मैं तो कृष्ण से अपनी तुलना करने लगा..
हां जी.. तो आज क्या लिखा जाए? समझ तो नहीं आ रहा कुछ भी.. गर्मियां इतनी बढ़ चुकी है कि अब दोपहर को मैं और गजा ऑफिस में ही पड़े रहते है। वैसे मेरा रंग तो बस अब कोयले से एक शेड कम ही रह गया है। क्योंकि कभी ध्यान ही न दिया, चमड़ी गोरी हो या काली? कृष्ण भी तो श्याम थे..! आए हाए, मैं तो कृष्ण से अपनी तुलना करने लगा.. हाय रे कलियुग.. घोर कलियुग..!
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Screentime ke addicted Dilawarsinh.. |
ठीक है, चलता है। सुबह सुबह सात बजे आज जगा दिया गया..! और फिर कई करवट बदलने पर भी आँख न लगी, तो साढ़े सात को मजबूरन ब्रश हाथ में लिए वाशबेज़िन के आगे खड़ा हो गया। आँखे अब भी खुल भी नहीं रही थी, लेकिन निंद्रा भी नहीं आ रही थी.. बड़ी विचित्र सुबह की शुरुआत हुई। लगभग नौ बजे ऑफिस पहुँच चूका था। दिलायरी पोस्ट करने की चिंता ही न थी, क्योंकि वो तो कल शाम को लिखकर ही शिड्यूल कर दी थी। फिर क्या, यूट्यूब ऑन, ट्रेवल वीडिओज़ प्ले.. और दोपहर कब हो गयी, किसे पता है? मैं तो खोया हुआ तो विंटर स्पीति और लदाख में। अचानक से बोत्तल से प्रकटे जिन की माफिक सरदार आया.. थोथे लेकर..! बोला सब के बेलेंस एक पेज पर लिख दो.. आज सबसे वसूली की जाएगी..! दोपहर के दो उसीने बजा दिए। उसका काम हो गया, वो निकल लिया तुरंत.!
श्वसन प्रक्रिया में भी..
फिर से एक बार, यूट्यूब ऑन, ट्रेवल वीडिओज़ प्ले.. मोबाइल की बैटरी पर ध्यान गया तो बस बिस प्रतिशत बच गयी थी..! वास्तव में मैं बहुत ज्यादा सिमट सा गया हूँ, या तो लगभग समय मेरा कंप्यूटर स्क्रीन खाती है, उससे बचा वह समय मोबाइल स्क्रीन..! गलती कर रहा हूँ, बड़ी वाली। जानता हूँ मैं, लेकिन शायद व्यसनी हो चूका हूँ। क्योंकि कुछ पढ़ना हो तब भी मैं कंप्यूटर स्क्रीन पर ही पढ़ रहा होता हूँ। यह दिलायरी वगैरह भी डिजिटल होने के कारण स्क्रीन टाइम घटता नहीं मेरा..! और अपन बसे भी इंडस्ट्रियल एरिया में है। तो श्वसन प्रक्रिया में भी कोयला, सल्फर, लकड़ी, और वाहनों का धुँआ ही भरा है। दो-तीन सालो में एक बार गाँव जाना होता है। वहां कुदरत बड़ी स्वच्छ है। वहां के और यहाँ के आसमान में भी १९-२० का नहीं १९-२० लाख सितारों का फर्क है। यहाँ के आसमान से कुछ बड़े सितारे ही दीखते है। आप चाहो तो गिन सको उतने ही।
समय हो रहा है शाम के सात..!
आकाश में एकदम लाल सूर्य बस क्षितिज को पार करने को प्रस्थानरत है। मिल का कर्कश रव जरा भी शान्ति को प्राप्त होने नहीं देता। पवन की गति भी बड़ी सामान्य है। कई सारी चिड़िया अपनी अपनी डाल के लिए लड़ती चिहचिहा रही है। लेकिन इस मिल के कर्कश आवाज के आगे उन चिड़ियों के आवाज पर एक अदृष्ट अंकुश लगा हुआ है। अँधेरा घिरने लगा है। और दिन के दोपहर के मुकाबले गर्मी अब कम होने लगी है। लिखने को और तो कुछ सूझ नहीं रहा, ठीक है अब, समय हो गया २०:०४...
शुभरात्रि।
(१८/०३/२०२५)
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idhar to sooraj 6 baje hi gayab ho jata hai !!
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