अच्छा ! भले ही आल्टो हो लेकिन संभाल तो उसकी भी लेनी पड़ती है। सुबह सुबह माताजी क्रोधित हो चले, बोले, 'नवाब साहब ! घोडा पालते हो तो उसे अस्तबल में ठीक से बांधा करो।' मुद्दा इतना था कि कार को कवर ढांकना था। सुबह सुबह मातृश्री कि फटकार से कार को कवर ढांक दिया। फिर वही, घर से जगन्नाथ, जगन्नाथ से दूकान, दूकान से ऑफिस। समय साढ़े नौ। ऑफिस पहुँचते ही सबसे पहले दिलायरी पब्लिश की। और स्नेही को शेयर की, कल इतनी निंद्रा आ रही थी की और कुछ लिखा ही नहीं।
आज शायद मुहूर्त अच्छा था, सुबह से रोकड़ की एंट्रीज खाते में उतार रहा था। कुछ छोटे मोठे बिल्स थे बनाने, लेकिन लगभग काम निपट गया खातों का। दोपहर को गजा बोला चलो मार्किट। अपना क्या है, मुंह उठाकर चल दिए। एक बात बड़ी विचित्र है। मोटरसायकल का अगले पहिये पर प्लास्टिक या लोहे का मडगार्ड होता है। ज्यादातर लोग उसे पंखा बोलते है। समझ नहीं आता, न तो वो पंखे जैसा दीखता है, न ही वो हवा फेंकता है। किसने और क्यों, ऐसी क्या नौबत आन पड़ी थी की उसे पंखा नाम दिया गया? गजे की मोटरसायकल का अगला मडगार्ड टूट गया था, तो बदलना था। गए गैरेज, कुछ ही मिनिटो में नया पंखा लग गया। फिर वही नाश्ता-पानी, और तीन बजे वापिस ऑफिस। फिर से वही रोकड़ से खाता। घिसो पेन और हाइलाइटर।
कान में ब्लूटूथ लगा ही पाता है मेरे। आँखों से अंधा और कानो से बहरा जल्दी होऊंगा मैं। दिनभर एक गाना बजता रहा। "भँवरसा थारी म्हाने ओळु ओळु घणी आवै.." आज शाम को धड़ाधड़ नोटिफिकेशन आ धमकी इंस्टा की। एक पोस्ट पर किसीने ३-३ कमेंट्स किये, कुछ भी समझ न आया। उत्सुकता हो चलती है, कौन है यह? और कमसे कम समझ आए ऐसी ही कमेंट कर दे कम से कम। एक चक्कर और समझ नहीं आता, लोग फॉलो करते है, फॉलो बेक लेते है, और चल देते है। अबे तुम मेरा फॉलो ही लेने आए थे क्या? आज तो शायद लेट होने वाला है। एक बिल बाकी है बनाना, और लगभग साढ़े आठ तक इंतजार करना पड़ेगा। इस लिए सोचा यही दिलायरी लिख दूँ।
ठण्ड आज कुछ ज्यादा है। ऑफिस में तो नहीं लगती, पर बाहर निकलने पर अनुभव होती है। कल पंखा चलाना पड़ा था, आज बंध रखना पड़ा है, इतना ही फर्क है अपने यहाँ की ठंडी में। बस दिलायरी में और बाते करूँगा तो दिलायरी नहीं रहेगी।
(०७/०१/२०२५, २०:१५)