आज थोड़ा व्यस्त दिवस है। अच्छा है। मुझे व्यस्तता पसंद है। मन खाली बैठता है तो कहीं भटकने चला जाता है। सुबह ऑफिस पहुंचा लगभग नौ बजे। और एक पोस्ट थी वो पब्लिश कर दी। फिर याद आया.. कल तो दिलायरी ही नहीं लिखी थी। सुबह फिर दिलायरी लिखने बैठ गया। कुछ न कुछ काम करते रहना चाहिए ऐसा लगता है। हालफिलहाल तो। क्योंकि आजकल कुछ पुराने घाव बड़े उठ उठ कर याद आने लगे है। बसंत है..! बहार भरी बसंत.. लगभग ग्यारह बजे तक सरदार भी आ गया था तो थोड़ा बहुत ऑफिस का काम भी कर लिया। और ठीक एक बजे निकल गया मार्किट के लिए।
एक रिश्तेदार स्वर्गवासी हुए है तो उनके वहां जाना पड़ेगा। लगभग साढ़े तिनसों किलोमीटर का सफर है। सोचा तो है की रात रात की मुसाफरी ठीक रहेगी। लेकिन साथ में थोड़ा डर भी है। वही नींद आ जाने का। क्योंकि अभी पिछले महीने ही गाँव से लौट रहा था तो घर कुछ तीसेक किलोमीटर ही बाकी था और मेरी आँखे बंद होने लगी थी। कई बार मुंह धोया, आँखों में पानी मारा, लेकिन बड़ी मुश्किलें हुई। आखिरकार धीरे धीरे ही सही घर पहुँच गया था। फेमिली साथ में होती है तब यह समस्या ज्यादा होती है। अकेला होता हूँ तो नींद वगैरह नहीं आती, अगर आए तो मुझे अकेले होने के कारण कोई रोडसाइड ढाबा देखकर कार साइड में रोककर एक झपकी ले सकता हूँ। लेकिन फेमिली के साथ नहीं हो सकता यह। वैसे प्लान तो आज भी रात्रि यात्रा का ही है। तो दोपहर को ठीक एक बजे ऑफिस से निकल गया, और घर कुछ सामान देना था वो सब ले लिया। पौने दो बज रहे थे। पेकिंग तो कुछ करनी नहीं है क्योंकि प्लान ही ऐसा है की यहाँ से रात के एक-दो बजे निकलूं तो सुबह सात-आठ तक वहां पहुँच जाऊँ, और वहां से दोपहर दो-तीन बजे निकलू फिर तो यहाँ घर ही पहुंचना है।
तो दोपहर को घर जाकर थोड़ा नाश्ता वगैरह कर के बाइक घर पर ही छोड़ दी कार लेकर ऑफिस आ गया, अभी शाम को घर जाते समय पेट्रोल टेंक फुल करवा लूँ, और टायर प्रेशर चेक करवा लूंगा। ताकि आगे रस्ते में कहीं रुकना न पड़े। हालाँकि अभी भी थोड़ी टेंसन इसी बात की है कि बस नींद नहीं आनी चाहिए। अभी समय हो रहा है शाम में साढ़े चार। काम कुछ खास तो है नहीं। बस एक गाडी है वो अगर समय से लोड हो गयी तो मैं थोड़ा जल्दी फ्री हो जाऊंगा।
बिलिंग हो गयी कैंसिल.. लगभग साढ़े सात को घर के लिए निकल गया, रास्ते मे टायर प्रेशर चेक करवा लिया, और पेट्रोल भी फुल करवा लिया। घर पहुंचा तब नौ बजे रहे थे, और साढ़े नौ को विचार आया कि एक झपकी ले लेनी चाहिए। सोने की खूब कोशिश की, साढ़े ग्यारह तक करवटे बदलने के बावजूद नींद तो नही आयी। लेकिन पाँचेक मिनिट की एक झपकी लग गयी थी.. सवा बढ़ तक यूँ ही पड़ा रहा बिस्तर में, लेकिन नींद आने के कोई आसार न दिखने पर चाबी लेकर बाहर निकल गया और कार के शीशे वगेरह क्लीन कर दिए। और ठीक एक बजे निकल गया।
(२७/०२/२०२५)