उसने खुद को लिखा.. || He wrote to himself..

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 उसने खुद को लिखा..



प्रियंवदा.. फिर से एक गंभीर सोच में पड़ चुका हूं। सामाजिक व्यवस्था ही ऐसी बनाई गई थी कि आप पढ़लिखकर अपने पैरों पर खड़े हो जाओ, और दुनिया की रेस में दौड़ पड़ो.. वो.. उसने तो अभी चलना ही शुरू किया था कि उसे उलझनों में डाल दिया गया.. सांसारिक व्यवस्था में। जीवन का एक मात्र ऐसा निर्णय जिसपर आपका अधिकार है, लेकिन वह निर्णय गलत हुआ तो जीवनभर अधिक नमक का भोजन करना तय है। विवाह.. प्रत्येक व्यक्ति इस प्रसंग के लिए उत्साहित तो होता ही है कभी न कभी..! वह भी था किसी दिन। उसका स्वभाव रहा था कम बोलने वाले व्यक्ति का.. उसकी इच्छाएं अव्यक्त रही है कई बार क्योंकि समय पर वह बोला नही था। विवाह के लिए कन्यापसन्दगी के समय भी उसका मौन रहना सदा की शूल बन गया था।


एक लड़का, जो माँ का दुलारा है। उसके जीवन मे उसकी माँ के अलावा एक और स्त्री आने वाली थी..! चारोओर मंगलध्वनि वह सुन रहा था, लेकिन यह मंगलध्वनि बड़ी ही जल्द आर्तनाद में बदल जाएगी उसे कहाँ पता था? था तो वह एक शहरी लड़का, लेकिन सुना था गांवों में असल संस्कार बसे है। संस्कारी लड़कीं तो गांव से ही लायी जाए। बड़ी जल्द किसी से उसका रिश्ता हो गया। सब अच्छा भला चल रहा था, और कुछ ही दिनों में शादी भी हो गयी..! आगंतुक कन्या का स्वभाव उससे बिल्कुल ही उलट था, पर सोचा था कि समय रहते दोनो ही अपने भीतर कुछ बदलाव कर लेंगे और सब ठीक हो जाएगा..! लेकिन वह भूल गया था कि व्यक्ति अपने लक्षण कभी नही बदलता.. चाहे मैं हूँ या वह..! धीरे धीरे उसे समझ आने लगा.. घर मे दो स्त्रियां है और दोनो की आपस मे ही नही बनती..! एक तरफ माता है। एक तरफ धर्मपत्नी.. कैसे चयनित किया जाए? उसे किसका पक्ष लेना चाहिए? और उससे भी बड़ी बात वह क्यों किसी का पक्ष ले? उसने यह तो नही ही चुना था कि उसे इन दोनो में से कभी किसी दिन किसी एक को चुनना पड़े..! यह असह्य होता जा रहा था। दिनभर वह काम करने जाता जरूर लेकिन उसका मन घर पर ही रहता कि आज किसी बात पर वे दोनों न लड़ पड़े। सोचता था कि दिनभर मेहनत करके घर लौटू तो मुझे कमसे कम घर पर तो आराम मिले? लेकिन नही, घर पर माँ कह रही है यह बहु तो किसी काम की ही नही है। और पत्नी कहती है कि सासुमां तो मेरे हर काम मे नुख्स निकालती है। 


इन दोनों का त्रास अब असह्य हो चला था। उसके घर एक बच्चा भी हुआ..! फिर एक दिन पत्नी की मोबाइल गैलरी में उसकी नजर पड़ी, कुछ स्क्रीनशॉट थे..! विडियोकॉल के स्क्रीनशॉट्स.. जिसने उसके साथ जीवनभर रहने की कसम खायी है वही उसके पीछे किसी परपुरुष के साथ बाते कर रही है? उसका संसार से ही मोह उठने लगा.. अब वह सोचने लगा था कि संसार मे दो ही चीज सत्य है, एक है पैसा, दूसरा है शरीर सुख.. प्रेम ! वो बस एक शरीर सुख मिटाने की वासना का मार्ग मात्र है। वो रो लेता चुपचाप.. बिना किसी को पता चले। उसकी लाल आंख देखकर कोई पूछता तो कह देता कि आंख में कुछ गिरा है, या रात को थोड़ी ज्यादा पी ली थी.. उसने अपनी पत्नी से एक शब्द न कहा। लेकिन वह भीतर ही भीतर अपने आप को कुरेदने लगा था.. हर व्यसन उसने आजमाने शुरू कर दिए। उसने यारीदोस्ती बहुत कम कर दी। अकेलापन उसे रास आने लगा.. कई घण्टो तक वह अकेला बैठा रह सकता था। तम्बाकू, सिगरेट्स, गुटखा.. शराब, वह सब कुछ ही करता था, जैसे अब उसे मृत्यु का मार्ग ही उपयुक्त लगता हो। स्वयं को कहीं लटका देना उसे बड़ा ही खराब लगता था। उसने वह मार्ग चुना जो जिंदगी को जल्द खत्म कर दे.. और खुदकुसी जैसे अपराधबोध से भी बच जाए। 


एक तरफ उसकी कई इच्छाएं थी जीवन में, और दूसरी तरफ उसकी आँखों के आगे वह पथभ्रष्ट पत्नी थी.. उसने एक रात को बैठकर अपनी पत्नी से सारा मामला डिसकस किया। लेकिन तब तो वह और बदल गयी। अब उसकी पत्नी उसे मानसिक त्रास भी देने लगी थी.. एक तो उसके मन मे अब शंका घर कर गयी थी, और अब उसकी पत्नी भी बहुत कम बोलती और बाते करती थी..! इसे तो वैसे भी बात करनी होती नही थी.. धीरे धीरे संबंध बना जरूर रहा लेकिन भावनाविहीन.. रोबोट जैसी जिंदगी... वह खूब परेशान रहने लगा। अब वह अचानक से घर चला जाया करता था क्योंकि शंकाशील स्वभाव यही सब करवाता है। उसके मन मे कई बार विचार आया अलग हो जाने का, लेकिन उसके माता पिता नही मान रहे थे। उसके माता पिता को समाज की फिक्र थी, कि समाज क्या कहेगा? हँसी उड़ाएगा। सामाजिक वेल्यू ज़ीरो हो जाएगी..


फिर भी वह लड़का बस अपने अभिभावको के आदेशों का पालन करते हुए उसी स्त्री के साथ एक ही घर मे रह रहा था। पुरुष कठोर हो तब भी रोता तो है ही.. बस उसके आंसू देखने दुर्लभ होते है। वह हंमेशा चिंतामग्न रहने लगा..! लेकिन साथ ही साथ उसके ह्रदय में अब क्रूरता पनपने लगी.. प्रेम का वेरी.. उसने यही मान लिया कि प्रेम कुछ है ही नही। संसार वासना और पैसों से ही चलता है। फिर एक दिन उसने हिम्मत जुटाकर घर पर कहा कि अलग हो जाना बेहतर है। लेकिन अब बच्चे की जिम्मेदारी भी उसपर थी। वो अंदर ही अंदर घुटते रहता था.. और क्या कर सकता था, अलग वो हो नही सकता क्योंकि बच्चे की जिम्मेदारी थी, और मातापिता भी मानते नही। एक दिन वो बहुत बड़ा कवि बना.. अपनी दुःख भरी दास्ताँ को शब्दो की माला में पिरोकर सबको सुनाता, हर कोई उसके काव्य से प्रभावित होते, हर कोई आंसू बहाते, हर कोई ताली बजाते.. वह इतना मशहूर हो चला कि हर जगह उसकी तारीफे छपती थी.. उसने खुद को लिखा था, लोग भरभरकर वाहवाही करते थे, वह जितना दर्द लिखता उतनी ज्यादा वाहवाही मिलती थी.. फिर किसी दिन उसको किसी ने पूछा, क्या यह सच बात है हर कामयाब आदमी के पीछे औरत होती है.. वो मुस्कुराया और चल दिया..!


प्रियंवदा, मुझे कुछ न कुछ टाइम पास करना था.. तो यह लिख दिया..! वैसे भी जब तक कुछ ढंग के ख्याल आते नही तब तक यही सब उटपटांग बातों से काम चलाओ..!


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