समय शाम के बज रहे है सात पर दस मिनिट..! टोपी बहादुर से मस्त कड़क चाय बनवाई है। सरदार नहीं है, गजा नहीं है, और अपन पूरी ऑफिस में अकेले। दिन की शुरुआत तो वहीँ घर से निकलते ही दूकान.. एकाध बीड़ी, ऊपर गुटखा, और फिर सीधे ऑफिस..! व्यसन नहीं होना चाहिए है न..? सही बात है। ऑफिस पहुंचा.. काम आज भी न के बराबर था, लेकिन दोपहर को गजा चला गया तीन दिन की छुट्टी पर..! गजे का फायदा यह है कि फिल्ड वो संभाल लेता है। ऊपर से आज तो गेट के बाहर कुछ सरकारी अधिकारी किसी और काम से खड़े थे, और मार्किट में बात पहुँच गयी कि हमारे यहाँ रैड पड़ी है। सरदार का भी फोन आया कि कोई आया है क्या? हँसते हुए समझाया कि अपने यहाँ कुछ नहीं है, बाहर रोड पर कुछ काम चालू है। मतलब लोगो के पास बाते बनाने का फ़ालतू समय है..!
दोपहर को कुछ भी काम न था, टाइम पास भी नहीं हो रहा था। करे क्या? याद आया, बाइक में पेट्रोल डलवा आता हूँ। पम्प पहुंचा, टंकी भरवाई, तो ख्याल आया, घर ही चला जाता हूँ। तो डेढ़ बजे घर पहुँच गया। घरवाले भी पूछने लगे, 'क्या हुआ? अचानक घर कैसे आना हुआ?' तो मैंने भी कह दिया, 'मुझे तत्काल कुम्भ में जाना है। पैकिंग कर दो..!' बेग-वेग उतारने लगे तब मैंने कहा मजाक कर रहा हूँ, ऑफिस पर कुछ काम न था, और पेट्रोल भरवाने निकला था। यहाँ तक पहुँच गया..! ढाई बजे घर से निकला तो आधे रस्ते से भयंकर ट्रैफिक जाम लगा हुआ था। सोचने वाली बात है कि सिक्स लेन हाइवे है, लेकिन हंमेशा जाम लगता है। कारण है ट्रकर्स सर्विस लेन में रॉंग साइड चलते है। अब सर्विस लेन में रॉंग साइड होने को कोई मना भी नहीं करता..! और फिर ट्रैफिक जैम लग जाता है। बड़ी मुश्किल से ट्रक्स की लम्बी कतारों के बिच छोटे से गलियारे से निकलते हुए ऑफिस पहुंचा तो तीन बज गए थे..! मतलब सात-आठ किलोमीटर के सफर में आधा घंटा..!
दोपहर बाद एक बिल था, बना दिया। हुआ ऐसा की गाडी भरने के बाद, फाइनल होने के बाद पार्टी ने बताया कि थोड़ा और माल डलवाओ। अब थोड़ा और माल डालने के लिए फिर से नया माल बनाना पड़े..! और उसमे तीन घंटे लग जाने थे। उसे समस्या समझाई तो मान गया। और बिल बन गया। आपको बात करनी आनी चाहिए। मतलब आप पहले से परेशान हो यह जताने से अगला नए पंगे में पड़ने से रुक जाता है। उसके बाद एक और बढ़िया काम हो गया, एक लड़के को किसी काम से कहीं भेजा था.. तो वह काम निपटा कर रॉंग साइड में वापिस आ रहा था। पुलिस वालो ने धर लिया। हेलमेट, और कागज़ात सब थे.. लेकिन तब भी मुर्ख रॉंग साइड में आया..! पुलिस ने पकड़ा तो मेरे को फोन करके बताता है, कि पकड़ लिया। मेरा दिमाग हिल गया, इसमें बताने की क्या बात है? चालान भर और निकल वहां से..! लेकिन समस्या और अधिक थी। पुलिसवाले ने उससे कहा की चलन देता हूँ, और कोर्ट में जाकर भर देना..! अब आम आदमी कहाँ इन सब कोर्ट-वोर्ट के चक्कर काटे? उसने मेरी बात कराइ, अब मैं भी क्या बात करू? गलती तो अपनी थी ही। फिर भी साहब को समझाने की कोशिश की, कि इससे गलती हो गयी है, नौकरी करता है, कोर्ट के चक्कर मत लगवाओ, वहीँ केश मेमो भरवा दो..! लेकिन वो साहब भी अड़ गए। बोले ४५०० का चालान है? भरेगा आपका आदमी? वैसे एक बात बहुत सही है। पुलिस इस मामले में बड़ी सहयोगी है। आदमी को देखकर थोड़ा दयाभाव जरूर रखती है। लास्ट में १००० का चालान बनाकर जाने दिया। अब हमारे इस आदमी का क्या गया? गलती उसकी और चालान कम्पनी के सर..! बताओ.. यही हाल है।
चाय बढ़िया बनाई थी बहादुर ने। एकदम कड़क..! चीनी कम, और थोड़ी काली..! शायद इसी का प्रभाव है कि आज दिलायरी भी लम्बी खिंच गयी। फिर एक स्नेही से बात हो रही थी, वैसे सही मुद्दा है, हम लोग कहीं न कहीं शार्ट टेम्पर्ड तो है ही। कोई काम कर रहे हो और बार बार सही से नहीं हो पाए तो हम तुरंत गुस्से होने लगते है। बढ़िया शब्द है फ्रस्ट्रेशन..!
अभी यह लिख रहा था, और चौकीदार दौड़ा आया, 'साहब अपनी टंकी पर एक ट्रक धंस गया है, गिरा तो दिवार तोड़ देगा।' मैं भी टेंशन में, एक तो सरदार है नहीं, और आज ही सारे पंगे हो रहे है। एक लेबर ने मशीन बंद कर ली, उसे चालु करवाया, तो वो बिल के लिए पार्टी वाला खड़ा हो गया, और माल के लिए। उसे समझाया, तो एक आदमी चालान कटवा लाया। और अब इस ट्रक वाले की ही कमी थी। ऐसा है, ज्यादातर कम्पनी अपने यहाँ प्लाट से बाहर सीवेज टैंक बनवा रखती है। इंडस्ट्रियल एरिया में यही सिस्टम है। तो अपने भी प्लाट के बाहर एक सीवेज टेंक है। एक ट्रक ने वहां बिलकुल टेंक के बाजू में ही पार्क किया, तो जमीन धंस गयी..! और टेंक की छत पर टिका हुआ है वह ट्रक..! अब अगर टेंक की छत भी गिरेगी तो ट्रक पलटी मार कर सीधे कम्पनी की बॉउंड्री वाल पर गिरेगा। देखते है, ट्रक ड्राइवर ने अपने सुपरवाइज़र को तो बुलाया है। बस अब कोई हाइड्रो-क्रेन या लोडर मिल जाए तो यह बला टले..!
फ़िलहाल यादों का झरोखा सुन रहा हूँ। लेकिन वह भी चल नहीं रहा है ठीक से। पता नहीं, नेट तो काम कर रहा है लेकिन बफ्फर हुए जा रहा है। नसीब बढ़िया है मेरे..!
वाह रे नसीब..! अभी उस झुके हुए ट्रक के सुपरवाइज़र ने बताया कि अब सुबह इसे हटाया जाएगा। तो मैं भी बस घर को निकलने की तैयारी में था, तभी फोन की घंटी बजी, एक पहचान वाले का फोन आया, 'आप ऑफिस पर हो या निकल गए?' तो मैंने कहा, 'बस निकलने की तयारी' तो उन्होंने कहा, 'थोड़ी देर रुक जाओ, पास में ही मेरा ऑफिस है, वहां पहुंचो आप, मेरी एक गाडी पकड़ी गयी है। मेरा लड़का आ रहा है, और आप एक बिल बना देना अभी ही..' ठीक है फिर और देरी ही सही.. हुआ कुछ यूँ था कि इन भाईसाहब ने एक गाडी भरी थी, दो जगह से। और लोडिंग होने के बाद जल्दबाजी के चक्कर में एक बिल पर ही गाडी छोड़ दी। दूसरा बिल बनाना ही रह गया। किसी को ध्यान में आया नहीं कि गाडी सिर्फ एक बिल पर निकल गयी। इस समय मार्चेंडिंग नजदीक आ रही है, GST वाले भी शायद सरकारी टारगेट पुरे करने में लगे..! हाईवे पर ही इस गाडी को रोक लिया। बिल देखते ही अंदाजा तो आ ही जाता है, कि गाडी में माल ज्यादा है बिल कम। देखो होता ऐसा है कि वे हुए सरकारी अधिकारी.. उनका एक ही दृष्टिकोण होता है करचोरी का। मतलब बगैर बिल के गाडी जाने देने से कर-चोरी हुई। वे पीछे के कारणों पर कभी भी ध्यान नहीं देते। वैसे बहुत से लोग करचोरी करते है इस कारण से उन GST वाले साहबो का यह रवैया भी गलत तो नहीं है। लेकिन इस चक्कर में कभी कभी सीधे लोग एक गलती के कारण बड़ा दंड भुगतते है। यह जिनका फोन आया था, उनकी ऑफिस पहुंचा। पता था की दंड भरना ही पड़ेगा। और कोई ऑप्शन है ही नहीं। उन्हें एक बार समझाने की कोशिश की कि यह करचोरी का मामला नहीं है। लेकिन ठीक है, गलती तो है कि री-कन्फर्म किये बिना गाडी छोड़ दी। लगभग साढ़े दस को एक माफीनामा, और लगभग ढाई लाख का दंड भरने के बाद पंगा छूटा। लड़का सिगरेट्स लाया था, एक एक दम खिंचा, और घर पहुंचा तब पौने ग्यारह.. हुकुम बाहर ही खड़े थे, वे बड़ी फ़िक्र करते है। उन्हें भी आजकी पूरी दिनचर्या सुनाई.. वे भी हँसते हुए बोले, खाया पीया कुछ नहीं ग्लास तोडा बारह आना...
ठीक है फिर, आज यही अस्तु, और शुभरात्रि...
(२१/०२/२०२५, २३:२३)