लो फिर आ गए, उसी घिसी-पिटी दिनचर्या में हम..! सुबह होते ऑफिस पहुंचो, दिनभर गधा-पहलवान की तरह काम करो.. और शाम को कोलू के थके बैल की तरह घर लौटो। चारा चरो, और सो जाओ..! वैसे आज प्रियंवदा से अच्छी खासी चर्चाएं हुई। क्योंकि उस मिसिज़ वाले लेख पर उन्होंने भी भयंकर कटाक्ष लिखा था। हालाँकि, उन्होंने आखिरतक स्वीकारा नहीं की वो कटाक्ष था। साढ़े नौ को ऑफिस था, और कल के लिखी दिलायरी और फिल्म रिव्यू पोस्ट कर दिया। लेकिन सुबह सुबह कुछ बिल्लिंग्स में व्यस्त हो गया कि स्टोरी पर चढ़ाना और स्नेही को भेजना भूल गया। अब वैसे स्नेही को परमस्नेही की श्रेणी में भी रख सकता हूँ, क्योंकि अब लिंक नहीं भेजता तब भी स्नेही अपने आप पढ़ लेते है।
खेर, दोपहर को मैं और गजा फिर से नाश्ते के शिकार पर निकल गए। और लगभग ढाई बजे वापिस ऑफिस पर आ गए। काम तो कम ही था, क्योंकि सरदार गायब है। फ़ोन भी नहीं उठा रहा था। यहाँ मैनेज करने में भारी मुश्किलों का सामना करना पड़ा। लेबर को समझाना बड़ा ही कठिन काम है। दोपहर बाद एक स्नेही से विवाह के प्रकार इत्यादि पर खूब चर्चा हुई। विवाह के आठ प्रकार होते है। सती प्रथा होती कहाँ थी? और भी दूसरे विषयो पर अच्छी खासी चर्चा के पश्चात मैं अपने ऑफिस में व्यस्त हो गया। अभी गजे का फोन आया कि, 'शाम को एक विवाह प्रसंग में डांडिया-रास है। कुरता पहनना है क्या?' अब मुझे कोई इतनी इच्छा है नहीं नाचने कूदने की। तो मैंने तो मना किया कि अपन वही सादे सिम्पल रहने वाले है। अरे भाई कौन कपडे बदलने के और तैयार-वेयार होने के तामझाम में पड़े।
खेर, अभी आठ बज गए है। घर पहुँच जाना चाहिए। वैसे आज दोपहर तक तो सरदार फोन ही नहीं उठा रहा था तो बड़ी टेंसन हो आई थी, क्योंकि मार्किट में बहुत सी जगहों पर टेक्स की रैड पड़ी है। समाचार तो है की ढाईसौ करोड़ का मामला है। लेकिन अफवाह लग रही है। समाचार में अभी अभी पढ़ा की पंद्रह जगहों पर रैड पड़ी थी, लेकिन मैंने तो सुना था की चार जगह पर ही छापेमारी हुई थी। बाकी इतना बड़ा शहर भी नहीं है अपना..!
ठीक है फिर, यही अस्तु तथा शुभरात्रि.. वैसे रात एकाध बजे तक तो डांडिया-रास में कूदना तो पड़ेगा.. यार-दोस्त अपने थोड़े जिद्दी तो है..! देखते है..!
(११/०२/२०२५, २०:०७)