आज तो आ बैल मुझे मार वाला ताल हो गया प्रियंवदा || दिलायरी : २७/०४/२०२५ || Aa Bail Mujhe Maar..

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आज तो आ बैल मुझे मार वाला ताल हो गया प्रियंवदा। 

पिछले सप्ताह बात हुई थी कि अगले रविवार को थोड़ा जल्दी काम निपटा लेंगे ताकि धूप बढ़े उससे पूर्व घर पहुंच जाए। हमने इसका पालन भी किया, आज रविवार होने के बावजूद मैं सुबह नौ बजे ऑफिस पहुंच गया था। गजे और बुधे से कल रात को ही लेबर के रिपोर्ट बनवा लिए थे। फाकी सुबह बस लेबर का ही हिसाब किताब करना रहे, और घंटेभर में निपट जाए सब। हुआ भी, साढ़े ग्यारह तक मे सारा काम निपटा लिए थे। लेकिन एक बार फिर मेरी प्लानिंग पर मेरे बदनसीब ने बट्टा लगा दिया। कुछ पार्टी वाले अपना हिसाब मिलाने चले आए। हो गया, वही हाल, दोपहर ढाई बजे फ्री हुए। सोचा इतनी धूप में घर जाना ठीक नही। पड़ोसी के यहां शाम तक ac में बैठकर एंट्रीज वगेरह कर दूंगा। लेकिन वही, भाग्य में गर्मीभरी दुपहरी ही लिखी है। लाइट चली जाने के कारण वह भी घर चला गया था। अब और कोई ऑप्शन न था, अपने घर जाने के अलावा।

Dilawarsinh ! Bail se bachkar muskurate hue..!

सर पर हेलमेट, मुंह पर रूमाल, हाथों पर स्लीव्स, और दौड़ा दी बाइक घर की ओर.. आज दोपहर की धूप बहुत कड़क थी, आंखों में जैसे अग्निज्वालाएँ उतर रही थी। पता है कि धूप लग रही है तब भी ऐसी स्थितियो में मैं अक्सर अपने पैर पर कुल्हाड़ी भी मारता हूँ। मैं जानता हूँ कि सोसायटी को हाइवे से कनेक्ट करता रोड पीछले दो सप्ताह से बन रहा है, और बन्द पडा है तब भी एक और कनेक्टिंग रोड पर जाने का रिस्क लिया मैंने। जो आगे चलकर बंद मिला और यूटर्न लेना पड़ा। फिर वहां से एक और घुमावदार सड़क से होते हुए लंबा रोड लेकर घर पहुंचा, तीन बजे गए थे। मतलब धूप से बचने ही इस रविवार को जल्दी काम निपटाने कि चाही, तो और काम बढ़ गया, उल्टा जहां आम रविवार को दो घंटे काम करता हूँ वहां आज पांच घंटे काम करना पड़ गया। घर के लिए शॉर्टकट लिया वह भी लोंगकट ही पड़ा.. क्या मेरे जीवन मे मेरे द्वारा लिए निर्णय कभी सही साबित नही होंगे? 

प्रियंवदा ! अब तो युद्ध के प्रति उत्साह भी उतर गया, 

मेरा भी, और भी बहुतों का। हररोज इतनी अपडेट हो रही है कि लगता है अब हो जाएगा, अभी हो जाएगा.. इसी बीच मैदानी युद्ध हो न हो, सोसयल मीडिया पर मीम वॉर तो छिड़ ही चुका है। प्रियंवदा, एक गुजराती चाहे कहीं भी हो, कोई भी भाषा गुजराती में ही बोलता है। वो जब पहलगाम अटैक हुआ और एक घायल गुजराती आदमी से मीडिया वाले ने क्या हुआ था पूछा, तो कहता है, 'उधर अचानक से 'धबाधबी' हो गयी..!' उसके बाद एक हतभागी के परिवार से किसी के आगे मीडिया ने mic रख दिया तो बोला, 'सरकार ने कुछ सुरक्षा राखवी चाहिए।' अभी कल परसो लंदन में पाकिस्तानी हाईकमीशन के बाहर प्रदर्शन कर रहे लोगो मे गुजराती तुरंत पहचान में आ जा रहे थे। एक तो हम लोगो को हिंदी बोलने का बहुत बड़ा कीड़ा काटा है, पता नही क्यों बोलते है हिंदी, तुरंत पकड़े जाते है। एक बुजुर्ग लंदन प्रदर्शन में कह रहे थे, 'पाणी चाहिए, पाणी? धोवा माटे?'

युद्ध हो न हो, हँसी ठिठौली खूब मिल रही है। वैसे मैं भूल न् रहा होऊं तो चिनाब का पानी भारत रोक रहा है, और झेलम में बाढ़ करवा रहा है। नए प्रकार का युद्ध है। वैसे ऐसी प्राचीन भविष्यवाणियां है कि कलियुग में पानी के कारण युद्ध होंगे, शायद यही वह समय है। एक तरफ ब्रह्मपुत्रा पर चीन बांध बना रहा है, इधर सिंधु समेत सभी नदियों को भारत बांध लेगा। अरबसागर में भी काफी उथलपुथल हो रही है। इंडियन नेवी हुंकार भर रही है। साथ ही साथ अपने यहां का पुलिसबल भी कड़ी कार्यवाहियां कर रहा है। मेरे शहर में भी बांग्लादेशियों को ढूंढ ढूंढ कर पकड़ रहे है। बहुत सही है, वैसे भी व्यापारी लोग अपने धंधे में इतने मशगूल हो चुके है कि लेबर की जांचपड़ताल करते नही, आसामी है, आने दो। आधे से ज्यादा आसामी अपने यहां बांग्लादेशी मिलेंगे ऐसा मुझे लगता है। शुक्रवार को मस्जिद के आसपास भयंकर भीड़ इन्ही लोगो के कारण लगती है। वरना सात-आठ साल पहले जरा भी भीड़ नही हुआ करती थी। 

शाम को सोचा कुछ देर बाहर टहलने चला जाऊं, तो कुँवरुभा चिपक गए। तो उन्हें एक चोकोबार पकड़ाई, और मैं चुपके से निकल लिया। जगन्नाथ पर बैठा, शाम की आरती के नगाड़े धमधमा रहे थे। तपती गर्मी पर ठंडक उतरने लगी थी। कुछ देर पाकिस्तानी रिल्स पर उटपटांग कमेंट्स की बौछार चलाई, और फिर घर आ गया। अरे हाँ.. प्रियंवदा। आज तुक्के से रूबिक क्यूब सॉल्व हो गया। वैसे उसके दो लेयर्स तो मैं सॉल्व कर लेता हूँ, आखरी लेयर सोल्व नही हो पाता था, आज वो भी हो गया। हुकुम ने हजार रुपये इनाम जाहिर किया था, लेकिन समयरेखा को मैं लगभग 20 दिन पीछे छोड़ चुका था। हालांकि वह सॉल्व किया हुआ कुछ देर ही देखने मिला, क्योंकि फिर से एक बार उसे तुरंत ही बिगाड़ दिया गया। 

आजकल गुजरात मे भारत पाकिस्तान से भी तेजी से गोंडल का मुद्दा तूल पकड़े हुए है। 

कुछ जातिवादी पटेल सुरत से कूदकर गोंडल आए थे। यह वो वाले लोग है जो कभी पाटीदार अनामत आंदोलन में प्रसिद्धि को नही पाए थे। अब फिर से एक बार प्रसिद्धि पाने के लिए छःसो किलोमीटर दूर निशाना लगा रहे है। गोंडल को गुजरात का मिर्जापुर कहना, गोंडल को गुंडों का गांव कहना.. मीडिया सबसे बड़ी जिम्मेदार है इस मामले को इतना ऊंचा उठाने में। संघी गजा आया था, इन्ही सब मुद्दे पर उसके जितनी जहरीली बाते करनी मेरे बस की तो नही.. उदाहरण देता हूँ। शुरुआत हुई भारत-पाकिस्तान के युद्ध के मुद्दे से, पिछले कंकर के टीलों पर कुछ लड़के आईपीएल देख रहे थे। गजा मावा बनाते हुए बोला, 'इन सालो को कुछ भी पड़ी है? इधर युद्ध जैसी गंभीर घटना घटित होने जा रही है, और यह लोग कोहली के छक्के पर तालियां पीटने बैठे है। युद्ध हो गया तो सबसे पहले अपने यहां लाइट चली जाएगी। बॉर्डर एरिया ही माना जाएगा इसे भी। और यही लोग कूद कूद कर कहेंगे, मोदी ने देश को खड्डे में डाल दिया। सबसे पहले वो सपीया सपोला बोलेगा, फिर वो बंगालन, फिर वो गुंडा हैदराबादी, दक्षिण का तो कुछ वैसे ही समझ नही आता.. और जनता युद्ध मांग रही है।' थोड़ी देर बाद मुद्दा बदल के पाकिस्तान से सीधे गिरा गोंडल पर। 'यह सस्ती प्रसिद्धि के पेंग्विन, कूद कूद कर गोंडल आए थे, और आज इनके कार का शीशा फोड़ दिया गया। और यह तराजू को मध्यस्थ रखने के लिए इस पलड़े से उस पलड़े में कूदती मीडिया.. कल तक गोंडल के लिए अच्छी बात बताती थी, आज यही लोग गला फाड़ रहे है कि गोंडल में गुंडाराज है, गोंडल में गुंडाराज है..!'

गोंडल से बढ़कर गिर के सिंहो तक चले गए..

हालांकि गजे से संवाद मेरा बड़ा लंबा चलता है, हम गोंडल से बढ़कर गिर के सिंहो तक चले गए.. 'यह जब भारतीय प्लेट अफ्रीका से अलग हुई तब यह सिंह भी तैरते हुए साथ आ गए.. बताओ एक समय के अफ्रीकन सिंह आज एशियाटिक सिंह हो गए.. कद काठी भी आबोहवा के कारण कम हो गयी, अपने वाले सिंहो को तो भैंस उठाके पटक देती है..!' फिर गजे ने कूदी मारी घूमने जाने पर.. बोला, 'अच्छा भला कश्मीर जानेका प्लान था जून में, इन जाहिल जिहादियों ने सारी ऐसी-तैसी कर दी। अब सोचता हूँ केरल चला जाऊं, लेकिन वहां वेज में घुमफिरकर इडली डोसा के अलावा ऑप्शन भी नही है।' मनाली का सोच रहा था। तो वह मैंने मना कर दिया कि अब तो बर्फ भी मानवक़दमों ने काली कर दी है, मत जा। केदार चला जा..! कपाट खुलने ही वाले है। लेकिन वहां उसे फेमिलीं के साथ जाना नही है। बच्चे के साथ जिम्मेदारी बढ़ जाती है। फिर गजे ने कूदी मारते हुए पारंपरिक वस्त्रों की बात छेड दी। गुजरात मे सौराष्ट्र-कच्छ के राजपूत पारंपरिक वस्त्रों में सूती कापड की 'चोयणी' (पेंट, जिसमे घुटने तक एकदम टाइट होता और घुटने से कमर तक बिल्कुल ढीला) पहना करते थे, ऊपर कुर्ते जैसा शर्ट, और शर्ट ऊपर 'बंडी' (जैकेट, जिसकी बाजू नही होती), सर पर पगड़ी। यही पहनावा हुआ करता, और रंग हमेशा श्वेत। बस पगड़ी में उम्र के अनुसार रंग होते तथा बंडी तो ज्यादातर कहीं बाहर जाने पर पहनी जाती थी। आज भी गांवों में वृद्ध इसी पहनावे में मिल जाते है। लेकिन गजा सौराष्ट्र की उत्तरी सीमाप्रान्त से है तो उनके वहां धोती का प्रचलन था.. इसी मुद्दे पर बात बढ़ गयी, और हम तो है ही ईर्ष्यालु और द्वेषी.. मैंने गजे के मजे लेने के लिए कहा, तुम धोती वाले चोयणी का रुआब क्या जानो.. और फिर तो जहरीला गजा खूब विष उगला..! आखिरकार ग्यारह बजे हम उठे.. ग्राउंड में लगभग नौ बजे ही चला गया था आज। और आज गजे को भी बुला लिया था। बस तो फिर ग्यारह क्या, हम तो रातभर ऐसे गर्मागर्म मुद्दों पर बकैती कर सकते है। 

फिलहाल आज की दिलायरी की पूर्णाहुति घर की छत पर ठंडे पवनो में मध्य लिख रहा हूं, समय हो चुका है पौने बारह.. और अब कुछ देर रिल्स को भी न्याय देना चाहिए। वैसे और भी लिखने की बाते है, लेकिन वे अब लिखने बैठूंगा तो बहुत देर तक चलेगी..! बस फिर, शुभरात्रि प्रियंवदा।


(२७/०४/२०२५)

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