प्रियंवदा, एक बात तो है। लड़के वास्तव में विशाल दिल के होते है। उनके दिल में बहुतो का समावेश हो सकता है। लेकिन लड़की का ह्रदय बहुत संकीर्ण होता है। वे पिछली सारी गाथा भूल जाती है। शायद यादशक्ति भी कमजोर हो जाती होगी? बढ़ती उम्र के साथ। पता है? अभी जिनसे चर्चा हुई, एक खतरनाक तर्क दिया उन्होंने..! मुद्दा यह था चर्चा का की, ज्यादातर पुरुष अपने विवाह के पश्चात भी अपने विवाह से पूर्व जीवन में आयी उन सभी स्त्रीओ को अपने ह्रदय में विवाह के पश्चात भी एक स्थान बना रहने देते है। प्रथम दृष्टया लगता है की बिलकुल गलत बात है, ऐसा नहीं होना चाहिए। पुरुष राम की तरह एक पत्नीत्व व्रत का पालन करने वाला होना चाहिए। फिर कृष्ण की तो आठ पटरानियां थी। और सभी से समान प्रेम भाव रखा था। तो अर्थात बहु पत्नी हो तब भी प्रेम समान रूप से हो सकता है। उसी तरह द्रौपदी के पांच पति थे। और द्रौपदी ने पांचो को सामान स्नेह और संतति दी थी। अर्थात स्त्री भी समान भाव से स्नेह बरसा सकती है। फिर बीचमे ऐसा क्या हुआ की स्त्रीओ को तो एक ही पति होना चाहिए, लेकिन पुरुष ज्यादा पत्नी रख सकता है? इसके पीछे तो दो-तीन कारण तो बहु चर्चित है। एक कारण उनमे से संतति.. यदि एक स्त्री से संतानप्राप्ति न हुई तो, पुरुष दूसरा विवाह करता। फिर राजाओ में बहुपत्नीत्व प्रथा हुआ करती थी, उसका कारण भी राजकीय ही था। राजकीय संघर्ष से बचने का उत्तम विकल्प बन गया था वैवाहिक सम्बन्ध बना लिया जाए। बाघा-भारमली की प्रख्यात कहानी यही है, मारवाड़ नरेश जैसलमेर पर आक्रमण न करे इसी कारण से जैसलमेर के राजा ने अपनी पुत्री उमादे का विवाह मारवाड़ के मालदेवजी से करा दिया। ताकि सीमाएं सुरक्षित रहे, और अकारण युद्ध न हो। लेकिन इस्लाम में वर्जित था, कोई स्त्री एक पति के पश्चात दूसरे पुरुष की कामना भी नहीं कर सकती..!
यहीं से अपने यहाँ भी आया कि पुरुष तो अपने हृदय में कई स्त्रीओ को स्थान दे सकता है, लेकिन स्त्री को एक पतित्व निभाना ही है। एक पुरुष की ज्यादा पसंदगी हो सकती है, लेकिन एक स्त्री को तो उसके पति के सिवा कोई परपुरुष को देखना भी पाप है। पाप तो पुरुष के लिए भी है, लेकिन समाज पुरुष को उतनी छूट दे देता है। ज्यादा से ज्यादा एक पुरुष को समाज से बहिष्कृत किया जाता है, या थोड़ी मारपीट..! लेकिन स्त्री यदि विवाह के पश्चात किसी पुरुष से हँस कर बात भी कर ले तो आपत्तिजनक है। जैसे एक कथा में एक लड़की वायरल हो गयी थी, अपने ही पति को देखकर मुस्कुरा रही थी, लेकिन लोगो ने कुछ और ही समझ लिया, और उसे खूब कोसा भी..! क्यों? अगर पुरुष वैवाहिक जीवन में भी अन्य स्त्रीओ के संपर्क में रह सकता है तो स्त्री क्यों नहीं? हकीकत में पुरुष में एक स्वामित्व भाव का निर्माण हो जाता है। वह अपनी जीवनसंगिनी पर स्वामित्व भाव रखता है। इसी कारण से यदि उसकी पत्नी किसी और पुरुष की बात भी करे तो उसे ईर्ष्या हो आती है।
एक बात और भी तो है। आजकल मात्र कामसुख के लिए भी तो पसंदगी का कलश ढुलता है। कई स्त्री और पुरुष मात्र वासना मिटाने के लिए भी तो संपर्क में रहते है। बड़े शहरो में वन नाईट स्टेण्ड कहते है उसे। रात में साथ थे, सुबह को तू कौन? और हम आज भी प्रेम शब्द को संभाले बैठे है। उस प्रथम भाव को जो किसी को देखकर उद्भवित हुआ था। जो आज साथ नहीं है, उसकी कामना मन लिए बैठ जाता है। संपर्क न हो, बस दिख जाए तो भी मन परितृप्त हो जाता हो, ऐसा भाव निर्माण हो जाता है। वैसे आकर्षण है वो भी, प्रेम नहीं। क्योंकि मन से जुड़ा रहता है सब कुछ... मन से निर्धारित..! एक बात और भी तो है, जैसे विवाह के पश्चात स्त्री अपने पुराने सम्पर्को से पूरी तरह दूर होना चाहती है। शायद देखना भी नहीं चाहती। क्योंकि मैंने देखा है, कई पुरुष वर्षो बाद उस प्रथम व्यक्ति को अवश्य ही याद करते है। लेकिन सामने से अनदेखा करना या निष्ठुरता के अलावा और कुछ प्रत्युत्तर में नहीं आता। लेकिन पुरुष तब भी एक अम्र आशा के भरोसे प्रवृत्त रहता है। कामनावश।
आज इस लेखन में कोई निष्कर्ष नहीं दुविधाएं बहुत सी बता दी है मैंने। जो वास्तविक भी है। कहीं कहीं दिख भी जाती है समाज में। जिसका कोई तोड़ भी नहीं। क्योंकि स्त्रियां विवाह के पश्चात किसी परपुरुष के विषय में सोचे वह भी अपराध है, पुरुष भी विवाह के पश्चात किसी और स्त्री के संपर्क में आए तो वह भी बर्बादी का ही लक्षण है। लेकिन तब भी यह दोनों अपराध समाज में होते ही है। बस कुछ प्रकट हो जाते है, कुछ दबे रह जाते है। पत्नी यदि किसी और पुरुष के संपर्क में आए तो पुरुष उसे अपमान समझता है। लेकिन वही पुरुष मनोमन अपने प्रथम आकर्षण को भुला हो यह बहुत कम प्रसंगो में होता है। तार्किक दृष्टि से तो उसे भी उस एक स्त्री का बना रहना चाहिए।
खेर, मन की रची मायाजाल में सबको राचना पड़ता है।