दिलायरी : २१/०१/२०२५ || Dilaayari : 21/01/2025

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आज सुबह ऑफिस पहुंचा तब साढ़े दस बज चुके थे। कल रात को लगभग २ बजे घर पहुँच गया था। ढाई बजे तक शायद सो गया था। हाथघडी आधे घंटे पीछे चलने लगी है। सुबह सुबह हाथघड़ी में समय देखने के कारण धोखा हुआ। भागा भागा ऑफिस पहुंचा, ढेर सारा बिखरा हुआ काम मेरा ही इंतजार कर रहा था। वास्तव में तो समझ ही नहीं आ रहा था, कि काम शुरू कहाँ से किया जाए? सरदार को मेरे आ जाने से राहत जरूर हुई, लेकिन और काम पकड़ा गया। हिसाब-किताब दूसरे के भरोसे छोड़कर जाओ तब बड़े पंगे ही होते है। छोटी छोटी चीजे अक्सर दूसरा व्यक्ति भूल जाता है। क्योंकि उसका रोज का यह काम है नहीं। इन्शोर्ट डिटेलिंग में भूल निकल आती है। 




दोपहर को बाजार मुझे ही जाना पड़ा, क्योंकि मेरी छुट्टियों के दौरान गजा ही संभाल रहा था, और बड़ा परेशां हो चूका था। मुझे कल ही उसने फोन करके बता दिया था की मैं दोपहर बाद आऊंगा। मना नहीं कर सकता, मेरी गेरहाज़री संभाल लेता है वह। दोपहर को बाजार में एक चेक डालना था बैंक में, और फिर कुछ नाश्ता करने की भी जरुरत जान पड़ी। गाँव में दोपहर को भोजन की थोड़ी सी आदत भी लग चुकी है। लगभग ढाई बजे ऑफिस लौट आया.. और अँधेरा होने तक बस वही हिसाबकिताब चलते रहे..!


अभी साढ़े आठ हो रहे है, इतने दिनों तक सोसियल मिडिया होता क्या है, यही भूल चुका था। आज कुछ देर इंस्टा वगैरह पर टहला हूँ, एक बात और पता चली, जल्दबाजी में किसी की इंस्टा-स्टोरी में रिप्लाई देकर सोचा था की स्टोरी सेव रहेगी, लेकिन नहीं रहती। एक ब्लॉगपोस्ट पढ़नी थी। आज सोचता हूँ कुछ लिखने की। गाँव के मुकाबले यहाँ ठण्ड थोड़ी ज्यादा है। जल्दबाजी में सवेरे जैकेट लाना भी भूल गया था। लेकिन शायद उतनी ठण्ड नहीं है की जैकेट के बिना चले ही ना..!


ठीक है फिर, इतने दिन गाँव की आबोहवा लेने के पश्चात फिर से एक बार शहरी प्रदुषण में लौट आया हूँ। कल से फिर एक बार वही रेगुलर लाइफ..!










शुभरात्रि। 

(२१/०१/२०२५, २०:३३)

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