दिलायरी : २४/०२/२०२५ || Dilaayari : 24/02/2025

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वही शाम के पौने सात बज रहे है प्रतिदिन की भाँती.! समय ही समय था आज, फिर भी लिखने की इच्छा, प्रोत्साहन, या विषयो से दूर रह रहा हूँ आजकल..! कारण तो कुछ नहीं है, पर वो पहले की तरह लगातार लिखने वाली आदत छूट गयी है शायद। सुबह साढ़े सात तब भी उठ गया जबकि रात को एक से तीन - साढ़े तीन तक जागना पड़ा था। वही कुंवर को प्रिय झुकाम.. बदलती ऋतु..! सुबह ऑफिस पहुंचा तब साढ़े नौ बज गए थे। काम तो कुछ ख़ास न था, लेकिन सरदार की गैरहाजरी के हिसाब इकठ्ठा हुए थे। दोपहर को एक बजे तक एक जने से बुक्स मिलाने बैठा था, मतलब कुछ लोग हिसाब किताब मिलाने के मामले में बड़े लीचड़ होते है। सोचते है, सामने वाले की कोई कलम छूट गयी हो तो बताऊँ ही ना..! क्या हो जाएगा उससे? आज नहीं तो कल पकड़े जाओगे.. और तब तुम्हारी अधिक बेइज्जती होगी, और मार्किट में बात बनेगी वो अलग.. धंधा करना है तो ईमानदारी तो रखनी पड़ेगी.. गलती अलग बात है लेकिन बेईमानी गलत ही है। 



दोपहर को सवा एक मार्किट के लिए निकला एक चेक भी डालना था बैंक में, और थोड़ा घर का भी काम था। पहले घर गया, कुछ सामान ले जाना था मार्किट में, जिसमे नाम एडिट करवाना था। घर पहुंचते ही खाने का नाम ले लिया। अब एक मान्यता सी बंध गयी है कि कहीं जा रहे हो और खाने का नाम ले लिया है तो रुक जाओ.. मैं मानता हूँ, क्योंकि वैसे भी दोपहर का समय था, मार्किट में भी कुछ न कुछ नाश्ता ही करने वाला था। तो अब घर पर ही पेट भर लिया जाए। तो घर पर ही भेल बनवा ली..! मार्किट पंहुचा, चेक डाल दिया, अपना काम भी निपटा लिया। और वापिस घर। सामान घर पर छोडकर वापिस ऑफिस पहुंचा तो बज रहे थे पौने तीन। और गजा आ चूका था। ठीक हुआ, भार कुछ तो कम हुआ।


शाम तक फिर कुछ हिसाब वगैरह बनाए, और अभी यह लिखने बैठा हूँ। एक बिल था, शनिवार की गाडी खड़ी है। बना दिया। फ़िलहाल बिलकुल खाली..!


ठीक है फिर, शुभरात्रि।

(२४/०२/२०२५, २०:२१)

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