दिलायरी : 08/01/2025, 10:39 || Dilaayari ||

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गजब ही उतारचढ़ाव चल रहे है। कल रात साढ़े नौ तक जिस गाडी के बिल के लिए ऑफिस पर बैठा रहा। सुबह ऑफिस पहुंचकर वही केंसल करना पड़ गया। किसी और का लोडिंग किसी और में हो गया। मतलब परेशानी का लेवल अलग लेवल पर जा चुका है। लगभग पौने दस तक ऑफिस आ चूका था। काम तो था ही। फिर सवेरे और समाचार मिले, मेहमान आ रहे है। तो बस डेपो लेने भी जाना पड़ेगा। पता नहीं आज एक तो लगभग चार किलोमीटर का ट्रैफिक जाम था, घूमकर जाना पड़ा। रिटर्न वगैरह के लिए डाटा देना था। फिर घर पहुंचा, मोटरसायकल खड़ी की, और कार लेकर ऑफिस के लिए रवाना हुआ। नेशनल हाइवे पर चार किलोमीटर काटने में आधा घंटा लगा.. एक तरफ साहब जी कहते है अहमदाबाद से मुंबई बाई-रोड डेढ़ घंटे में पहुंचोगे ऐसी सड़क बनाऊंगा। अरे पहले जो है उसका तो कुछ करो प्रभु। एक तो अब अपनी सिटी भी महानगरपालिका बन चुकी है। समझ नहीं आ रहा खुशिया मनाऊं या दुखी होऊं। नई नई महानगरपालिका सेट होने में समय लेगी, तब तक खुदे हुए रोड पर मिट्टी ही डलवा देते जनाब..!



दुनिया मे सबसे अलग जमात शायद ड्राइवरो की है। सारी दुनिया एक तरफ और अकेला ड्राइवर एक तरफ। शायद घाट घाट का पानी पीते है इस लिए। शाम साढ़े छह तक कुछ काम धाम चला, एक-दो सेलरियाँ बांटनी पेंडिंग थी वे निपटाई, और फोन आया मेहमान का कि पहुंचने वाले है। ट्रैफिक को चीरते हुए बस डिपो पहुंचा। और फिरसे ट्राफिक को कोसते हुए घर पहुंचा। यूँ तो मुझे शांति चाहिए होती है, लेकिन कभी कभी बच्चो से खेलना ठीक लगता है। इतने बड़े होने के बाद तुतलाना, और खिलोने से खेलना पड़े तो शर्म तो नही लगती कमसे कम।


ठीक है, अभी साढ़े दस हो रहे है, दिलायरी यही तक ठीक है।

(08/01/2025, 10:39)

|| अस्तु ||


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