दिलायरी : २५/०२/२०२५ || Dilaayari : 25/02/2025

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आज का दिन कुछ खास नही था। सुबह ऑफिस पहुंचा, कुछ देर बाद सरदार भी आ गया था। ले आया था वही, बहीखाता.. शाम तक लकीरें खींचता रहा उसमे। दोपहर को मैं और गजा वहीं नाश्ता करने चले गए।



सुबह कल वाली दिलायरी पब्लिश हो चुकी थी। कुछ देर बाद स्नेही ने भी एक पोस्ट भेजी.. तातपर्य स्वरूप मैंने उतना ही कहा कि 'जिसका मूल्य जितना ज्यादा हो उसे उतनी बड़ी सुरक्षा या निगरानी में रखा जाता है।' यह पंक्ति कहीं तो पढ़ी थी, याद तो नही आ रहा कि कहाँ लेकिन मुद्दा यह था कि किसी ने एक बाबा से पूछ लिया कि लड़के को सारी खुली छूट और लड़कियों पर इतनी पाबंदियां क्यो? तब बाबा उसे एक लोहे के पतरे बनते कारखाने में ले गए, वहां पड़े हुए ढेर सारे लोहे को दिखाकर कहा कि देखो यह लोहा कैसे खुले में पड़ा है, चाहे बारिश आ जाए, धूप हो, यह यहीं पड़ा रहता है, इसे कोई चुरा जाए ऐसी भी फिक्र नही है इस कारखाने वाले को.. फिर वहां से एक ज़वेरी के वहां गए वे लोग और एक हीरा देखने के लिए मांगा, तब ज़वेरी ने अलमारी खोलकर, बड़े प्यार एक बॉक्स बाहर निकाला, उसमे गुलाबी कागज़ में लिप्त हुआ हीरा दिखाया.. तब बाबा ने ठीक से समझाया कि उस कारखाने में खुले में पड़ा लोह लड़का है, और यह तिजोरी में संभालकर रखा गया है वह लड़कीं है.. लड़कीं का मूल्य अधिक है, इस लिए उसे संभाला जाता है.. तर्क मजेदार है, मुझे पता नही क्यों याद रह गया है यह..


दोपहर तक मैं और स्नेही इन्ही विषयो पर चर्चा करते रहे.. और साथ ही साथ मैं इन थोथो मे कलम भी चलाता रहा..! दोपहर बाद याद आया, कल महाशिवरात्रि है, कामकाज अपने यहां भी बंद है, तो बिल बनाने थे वे बना लिए.. और शाम को मन उदास हो गया था तो साढ़े सात को ही घर आ गया..! कुछ बाते ऐसी हो जाती है, ऊपर से थोड़ा क्रोधी और उतावला स्वभाव.. घर आते ही गुस्सा फूट पड़ा.. भोजनादि से निवृत्त हुआ ही था कि गजा आया। एक तो इसने संघ का ध्वजदंड उठाया है, और बीच बीच मे मुझपर भार डाल देता है। संघप्रमुख कच्छ प्रवास पर है, तो उनकी यात्रा के अनुरूप एक पोस्टर बनाना था.. बना दिया..!


ठीक है फिर, अभी समय हो गया है साढ़े ग्यारह.. सो जाना चाहिए वैसे तो पर मन उद्विग्न है.. 

(२५/०२/२०२५, २३:३२)


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