दिलायरी : १३/०१/२०२५ || Dilaayari : 13/01/2025

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जगा तो आज भी बड़े लेट से ही था। साढ़े नौ घर पर ही बज गए थे। जगन्नाथ पर पंडित पौने दस को भी तिलक लगाने जरूर आता है। दुकान पर थोड़ा धूम्र का सेवन किया, हाँ ! फिर से एक बार दिन की शुरुआत धूम्र से करने लगा हूँ। ऑफिस पहुंचते ही टोपी के हाथ की कड़क चाय, दिन का तो पता नही लेकिन सुबह और दोपहर का संधिकाल सुधार देती है। वैसे तो आज दिनभर कुछ भी न किया। लेकिन वेल्ला बैठा रहा हूँ यह कबूल नही कर सकता। वो क्या है थोड़ी ज्यादा आत्मालोचना लगती है। कल कार लेकर गया था तो अचानक से ध्यान आया कि कार में से मेरा डंडा गायब है। बहुत बढ़िया दंड था वो। पित्तल की कारीगरी वाला.. डंडे के दोनो सिरे और बीच-बीच मे पित्तल की पट्टियां जड़ी हुई थी, और पित्तल के तार का वर्क किया हुआ था.. नजर पड़ते ही लोग एक बार देखने मांग लेते। कार में हंमेशा मैं वह जरूर रखता हूँ। ड्राइवर सीट के नीचे। चार फुट का था। सर्विस से आने के बाद से वह दिखा नही।



समस्या यह है कि मुझे यह याद नही आ रहा कि सर्विस में दी तब कार में था कि नही। तो दोपहर को सर्विस स्टेशन पर चला गया, उससे पूछा तब उसने बताया कि कार से निकाला हुआ सारा सामान दिग्गी में रख दिया था। खेर, गया वो तो अब..


गजा साथ मे था, बोला नाश्ता क्या करेंगे? तो घूमते घुमाते एक जगह साउथ इंडियन नाश्ते वाला दिखा.. स्वाद अच्छा था। साउथ इंडियन में अपने यहां ज्यादातर इडली सांभर और मेंदुवदा, दालवड़ा चलता है। लेकिन मुझे इडली ही पसंद आती है.. दो-दो प्लेट दबाने के बाद पैसे देने गया तो गजा लपक के बोला, 'ज्यादा पैसे है क्या?' मैंने पूछा 'क्यो भाई?' तो बोला 'लगातार तीन दिनों से आप ही दे रहे हो..' तो मैंने हँसते हुए कह दिया, 'तुझसे ज्यादा पगार है ना मेरी..' और ठहाके लगाते वापिस ऑफिस की और लौट चले।


दिनभर कोशिश के बावजूद भी काव्य की दो पंक्तियां स्फुरित नही हुई..! वैसे ध्यान भी ज्यादा तो मोबाइल गेम में था। हाँ, दो दिन से मोबाइल गेम की लत लगी है। शुरू से ही ऐसा सिस्टम है, जिस पर मन लगा उस से ऊब न जाए तब तक पीछा नही छोड़ता। कोई गीत पसंद आ जाए तो हफ्तों भर वही सुनता रहता हूं। पढ़ने का मन हुआ तो लगातार कुछ भी साहित्य पढ़ता रहता हूँ। फिल्म्स देखने का मन हुआ तो एक ही साथ कई सारी लगातार कई दिनों देखते रहता हूँ। फिलहाल दुग्गल साहब को गेम में रस जागृत हुआ है।


शाम को किसी स्वजन के वहाँ भोज आमंत्रण था। लेकिन साढ़े आठ तो ऑफिस पर ही हो गए एक गाड़ी के बिल के चलते। फोन आने लगे कि अब पधारो, आपके अलावा कोई भी नही बाकी है। मैं पहुंचा। बैगन का भड़ता बना था। बड़ा अफसोस हुआ कि मैंने इतनी जल्दी क्यों की ऑफिस से निकलने की। अब उन्हें कौन समझाए की बैगन मेरा जन्मजात शत्रु है। मैं मुंह न देखूं उसका.. उसकी चुटिया पकड़कर अंतरिक्ष मे फेंक दूँ। लेकिन किसी और के घर मेहमान की तरह गए हो तो चुपचाप रोटी चबा लेनी चाहिए। गुड़ बहुत अच्छा होता है स्वास्थ्य के लिए। रोटी का साथ निभाता है।


फिर प्रीतम का फोन आया, और चला गया कुछ देर आग सेंकने.. अभी पौने बारह को यह दिलायरी का अंतिम वाक्य लिख रहा हूँ। ठीक है..


शुभरात्रि..
(१३/०१/२०२५, २३:४५)


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