दिलायरी : २६/०२/२०२५ || Dilaayari : 26/02/2025

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अरे भाई गजब ही हो गया.. कल तो दिलायरी ही लिखना भूल गया..! शिवरात्रि का पर्व था, सरकारी छुट्टी भी थी, आराम से आठ बजे उठा.. फ्रेश हो कर गया शिवमंदिर.. लगभग साढ़े नौ बजे। महादेव कुछ ज्यादा ही व्यस्त थे.. लोग जल का लोटा चढ़ाने को बड़े उत्सुक थे। उतावले हो रहे थे जल्दी जल्दी जल चढाकर फ्री हो जाए, और एक काम निपटे। मैं मंदिर गया, वैसे आम दिनोमे वहां गर्भगृह में ही ताम्बे का लोटा होता है, आप लो, पास ही पानी का नल है, जल भरो, और चढ़ाओ। आज तो वह असंभव था। मैंने भगवन के दूर से ही दर्शन कर लिए। और ऑफिस के लिए रवाना हो गया। ऑफिस पर सरदार भी मेरे पहुँचते ही आया..! दो -तीन गाड़ियों के हिसाब बगैरह बनाना था, और सरदार लगा ऑफिस वाले फोन की साफसुफी में। 



एक तो मैंने इन्ही हिसाब किताब में बजा दिया। तभी सरदार लपककर बोला, 'अभ यह बही-खाता के काम करोगे?' मैंने धड़ल्ले से मना कर दिया, आज दोपहर बाद की छुट्टी रख लो.. मशीने तो बंद ही थी। लेबर और सब स्टाफ भी छुट्टी एन्जॉय कर रहे थे, और मैं और गजा, और बहादुर मतलब ऑफिस वाले काम..! एक पार्टीवाला आया, बढ़िया एक बोत्तल भांग लेकर..! बोला चखो प्रसाद है। अरे इसे वैसे भी कैसे मना की जाए..? डेढ़ डेढ़ ग्लास गटकने के बाद भी हुआ कुछ भी नहीं था.. वास्तव में प्रसाद प्रसाद ही था..! दोपहर दो बजे घर के लिए निकल गया..! शाम को शेविंग करवाने नाइ के पास चला गया। भरोसा था कि खुला ही मिलेगा.. शिवरात्रि को तो और कुछ होता नहीं है।


झिझक का बेस्ट उदहारण कल हुआ..! वैसे तो अब समाज में काफी खुलापन आने लगा है। लेकिन फिर भी एक शर्म का पर्दा बना हुआ तो है। उस शर्म के पर्दे को बना रहना भी थोड़ा जरुरी तो है। जैसे की किसी मेडिकल स्टोर पर जाना हुआ और वह मेडिकल स्त्री संचालित करती हो तो एक पुरुष को कुछ चीजे खरीदने में झिझक होना आम है। क्योंकि कुछ रोग भी बड़े हँसी वाले होते है। जैसे कि किसी को दस्त लग जाए तो हम हँसते है। या फिर कोई गुप्तरोग वाले हो तो वो खुद ही कहने में झिझकता है। बहुत सी ऐसी बाते है, जिनमे शर्म या तो झिझक होती है। प्रोटेक्शन लेना हो और मेडिकल पर स्त्री हो तो? आँखे कैसे मिलाई जाए? कुछ मेडिकल स्टोर्स प्लास्टिक बेन के कारण पॉलीथिन बेग भी नहीं देते। ऐसे ही मान लीजिये किसी पुरुष को व्हिस्पर पेड़ लेना पड़ जाए तब तो वह ऐसा मेडिकल ढूंढता है जो खाली पड़ा हो, वहां कोई भी न हो। यूँ कितना ही कठोर पुरुष ऐसे मामलो में काँप जाता है। जैसे किसी मेडिकल पर स्त्री हो और प्रोटेक्शन खरीदना हो। वैसे तो अक्षय कुमार ने एड कर कर के पेड़ वाला मामला तो थोड़ा बहुत नॉर्मलाइज़ कर दिया है। 


खेर, शेविंग इत्यादि से निवृत होकर कुछ देर तालाब किनारे चला गया। ढेर सारी मछलियां पानी से ऊपर मुंह निकाले तैर रही थी। इस तालाब में बहुत बड़ी बड़ी मछलियां है। और कई सारे बतख, बगुले, और किंगफिशर..! लेकिन साथ ही साथ बहुत ज्यादा गंदगी..! लोग अपनी घर पूजा का सामान, भगवानो की छवियां, श्रीफल, चुनरी.. और भी ऐसा ही बहुत कुछ इस तालाब में छोड़ जाते है। और यह गंदगी किनारो पर खूब दिखती है। अब तो यह ग्राम-पंचायत में नहीं आएगा, महानगरपालिका में समाहित हो चूका है। लेकिन इस तालाब की साफ-सफाई पर कभी किसी ने इतना ध्यान दिया नहीं है। कुछ ज्यादा ही गर्मी होने लगी थी, और फिर घर चला गया। रात्रि को भोजनादि से निवृत हो कर बाहर टहलने गया, और बड़ी जल्दी वापिस भी आ गया। सोने की कोशिश जरूर की लेकिन रात्रि के एक बजे तक नींद ही नहीं आयी। 


(२६/०२/२०२५)

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