बारात, ब्रश और बिना रजाई की रात || दिलायरी : ०६/०२/२०२५ || Dilaayari : 06/02/2015

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सुबह की ठंडी शुरुआत और बासी मुंह की चाय

    कल जल्दी सो जाने के कारण सुबह साढ़े पांच को आंख खुल गयी थी। साढ़े छह बजे फिर से एलार्म बजा। जाग ही रहा था। समस्या यह थी कि सामान पड़ा था बेग में, बेग गाड़ी में, और गाड़ी होटल पर। बिना ब्रश किये चाय? अच्छी बात यह हुई कि पानी था, तो कुल्ला कर लिया। चाय पी उतने में दोस्त का फोन आ गया, बोला आ, चाय पिएंगे। लगे हाथ और बांसी मुँह एक और चाय.. ठंड कड़ाके की पड़ती है सुबह सुबह यहां। और दिन में उतनी ही कड़क धूप। पैदल पैदल होटल पर पहुंचे, तो वहां और बड़ी समस्या थी कि रात की महफ़िल में कुछ ओवर हो चुके वहीं पड़े रहे थे। 

होटल, शावर और टूथब्रश की जुगाड़

    कई देर तक बेल बजाने पर एक रूम खुला.. होटल अच्छी है, तौलिया, साबुन, शेम्पू सब था बाथरूम में। बस पानी ठंडा। कल तो गर्म पानी आया था, आज शायद भीड़ ज्यादा थी, गीजर भी काम किया नही। नमः पार्वती बोलके ठंडे पानी के शावर के नीचे खड़ा हो गया। थोड़ी देर ठंडा लगा, फिर सामान्य हो गया। बस इसमें एक बार हिम्मत दिखानी होती है। नहाते नहाते ही याद आया ब्रश करना भी बाकी है। होटल के बाथरूम में वे लोग use and throw के पैकेट वाले ब्रश भी रखते है, छोटी सी कोलगेट और एक ब्रश होता है। अपना काम हो गया। नाश्ता करने पहुंचे तो वहां भी एक बड़ा दाव हो गया।


रायता बनाम बासुंदी – नाश्ते की उलझन

    नाश्ते में बैठे उससे पहले लेडीज़ आ गई। तो उन्हें बिठा दिया गया। अब पिरसने वाला कोई नही, तो हम दो-तीन जने लग गई पिरसने.. नाश्ते में पूरी सब्जी और रायता था। हमारे यहां सुबह नाश्ते में चाय, पापड़ी, जलेबी, यह सब होता है, मुझे लगा यह रायता बासुंदी टाइप कोई मीठी आइटम है। सोच भी रहा था कि सुबह सुबह के नाश्ते में ऐसी मीठी आइटम होनी तो नही चाहिए। यह जब मैं नाश्ता करने बैठा तब चखा तो पता चला कि दहीं है यह तो..! होता है, बाहर निकलते है तो बहुत से अनुभव होते है।

    साढ़े ग्यारह करीब बारात की बस आ गई थी। जीवन मे पहली बार किसी बारात में जा रहा हूँ। सो किलोमीटर दूर जाना है। हमारा रिवाज अलग है, हमारे बारात नही जाती, वेल जाती है। राजस्थान का यह भूभाग बड़ा हरियाली सभर है। हर जगह सरसो की खेती हो रखी है। कोई कोई छोटे मोटे पहाड़ है। 

बारात का सफर और साफा बांधने की ड्यूटी

    लगभग साढ़े चार को बारात पहुंच गई थी। मैने उतरते ही वो साफा बांधने वाली duty पकड़ ली। लेकिन फायदा एक हुआ कि अपनी स्टाइल और यहां की स्टाइल भी अलग है। इस लिए ज्यादा मेहनत नही हुई.. बढ़िया हुआ। शाम होते होते वही दूल्हा बेंड बाजा के साथ आगे बढ़ता है। मंडप पर पहुंचकर आगतस्वागता होती है, यहां सबसे बढ़िया सिस्टम यही लगा कि एक तरफ महफ़िल जमती है, एकतरफ भोजन.. जिन्हें जहां इंटरेस्ट होता है वह उस ओर बढ़ जाता है।

    एक बात अभी याद आयी, ट्रेन का अनुभव सीखना चाहा था। किसी ने सिखाया की ट्रेन में तत्काल में टिकिट मिलती है चौबीस घंटे पहले। तो दोपहर को बारात निकले उससे पहले गढ़ी में बैठकर चेक किया, मुझे कुछ समझ न आया, तत्काल में भी नॉट अवेलेबल लिखा आ रहा था। फिर से किसी को पूछा, तो पता चला कि तत्काल टिकिट भी इस ट्रेन में नही मिलेगी.. सारी booked है। फिर वही हारे का सहारा बाबा बस हमारा.. बस में बुक करली कल दोपहर सवा दो की ..

गांव के चमचमाते रोड और नींद का संकट

    फिलहाल बस में बैठा हूँ। रम अच्छी खींच ली है। ठंड बड़ी ज्यादा है यहां। बारात लौट रही है, दूल्हा और कुछ उसके भाई रुकेंगे वहां। बाकी लोग लौट जाते है। समय हो रहा है साढ़े ग्यारह, रात्रि के। और बस दौड़ रही है, राजस्थान के रोड बड़े अच्छे है। गांवों के रोड भी.. या तो यहां बड़े वाहन कम चलते है, या फिर सरकार ने काम अच्छा किया है। अपने गुजरात मे बड़े वाहन खूब चलते है, मतलब बस, ट्रक और ट्रेक्टर। कोई रोड शायद ऐसा नही जहां गढ्ढा न हो। यहां गांव के रोड भी बड़े चमक रहे है। 

    नींद तो खूब आ रही है अभी, लेकिन बस में एक महाशय मिले है, शायद थोड़ा ज्यस सुरापान किया हो, बहुत बाते कर रहे है। और मुझे हाँ में हाँ मिलानी है। और कोई विकल्प भी तो नही। लगभग रात के डेढ़ बजे बारात की बस गांव लौट आई थी, ज्यादातर बाराती गांव के थे, हम चार मेहमान थे। पता चला टेंट वाला रजाइयां सारी ले गया। अब सोने को जगह तो है, लेकिन ओढ़ने को चादर नही।

    चलता है, शादी ब्याह में यही सब चलता है।
    (०६/०२/२०२५, २३:५८)

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प्रिय पाठक!
अगर आपने कभी रायता को बासुंदी समझा हो,
या बिना रजाई वाली रात काटी हो –
तो आइए,
शादी की सच्चाई पढ़िए:
कसुम्बापान और शादी की महफ़िल

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1Comments
  1. बढ़िया चल रहा है मतलब, यात्रा और विवाह !!

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