मच्छर और पाकिस्तानी दोनो एक से है। दोनो को खून चाहिए हमारा || दिलायरी : २८/०४/२०२५ || Dilaayari : 28/04/2025

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दुःखी दास्तान लेकर फिर आ गया मैं...

लो प्रियंवदा, अपनी दुःखी दास्तान लेकर फिर आ गया मैं। झेलो तुम अब.. फिलहाल बैठा हूँ ग्राउंड में। यह रोड जब तक बनना हो बने, कोई जल्दी नही है, क्योंकि इस रोड की रोड़ी पत्थर का यहां बड़ा ढेर लगा है, और ऊपर बैठने का मजा ही अलग आता है। मस्त शीतल पवन, आसपास टहलते लोग अपने फोन पर व्यस्त - कुछ धंधे में और कुछ अपनी अपनी प्रियंवदाओ के साथ, बच्चो की किलकारियां, और मैं चला रहा हूँ मस्त फोन.. रिल्स.. और लगातार आती हुई बाबा फनिरुद्धाचार्य की रिल्स स्नेही मित्रो को भेज रहा हूँ। पत्ते को फोन मिलाया था, कहा है उससे एक मावा लेकर आ जाए, उसके बाद गजे का फोन सामने से आया, तो उसे भी मावा लाने को कह दिया। मुफ्त खाने का मजा भी अलग है..!


Baapu ! Dilaayari Likhte hue...!

सुबह आज ऑफिस जाना नही था, दवाखाने जाना था, क्योंकि कुँवरुभा को दिखाने जाना था। एक पौने घण्टे के कान के ऑपरेशन के बाद डॉक्टर मिला। अरे हाँ प्रियंवदा ! आजकल लड़कियां कान में बड़े बड़े झुमके पहनती है, उससे कान का छेद बड़ा हो जाता है, और हालात यह होने आती है कि 'बूटी' जो कान का निचला हिस्सा जिसमे छेद होता है वह सिरे तक फटने जैसा हो जाता है। अब कनफटी स्त्रियां कैसी लगेगी? फिर डॉक्टर से कान में टांके लगवाती है। फैशन बड़ी नुकसानदेह है प्रियंवदा, शारीरिक भी, आर्थिक भी..! यह बड़े वजनदार झुमके कान में झूलते हुए किसी दिन तो तबाही लाएंगे ही न.. शायद वो गाना है ना, झुमका गिरा रे बरेली की बाजार में, उसका अर्थ यह भी हो सकता है कि उस स्त्री के कान फट गए होंगे और इसी कारण से झुमका गिर गया होगा।


स्वास्थ्य संबंधी लोगो पर विश्वास रखना ही चाहिए

खेर, डॉक्टर से मुलाकात हुई ऑपरेशन थियेटर के बाहर ही। उसने वहीं चेकप किया, और साफ शब्दों में कह दिया, अभी ही करवा लो ऑपरेशन। दो दिन में ठीक भी हो जाएगा। और फिर बढ़ती उम्र के साथ सब नॉर्मल भी हो जाएगा। बाद में बड़ा होने के बाद और कोई प्रॉब्लम आ जाए उससे पहले अभी से ठीक हो जाए यही अच्छा है। मुझे सलाह ठीक लगी, और समझ भी आ गयी। विश्वास भी आ गया कि बात सही है। तो लगे हाथ उससे प्रिस्क्रिप्शन ले लिए, कई सारे ब्लड रिपोर्टस की बौछार लगा दी उन्होंने तो। हॉस्पिटल के कंपाउंड में ही लेबोरेटरी भी है। कुँवरुभा को चॉकलेट के बहाने वहां उन लोगो से एक इंजेक्शन भर के खून निकलवाया। सारी ही 20-25 कि कन्याएं.. थोड़ा डाउट भी जाए कि इनसे हो पाएगा? लेकिन स्वास्थ्य संबंधी लोगो पर विश्वास रखना ही चाहिए। उन मेडमो ने बहला फुसला कर एक इंजेक्शन भर लिया, और फिर शाम को रिपोर्ट ले जाने को बोलकर अन्य चार रिपोर्ट दूसरी लेब से करवाने को बोला... और उससे पहले सुगर टेस्ट..


सुगर टेस्ट का अलग कमरा था। इस बार मैंने मोर्चा संभाला.. कुरकुरे के बहाने कुँवरुभा को मेडम के आगे बिठाया। लेकिन इस बार कुँवरुभा भी चौकन्ने थे। बच्चा भी एक बार धोखा खाने के बाद सम्भल जाता है। कुँवरुभा को पता था, चॉकलेट तो मिली नही, लेकिन सुई जरूर चुभी थी। अभी यह कुरकुरे की बात हो रही है तो यहां भी कोई धोखा ही है। एक बार तो मुझे लॉबी में दौड़ाया, लेकिन फिर डरा धमका कर भी सुगरटेस्ट करवा ही लिया। अब बची थी एक बाहर की लेबोरेटरी। और यहां उन लेब वालो की बातों से इतना समझ आया कि इन्हें ज्यादा खून चाहिए होगा रिपोर्ट के लिए। मेडिकल से बटरफ्लाई लेकर आने को कहा मुझसे। ले आया, बटरफ्लाई भी एक तरह का इंजेक्शन ही है। ज्यादा खून निकालने के लिए पाइप वाला होता है। इन साहब ने भी मोटा इंजेक्शन भर लिया। हालांकि कुँवरुभा कुछ देर चिल्लाए, लेकिन थोड़ी देर बाद भूल भी गए जब कुल्फी खाने की बात आई।


घर जाते हुए रास्पबेरी, मेंगोडोली, मावा मलाई वगेरह वगेरह कुल्फियो की जयाफ्त से सारे दुख दर्द भुला दिये गए। फेमिली को घर छोड़कर मैं रिपोर्ट्स लेने वापिस लेब गया, वहां से केवल एक रिपोर्ट मिला और समय हो चुका था दोपहर के डेढ़.. सबका भोजनादि-विश्राम का समय होता है। हॉस्पिटल जाते हुए मैं रास्तेभर यही सोच रहा था कि ऐसी धूप में तो कोई मजबूर होगा वही निकल रहा होगा। क्योंकि बहुत कम बाइक्स थी रोड पर, मैं भी मूर्ख कार घर छोड़कर बाइक लेकर गया था यह सोचकर कि रिपोर्ट मिल जाएंगे तो वहीं से सीधे ऑफिस निकल जाऊंगा। लेकिन नसीब में भरी दोपहरी की गर्मियां लिखी है, सारी रिपोर्ट्स मिली नही। तो जितने पेपर्स मिले थे वे घर छोड़ने चला आया। पेपर्स घर देने का तो बहाना था, वास्तव में तो इस धूप से त्रस्त होकर ही घर लौटा था, क्योंकि उस अस्पताल से ऑफिस लगभग 14 किलोमीटर पड़ता, वह भी हाइवे, कहीं छांव नही, कहीं रुकने के लिए स्टॉप नही.. घर आया, भोजन करके तीन बजे वापिस ऑफिस गया। कुछ देर रिल्स देखी, और फिर काम मे उलझ गया।


सप्तर्षि ठीक ऊपर से थोड़ा उत्तर में है...

आसमान में जेट्स गस्त लगा रहे है फिलहाल। सप्तर्षि ठीक ऊपर से थोड़ा उत्तर में है, और इसी सप्तर्षि के बीच से अभी गुर्राते हुए कुछ फाइटर जेट्स निकले है। हाँ तो दोपहर बाद काम भी था, और खाली समय भी..! कुछ दिनों पहले एक फौजी रील आयी थी, एक रुआबदार मूंछो वाले फौजी कह रहे थे, 'तलवार से बिजली कड़के, लाल लहू बहे धरती, यह वर दे प्रभु मोहे, विजय मिले या वीरगति।' राष्ट्रप्रेम से भरी यह पंक्ति अंतिम निर्णायक युद्ध को दर्शाती है। जहाँ या तो मारना है या फिर बस मरना है। इन पंक्तियों के उद्घोष करते वे फौजी हनुतसिंह थे। जिन्हें प्यार से फौज में 'जनरल हनूत' कहकर बुलाया जाता था। दुबला देह, लेकिन गर्विष्ठ और साथ ही सौम्य चेहरा, बड़ी रुआबदार मूंछे.. हनुतसिंह पूना हॉर्स के कमांडिंग अफसर थे 1971 कि जंग में। और उनका बड़ा योगदान रहा था अमरीकी पैटन टैंक्स नष्ट करने में। तो आज उन्ही पर एक लेख लिख दिया था, लेकिन साढ़े आठ बजे तक भी उसमे कुछ अच्छे एडिट्स बाकी रह गए थे उन्हें वहीं अधूरा छोड़ घर आ गया था।


कुँवरुभा मोबाइल में व्यस्त थे। दिनभर उन्हें मोबाइल नही दिया जाता, बस शाम को दादाजी से फोन लेने की अनुमति है। और वे तल्लीन हो जाते है। मैं खाना पीना करके ग्राउंड चला गया था। एकाध घंटे पत्ता और गजे से गप्पे लड़ाए, और अब बस छत पर बिस्तर में पसर गया हूँ। छत पर सोने में बड़ा आनंद आता है प्रियंवदा। ac फैल है इस छतपर आते पवनो के आगे। कुछ दिन यहीं सोने का आनंद मिलेगा, फिर मच्छरों के त्रास शुरू हो जाएगा। यह मच्छर और पाकिस्तानी दोनो एक से है। दोनो को खून चाहिए हमारा।


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ठीक है फिर, शुभरात्रि।

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