सुबह-सुबह की बस यात्रा और ड्राइवर का मज़ाक
आज का दिन अभी तक तो बढ़िया गया है.. बहुत से नए अनुभव मिले है। सुबह साढ़े पांच के एलार्म ने जगा तो दिया था, पर मैं साढ़े छह तक बस पड़ा रहा। साढ़े छह को फ्रेश होकर सात बजे तो गांव से पार था.. गांव से निकलते ही हाइवे पर बस खड़ी ही थी, जयपुर के लिए, बढ़िया कॉमेडी भी हो गयी। गांव से हाइवे तक गाड़ी छोड़ने आयी थी.. तो बस के आगे गाड़ी रोक कर बस ड्राइवर को पूछा, "जयपुर?"
तो ड्राइवर साहब ने बताया सीधे चले जाओ.. मेरी तो हंसी छूट गयी, अरे भाई बस में जाना है इसी लिए तो पूछा, वरना हमे भी पता है जयपुर किस ओर पड़ता है। ड्राइवर को लगा रास्ता पूछ रहे है कार में बैठे हुए। वो फनी वीडियो वाला हाल हो गया सुबह सुबह.. लगभग साढ़े आठ को जयपुर पहुंच गया था। बढ़िया शहर है वैसे जयपुर। बस ने हमे उतारा था सिंधी केम्प बस डिपो। साथ मे और लोग थे उन्हें वही डिपो में बैठा छोड़ मैं निकल पड़ा जयपुर नापने.. सुबह बस डिपो के बाहर ही गरमागरम कचौड़ियां तल रहा था। एक बात तय है। यही राजस्थानी लोग हमारे वहाँ गुजरात में बढ़िया स्वाद की बनाते है, यहां मुझे कचौड़ी में कढ़ी मिलाकर दी.. मैंने वैसे की वैसे छोड़ दी पूरी.. बड़ा बेस्वाद सा टेस्ट था। फिर पैदल ही चल पड़ा.. गूगल मैप के सहारे।
हवा महल और सेल्फीबाज़ पर्यटक
एक मित्र को फोन किया, जयपुर में राजपूती पोशाक के लिए। आजकल हमारे भी प्रसंगों में राजस्थानी राजपूती पोशाक का चलन कुछ ज्यादा हो चला है.. अब अच्छी चीज तो यहीं मिलनी थी, तो सुबह सुबह पहले तो पैदल निकल पड़ा, लेकिन थोड़े दूर जाकर e-रिक्शा कर ली। बड़ी चौपड़ उतारा उसने.. वहां से मैप खोला तो पता चला कि जयपुर का प्रख्यात हवा महल तो वहीं है.. लगे हाथ देख लेते है.. सुबह सुबह ढेर सारे गोरे अंग्रेज सेल्फियां लेने में, और गाइड्स से माहिती जानने में लगे हुए थे। अपनने भी दो तीन फ़ोटो खिंचवाई.. फिर पहुंच गए दूसरी साइड..। मित्र ने बताया था कि पुरोहितजी का कटला चले जाना.. वहां आपको मिल जाएगा जैसा पोशाक चाहिए..!
मेट्रो यात्रा: टिकट से टोकन तक
अब दस बजे तक तो मैंने पाव जयपुर तो नाप लिया था, कुछ भी खुला नही था। फिर चल पड़ा वापिस, बड़ी चौपड़ पर ही लक्ष्मीनारायण जी का मंदिर है.. वहां भी दर्शन कर लिए। समय तो और भी निकालना था, क्योंकि वो दुकाने साढ़े दस के बाद खुलनी शुरू होती है। जिसने यहां जाने को कहा था उन्होंने यह भी बताया था कि वहां भीड़ बहुत होती है, जेब संभालना। अच्छा याद आया लेकिन अभी तक तो उस पुरोहितजी के कटले में मेरे सिवा तो कोई ही न था, हाँ कुछ बंदर एक छत से दूसरी पर कूद रहे थे। फिर याद आया, जयपुर मेट्रो सिटी है, देख आते है, मेट्रो कैसी होती है.. सीढियां नीचे उतरते ही बड़ी चौपड़ का मेट्रो स्टेशन था, टिकिट काउंटर बना हुआ था। मैंने जाकर पूछा, 'कहीं जाना नही है बस देखना है।' तो उन्होंने दस रुपये की टिकिट दी, और बोले, 'बीस मिनिट में वापिस आ जाना।'
नीचे मेट्रो के पास जाकर देखा तो पता चला कि बीस मिनट तो बहुत ज्यादा है.. यहां तो पांच मिनिट से ज्यादा रुकने लायक और देखने लायक कुछ है ही नही। वापिस ऊपर आया, और पुरोहितजी के कटले में चला गया.. अब बहुत सी दुकान खुल चुकी थी। एक दुकान पर बड़ा सा बोर्ड बना हुआ था, 'राजपूती पोशाक' चला गया.. अब एक तो लेडीज़ आइटम, और अपन अल्हड़.. गले तक भरोसा था कि यह ठगेगा, वो भी सुबह सुबह..! लेकिन अनुभव ठीक रहा। हमारे यहां स्त्रियां नीला, जामुनी, काला, श्वेत, ब्राउन और उसके शेड्स के रंग के वस्त्र नही पहनती.. लेकिन जब से इस पोशाक का प्रचलन हुआ है, यही कलर चलने लगे गए। वरना पहले यह रंग शोक के प्रतीक थे..! अभी भी काला और श्वेत तो नही पहना जाता, इतना भी काफी है।
गोविंददेवजी मंदिर के दर्शन और नाहरगढ़ की झलक
दो पोशाक ले लिए। और फिर दुकान वाले से बातों में लग गया। क्योंकि मोबाइल बिल्कुल डेड होने आया था तो उसी के वहां चार्ज पर लगाया था, तो कुछ देर इधर उधर की बाते की, उसी ने बताया, आपके पास समय है तो गोविंददेवजी के चले जाओ। बड़ी शांतिमय जगह है। नेकी और पूछ पूछ, चल दिया, लेकिन याद आया, जेब मे फूटी देहली केश बचा नही.. उसी दुकान वाले से ही पाँचसौ withdraw कर लिए। बड़ा सही काम हो गया, एटीएम ढूंढने जाने की बला टली। फिर बाहर निकला तो कोई ई-रिक्शा वाला गोविंददेवजी जाने को तैयार नही। तो दोनो पैर की जयजयकार करके निकल पड़ा फिर से एक बार पैदल जयपुर नापने..!
पुरोहित जी के कटले से सीधा बड़ी चौपड़ का चौराहा पार करते ही हवा महल, और उससे भी सीधे ही जाते बायीं और रोड मुड़ता है, मानसिंह म्यूज़ियम भी वहीं है.. गोरों की भीड़ ज्यादा थी यहाँ इस रास्ते पर। गोविंददेवजी के पहुंचा तो गर्भगृह तो बंद ही था। बाहर से ही दर्शन कर लिए। गोविंददेवजी के मंदिर के पीछे ही एक छोटा सा कुंड/जलाशय बना हुआ है। खाली पड़ा था। और वहां से नाहरगढ़ किले का बड़ा सुंदर नजारा दिखता है। कुछ फोटोज क्लिक किये, और घड़ी में समय देखा तो बज रहे थे साढ़े बारह.. अब वापिस लौट जाना चाहिए, वरना बस छूटने की संभावना है। हालांकि गलतफहमी थी।
बस तो सवा दो बजे की थी.. विचार आया, लगे हाथ मेट्रो की भी सवारी कर लेवे। फिर से बड़ी चौपड़ तक पैदल ही आया। इस बार कोई भी ई-रिक्शा वाले खाली न थे, ज्यादातर लोकल टूरिस्ट से भरे पड़े। बड़ी चौपड़ में भूमिगत मेट्रो स्टेशन में चला गया। सिंधी केम्प के लिए टिकिट ली। पंद्रह रुपये मात्र। नीचे एक मेट्रो खड़ी ही थी। कोई स्टाफ की लड़कीं थी, उससे पूछ लिया सिंधी केम्प के लिए? तो उसने बताया, बैठ जाओ इसी में। बैठ गए भाई.. नई चीज जानने को मिली, मेट्रो बड़ी तेज चलती है। अचानक से स्पीड पकड़ती है, और फिर ब्रेक लेनी शुरू करती है। बड़ी चौपड़ के बाद छोटी चौपड़, और उसके बाद चांदपोल, और फिर सिंधी केम्प..! थोड़ी देर में सिंधी केम्प था। टिकिट के नाम पर एक प्लास्टिक का सिक्के जैसा टोकन देते है वे, जिसे जहां उतरते है वहां जमा करने पर गेट खुलता है। बड़ी सही और अच्छी व्यवस्था है यह मेट्रो।
बार, एनर्जी ड्रिंक और फाइनल बस यात्रा
सिंधी केम्प से ट्रेवल्स वाले की ऑफिस कुछ पाँचसौ मीटर दूर थी। तो वहां पहुंचकर ऑफिस पर बेग वगेरह रख दिये, और उससे बस की डिटेल्स कन्फर्म कर ली, वैसे मेसेज तो आ गया था, सीट नंबर और टाइमिंग का। बैग वगेरह वहां रखकर निकल पड़ा भोजनादि व्यवस्था में.. सामने ही बार दिख गया। अब गुजराती आदमी, और सामने एक और मौका.. चुके कैसे..! खाने की सोचेंगे बाद में, पहले सुरापान कर ली जाए। बार मे बैठ गया, और एक ठंडी एनर्जीड्रिंक मंगवा ली..!
एक खत्म कर के दूसरी मंगाने ही वाला था कि बस वाले का फोन आ गया कि पांच मिनिट में बस लगने वाली है। लगे हाथ फटाफट वहीं खाना भी खा लिया। तीन बजे बस निकल पड़ी। और उसी रास्ते से, एक बार फिर पत्ते के गांव के बाहर.. सोचा फोन करूं उसे, लेकिन वो आज देवताओं के दर्शन में व्यस्त होगा। अभी बस किशनगढ़ वाले रास्ते पर चढ़ चुकी है। जिस रस्ते से राजस्थान आया था, उसी रास्ते से बस रिटर्न जा रही है। तो स्टेशनों के नाम इत्यादि के लिए दो दिन पहले की दिलायरी पढ़ने का कष्ट आप स्वयं ही कर लेना..
खेर, आठ की सुबह साढ़े छह को मैं घर पहुँच गया था।
(०७/०२/२०२५)
प्रिय पाठक!
अगर आप कभी हवा महल के सामने कढ़ी-कचौड़ी खा बैठे हो,
या मेट्रो में बैठने भर के लिए टिकट कटाई हो…
तो दिलायरी की यह जयपुर यात्रा ज़रूर पढ़िए।
जयपुर में एक दिन – पढ़िए पूरी कहानी
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