शनिवार की दिलायरी: ऑफिस, बाजार और ठंडी हवा || दिलायरी : ०४/०१/२०२५ || Dilaayari 04/01/2025

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बह की सुस्ती और देर से उठने की कहानी

    रात को जल्दी सो जाना चाहिए प्रियम्वदा। सुबह उठा नही जाता कतई। कल रात को लगभग साढ़े बारह आंख लगी थी। तो सुबह जल्दी उठा भी नही गया। भागा भागा सारे काम निपटाए, और ऑफिस पहुंचा तो साढ़े नौ हो चुके थे। दोपहर तक तो ब्लॉग की स्टोरियां चढ़ाना और रिल्स देखना हुआ। लंच टाइम में निर्मला आंटी को Tax Collected at source के रूप में थोड़ा पुष्प नही तो पुष्प की पंखुड़ी जितना योगदान दिया। शनिवार बड़ा ही भारी होता है।



प्रयागराज महाकुंभ: एक आयोजन, हज़ारों रोजगार

    लग-भग मार्किट में प्रयाग के महाकुंभ का ही ऑर्डर है। तीन गाड़ियां तो अपनने भरी है। मार्किट से तो कितनी गयी होगी? यह आयोजन मात्र कितने रोजगार खड़े कर रहा है। इस आयोजन भर से उत्तरप्रदेश की अर्थव्यवस्था को बड़ा बूस्ट मिलता है। व्यापार बढ़ता है, रुपिया घूमता है। दोपहर बाद कुछ बैंकिंग की एंट्रीज़ और रोकड़ मिलाने में माथा खूब दर्द हुआ। अभी भी कुछ रकम कम ही पड़ रही है।


    ठंडी तो है नही लेकिन फिर भी आग सेंकता बैठा हूँ। अभी अभी कुछ लिखा है, और यह दिलायरी का अलग पन्ना लिखने लग रहा हूँ। कल है तो रविवार लेकिन उठना तो कल भी जल्दी ही पड़ेगा। एक फंक्शन है, जाना पड़ेगा। सुबह नौ बजे।


    ठीक है फिर, शुभरात्रि प्रियंवदा।

    (०४/०१/२०२५, ११:०४)


|| अस्तु ||


शनिवार की भारी हवा आपको भी परेशान करती है? तो ज़रा यह पुरानी दिलायरी भी पढ़िए —
"वाह शनिवार! तू क्यों आता है भाई?" — इसमें शनिवार की रग-रग खोली गई है.. बड़े प्यार से, और थोड़ा गुस्से से भी!

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