समय हो रहा है २१:५२..! दस बजने को है। सर दर्द कर रहा है। मुझे याद है, मुझे कभी भी सरदर्द नही होता। या तो झुकाम हो तो, या फिर आज की तरह भूखे पेट रहने से। फिलहाल तो खाना खा लिया है, लेकिन सुबह से बस पानी पर ही था। अभी गजा आया था, फिर से एक सेवाभावी कार्य लेकर, गजा समाजसेवा में खूब कार्यरत हो चला है। हुआ यूं था कि अभी कुछ दिन पहले एक विवाह हुए थे तो कन्या के पिता ने समाज मे भी कुछ चंदा लिखवाया। नई पहल की है। तो उनके लिए एक धन्यवाद का पोस्टर बनाना था। बना दिया, एक यूनिवर्सल टाइप पोस्टर। अब जब भी कोई चंदा देगा, उसकी फोटो, नाम और रकम एडिट करना पडेगा बस। फिलहाल बज गए २३:४९..! वैसे आज भी सुबह नौ बजे ऑफिस पहुंच गया था। और सवेरे ही प्रियंवदा से हुई डिबेट को इंस्टा की स्टोरी पर चढ़हा दिया।
सरदार ने आते ही थोथे पकड़ा दिया, और फिर शामतक उन थोथो में दिमाग उलझा रहा। दोपहर को इन थोथे के कारण ही आज शिकारप्रवृति पर अंकुश रहा। और शाम होते होते आँकडाकिय आंदोलनों में सर दुखने लगा। शनिवार था, बिलिंग्स तो थी। लेकिन स्ट्रेस नही था। अंधेरा कब हुआ पता नही चला। एक गाड़ी साढ़े आठ को फाइनल हुई, और उसकी लिस्ट बनाने में तो और माथाफोड़ी हुई वो अलग.. आंकड़ो की उलझन वास्तव में भयंकर होती है। सब अंक सामने ही होते है, पर कभी कभी पतंगों के डोर से भी ज्यादा उलझे हुए होते है। लगभग आधा घंटा वह उलझन खा गयी। घर पहुंचा तब सवा नौ हो चुके थे।
भोजन करके उठा ही था कि गजे का फ़ोन आ गया, उसी पोस्टर के सिलसिले में। अब वह उतनी भागदौड़ करता है, तो पोस्टर बनाने जैसी मामूली सेवा तो मैं भी कर सकता हूँ। ठीक है, अब सो जाना चाहिए। आज दिनभर कुछ भी नही लिखा, वैसे लिखा है, लेकिन वो थोथे में.. निरे आंकड़े..
शुभरात्रि।
(१५/०२/२०२५, २३:५७)