नयी शुरुआत की कोशिशें
पता नही आज कम्प्यूटर ड्राफ्ट में क्या छोड़ आया हूं, बिल्कुल नए से शुरुआत करनी पड़ेगी, आठ बजे लिखने बैठा था, लेकिन कुछ काम आन पड़ा तो घर आ जाना पड़ा। और अब याद कर रहा हूँ कि दिलायरी में आज क्या लिखा था तो याद नही आ रहा। कोई नही, यह तो घर की खेती जैसा काम है, कहीं से शुरुआत हो जाए, है ना प्रियंवदा.. वैसे तुम्हे एक बात बतानी तो रह ही गयी। आजकल मैं अपनी जीवनचर्या में बदलाव करने लगा हूँ। सुबह साढ़े छह को जाग जाता हूँ। हालांकि अभी तक मैदान में कसरत करने जाने की प्रेरणा ग्रहण की नही है। लेकिन पहल तो पहल होती है ना..
अब दिनभर ऑफिस में बैठा नही रहता, हर एक घंटे में एक थोड़ा सा दूर चक्कर मारकर आता हूँ। यह छोटे छोटे बदलाव ही बड़ा असर डालेंगे.. शायद..! आशा तो मैं रखता ही नही। वैसे दूसरी बार लिंक टूटी, अभी तक इतना लिखा ही था कि कहीं जाना पड़ गया। अब दुकान पर बैठा एक बीड़ी को होंठ में दबाए गुजरते वाहनो के कर्कश आवाजो के बीच लिखने के लिए ध्यान केंद्रित करने में लगा हूँ। कठिन है रे बाबा, कठिन है.. लगता है कउनो मुहूर्त वुहुर्त का चक्कर है.. अभी अभी गजे का फोन आया, 'शाखा में नही आया..?' अब क्या करूँ, दूसरे कामो के बीच से एक तो यह समय निकालकर चुपचाप दुकान पर बैठा हूँ।
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Nayi Shuruaat ko aatur Dilawarsinh... |
जन्मदिन की शुभकामनाएं और YQ वापसी
सुबह से आज तो खुदके कामो के लिए ही समय निकाला है। ऑफिस के भी ढेरो काम थे, लेकिन बार बार अपने कामो के लिए गुल्ली मारता रहा। सुबह ऑफिस पहुँचा लगभग पौने नौ को। हाँ, आजकल जल्दी जाग जाता हूँ तो सवेरे ऑफिस भी जल्दी पहुंच जाता हूँ। काम कुछ था नही तो yq के गलियारे में घूम रहा था। पता चला एक मित्र का जन्मदिन है, और मेरी कल वाली पोस्ट पर कुछ रिप्लाय करने थे। तो लगे हाथ मित्र को जन्मदिन की शुभेच्छा हेतु, और कुछ पुराने अंदाज पर हाथ आजमाने हेतु भी एक छोटी सी कहानी या बातका बतंगड़ सा ही लिख दिया..
दोपहर तक कामो के बीच बीच में लिखता रहा, और लगभग एक-डेढ़ बजे तक पोस्ट तैयार हो गयी तो एक फोटो को एडिट कर के yq पर पब्लिश कर दी.. शाम तक वही बातों का दौर चला..! बड़े दिनों बाद मैं yq पर इतनी देर तक रुका रहा। लेकिन मेरा यह शौक उतर भी जल्दी जाता है। (आज तो लगता है दुकान पर लिखना भी मुश्किल है। रुगा भी आ धमका। और अब यहां दो लोग गलत स्कैनर पर यूपीआई पेमेंट कर देने के चक्कर मे बहस कर रहे है। मूर्ख खुद की गलती पर भी चौड़ में आ जाते है।)
दोपहर की तपिश और आलस का आराधन
खेर, शाम को स्नेही के साथ आज लंबी चर्चा होते होते रह गयी। स्नेही के साथ हुई चर्चाएं अभी याद आ रही है। जब वाद-विवाद पर उतर आते है तो मैं तो बाकी सब कुछ भूल ही जाता हूँ, जैसे यह विवाद एक स्पर्धा है और मुझे जितना है। लेकिन स्नेही भी सही है, विवाद ज्यादा उग्र होने लगे तो वह अपने कदम पीछे खींच लेता है। वैसे आज कुछ मुद्दा था नही, और आजकल ऑफिस में कूकर में फूटते पॉपकॉर्न की तरह काम प्रकटता है, इस कारण से भी रिप्लाय देने में देरी हो जाती है, फिर चर्चा का कोई तात्पर्य रहता भी नही है।
आज वैसे दिनभर चलता भी रहा हूँ। हाँ, दोपहर को कहीं नही गया, कारण धूप है। आजकल धूप - मतलब दोपहर का तापमान 42 के आसपास जाने लगा है। बाहर निकलते ही लगता तो ऐसा है जैसे चमड़ी जल रही है। इसी कारण से चुपचाप ऑफिस में ऐ.सी. चालू करके आलस का आराधक बन पड़ा रहता हूँ। कुछ देर लगता है जैसे आंख लग जाएगी लेकिन नींद आती नही है।
अभी कुछ देर पहले हुकुम का आदेश आया था, माता के मढ के लिए टिकिट बुक कर देने के लिए। उन्हें कई बार बता चुका हूं आप कर चलाने की प्रैक्टिस करते रहो तभी हाथ बैठेगा। लेकिन नही, रविवार को भी वे दूसरे-तीसरे कामो में व्यस्त रहते है। वैसे आती तो है उन्हें, लेकिन उनके बाजू में बैठने में मैं थोड़ा थरथराने लगता हूँ।
'हुं रे हरणी' — एक गुजराती भजन की गूंज
ठीक है, आज वैसे नया कुछ पढा नही, लेकिन हां एक गुजराती भजन की एक पंक्ति जरूर से कुछ देर सोचने पर मजबूर गयी, 'हुं रे हरणी ने, पीयू मारो पारधी..' तात्पर्य मैं हिरनी हूं और मेरा पीयू (प्रेमी) पारधी है, शिकारी है। इसका मर्म आप भी समझिए। और मैं चलता हूँ। कल सुबह और जल्दी उठना है।
शुभरात्रि।
(०४/०४/२०२५, २३:०६)
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