होटल से रावली – सुबह की शुरुआत
लिख तो रहा हूँ आज छह तारीख को.. क्योंकि कल पांच तारीख का दिन वैसा ही था जैसा एक शादी का होता है.. सुबह पौने नो से बस से उतरते ही हाइवे पर होटल में ही रूम रखे हुए थे। बढ़िया फ्रेश होने का इंतेजाम था..! नाहा-धोकर शादी वाले घर पहुंचा, राजस्थान में रावला/रावली कहते है। फिर दोपहर तक तो बस टाइमपास किया। खानापीना खाकर फ्री हुए तब दोपहर बाद और फंक्शन थे।
कसुम्बापान और महफ़िल का दबाव
शाम को संगीत, संगीत से पहले कसुम्बापान.. कल रात की अधूरी नींद के कारण दिनभर सरदर्द रहा। पीने बैठा लेकिन सरदर्द पहले से था, कुछ मजा भी न आया, और आधी बैठक छोड़ना भी बड़ा गलत दिखता है। अच्छा, महफ़िल में बैठना भी एक कला है, क्योंकि यहां इज्जत पर बात उतर आती है। अपना एक गिलास भरकर बैठो, और सामने वाले को बातों में ऐसा उलझाओ, कि अगले को याद ना रहे कितनी पी है, और कितनी पिलाई..!
क्योंकि बाद में याद किसी को नही रहता..! मुझे बहुत ज्यादा सरदर्द हो रहा था, लेकिन छह से साढ़े नौ तक सबके साथ आखिर तक बैठा रहा था। संगीत में dj का हेवी साउंड सरदर्द में और इजाफा कर रहा था। साढ़े दस तक तो बैठा ही नही जा रहा था। और चला गया सोने..
तलवारबाजी का बुलावा और मेरी नींद
ग्यारह बजे दूल्हे के दस-बारह फोन आए थे। वही तलवारबाजी के लिए। लेकिन अपन उठने वाले कहाँ? अगली रात को नींद हुई नही थी, उपरसे महफ़िल का नशा, और सरदर्द.. पैदल चलचलकर थकान भी थी.. सुबह साढ़े पांच का एलार्म बजा तब आंखे खुली थी..!
ठीक है फिर आज इतना ही रखते है।
(०५/०२/२०२५)
प्रिय पाठक!
अगर आपने कभी शादी में बैठकर सिर्फ इज्जत बचाई हो,
या कसुम्बापान के बाद DJ को गाली दी हो –
तो आइए,
एक और दिलायरी पढ़िए:
०३ फरवरी की दिलायरी
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