भी लोगे तो आगे क्या? मानिये कि आपका उत्खनन कार्य पूर्ण हुआ, आपने सम्भल में सब पुरातन खोज कर दी, फिर क्या हो जाएगा उससे? सीधी दृष्टि से एक बात तो तय है की आज के समय जो मंदिर है, वहां भी उतने व्यक्ति नहीं होते, आरती समय पर पुजारी के सिवा देव और पुजारी दो ही मंदिर में होते है। फिर इन मंदिरो के रख-रखाव का खर्च कौन उठाएगा? दूसरी बात, वे जो कुँए खोजे है, क्या उन्हें फिर से पानी से भरा जाएगा? और लोकोपयोग में लिया जाएगा? या फिर किसी के गिरने के लिए उन्हें खुला रखा जाएगा? आज के समय में कोई स्त्री सर पर मटका लेकर पानी भरने जाने की सोच भी नहीं सकती, ना ही हम स्वयं भी देखना चाहते है। फिर उन कुओं का अर्थ क्या? उत्खनन हड़प्पा जैसी कोई सभ्यता का करते है तो बात अलग है। लेकिन बसे बसाए शहर में अभी के मंदिरो में गिनती के २-४ लोग जाते है वहां आप इतने सारे मंदिर खोज भी लेते है तो लाभ क्या? क्या यह सरकारी रुपियो का व्यय नहीं हुआ? कुँए खोद रहे है, नल के ज़माने में।
अभी दोपहर का एक बज रहा है। थोड़ी थोड़ी क्षुधा जागृत होने लगी है। शहर में एक नए नाश्ते वाला खुला है, सोच रहा हूँ उसे आज लाभ दिया जाए।
प्रियंवदा ! शनिवार के दिन काम का अधिक भार होता है। स्ट्रेस लेवल सारे रिकॉर्ड तोड़ जाते है। ७ बजे सरकारी वेबसाइट बंद हो जाए उससे पहले सारी बिलिंग्स निपटा लेनी पड़ती है, क्योंकि अगले दिन रविवार को छुट्टी होती है। हालाँकि छुट्टी तो सरकारी बाबुओ की होती है, हमें तो वही सन्डे हो या मंडे, रोज खाओ डंडे वाला हाल है।
प्रियंवदा.. आदत लगने लगे तो एक निश्चित दूरी बना लेनी चाहिए.. हैं ना? मुझे भी किसी की बड़ी गन्दी आदत लगने लगी थी, लेकिन सिगरेट की तरह यह भी छूट सकता है। सिगरेट की लत अब लत नहीं रही मेरी। तलब नहीं उठती। जैसे कुछ मैत्री होती है, दिन में एकाध बार बात न हो तो खाली खाली सा लगने लगे। तो समज लो की आदत लगी है...
वाह रे शनिवार, क्यों आता है भाई तू? या तो सन्डे चालु रहना चाहिए, या फिर शनिवार का भार कम होना चाहिए, अभी पौने नौ हो रहे है, और अपन ऑफिस में अब फ्री हुए है। शनिवार को रोकड़ मिलानी पड़ती है, हफ्ते भर में उड़ाए हुए के सामने आए हुए के बाद बची हुई रकम एक्यूरेट होनी चाहिए। हालाँकि हर शनिवार को एक माइनर हार्टअटैक आता ही है, क्योंकि एक्यूरेट तो छोड़िये, कोई वास्ता न हो ऐसी रकम सामने आ खड़ी होती है। अभी अभी पाई पाई जोड़कर रकम मिलाई है। यही जिंदगी है, क्षण क्षण से बनी हुई, और हम इसे लिखने में बर्बाद कर रहे है, और आप यह अमूल्य क्षण इसे पढ़ने में। (Lol..) कुछ दिन किसी के कहने पर बड़ी जोरशोर डेली एक पोस्ट इंस्टाग्राम पर करता था, लेकिन अब वो भी फिर से बंद हो गया है, रोज रोज कहाँ से पंक्तिया स्फुरे.. खदान तो है नहीं। भाई और भी बहुत काम है नौकरी के अलावा, रील्स देखनी होती है, यूटुब भी, खाली भी बैठना होता है, yq पर चक्कर मारना होता है, कुम्भ के सपने देखने होते है, अयोध्या तक का रोडमेप और खर्चा तैयार करना होता है, ख्याली पुलाव भी तो पकाने होते है। इन सब से समय मिले तो कुछ न्य सोचने, लिखने का समय मिले न प्रियंवदा..!!!
फिर भी तुम्हे जरूर याद करता हूँ.. बस तुम ही नहीं याद... छोडो.. तुम्हारी मर्जी प्रियंवदा..!!!
👍✨🎭
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