जब उम्र के साथ प्रेम की परिभाषा बदलती है
वो जो चाँद तारे तोड़ लाने वाली बातें थी वे बड़ी बेफिझुल सी लगती है। उम्र का यह पड़ाव प्रेम में संघर्ष या साहस नहीं चाहता.. शांति चाहता है। शायद उम्र के अनुसार प्रेम की व्याख्याएं बनती बिगड़ती है। जैसे कोई अठारह का युवक मरने मारने तक उतारू हो जाता है, लेकिन वहीं पचीस तिस का व्यक्ति अबाध्यता और शांति चाहता है प्रेम से। पचास के आसपास तो बस एक दूसरे को झेलना होता है। और साठ के बाद एक दूसरे को निभाना..! मतलब यह छलिया प्रेम उम्र के प्रत्येक पड़ाव में अपना रूप बदलता है।
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kaam ke pichhe pagal Dilawarsinh... |
शनिवार की धीमी शुरुआत और दिलायरी का अपडेट
ऑफिस पहुंचा तब साढ़े नौ हो चुके थे। काम कुछ ख़ास था नहीं, तो फ़िक्र न थी। शनिवार के दिन वैसे व्यस्तता ज्यादा होनी चाहिए जबकि आज न बराबर ही रही। सबसे पहला काम था दिलायरी को अपडेट करना.. कल रात साढ़े दस बजे लिखकर शुभरात्रि कह दिया था लेकिन मित्र का फोन आया, गप्पे लड़ाने.. तो रात एक डेढ़ बजे तक जागे थे, वही अपडेट करना था। फिर पोस्ट कर दी। स्नेही को नहीं भेजी कारण कल की दिलायरी में कोई मुद्दा था ही नहीं, बस दिनचर्या थी, क्योंकि थोड़े क्रोधवश लिखी थी।
क्रोध का कारन मात्र यही था की एक तो दिनभर ऑफिस के काम करो और फिर शाम को घर के काम.. हालाँकि मैं दिलायरी में अपनी अकर्मण्यता ही प्रकट रखता हूँ। लेकिन तब भी ऑफिस से आया आदमी थका हुआ ही होता है। फिर घर के और काम करने पड़े तो एकचोट तो गुस्सा आ ही जाता है। सब के साथ ऐसा ही होता है। चाहे दिनभर कुछ न किया हो लेकिन फिर भी आलस का आराधक थोड़ा उग्र हो ही जाता है।
गर्म हवाएं, तीखी दाबेली और जली हुई जिह्वा
कब डेढ़ बज गया पता न चला। एक व्यापारी मोतीचूर के लड्डू दे गया था। तो मैं और गजा अजगर की भाँती तीन-तीन लड्डू निगल गए। फिर कुछ देर मोबाइल चलाते हुए याद आया कि मार्किट में एक काम है। निकल पड़े, हमे तो बहाना चाहिए होता है। दो दिन से तेज चलती हवाओं के कारण सूर्य के ताप में भारी गिरावट हुई है। लेकिन आज धूप ने नहीं तो धूल ने परेशान किया। इतनी तेज चलती हवा का एकमात्र साथी धूल ही तो है। मार्किट का काम तो दो मिनिट का ही था। फिर आज गजे ने कहा, मीठा बहुत खा लिया था, कुछ तीखा नाश्ता करते है।
और मैं जरा भी तीखा नहीं खाता। मुझसे तीखा बिलकुल सहन नहीं होता। जिह्वा जलने लगती है, पसीने बहने लगते है। खानी तो दाबेली ही थी। पहुंच गए। एक तीखी और एक मीडियम.. लेकिन उस गधे ने उलटफेर कर दी। गजे के दो बार पूछने पर भी उसने तीखी वाली को मीडियम बताया, और मीडियम वाली को तीखी.. एक बाईट लेते ही मुझे तो समझ आ गया कि जिंदगी जली हुई हो तो जिह्वा भी आज भले ही जले.. हाथ-रूमाल से कपाल पोंछते हुए भी खत्म जरूर की.. बताओ, जिसे तीखी खानी थी उसे फीकी लगी। पानी की बर्फ जैसी बोतल धीरे धीरे गटकता रहा रास्ते भर। ऑफिस पहुंचे लगभग ढाई बजे।
रूबिक्स क्यूब की शर्त और चोरी का पकड़ा जाना
वो कुछ देर में निपट गया। बहुत समय बाद ऐसा शनिवार आया जिसदिन मुझे काम खोजना पड़ा। वरना ओवरलोड होता है शनिवार। शायद हनुमानजी की मेहरबानी, और क्या? प्रियंवदा, हवाओ ने भरपूर बहकर दोपहरी सूर्य का तेज जरूर कम किया है। लेकिन गर्मी कम करनी उसके बस की नहीं। गर्मी तो ऐसी है की कुछ किये बिना बस ऐसे ही बैठे हो तब भी पसीना बहता है। लू के केस खूब बढ़ रहे है। वो तो तय है।
ऐसी धूप में भी काम किसी का बंद नहीं रहता है। भागदौड़ सबको करनी पड़ती है। ठीक है फिर, अब घर चले जाना चाहिए। कुछ देर उस रूबिक्स क्यूब में भी तो उलझना है। बड़ी खतरनाक आइटम है यह भी, पूरी ही गाणितिक प्रक्रिया से सराबोर। अब तो घर में ही शर्त लगी पड़ी है कि जो सॉल्व कर दे उसे इनाम.. मैंने कल चोरी छिपे यूट्यूब से देखकर आधा सॉल्व किया लेकिन पकड़ा गया।
चोरी बुरी बला है, आज नहीं तो कल पकड़ी जाती है। ठीक है, आज इतना बहुत हो गया। शुभरात्रि।
(१२/०४/२०२५)
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प्रिय पाठक,
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या रूबिक्स क्यूब के लिए चोरी पकड़ी हो…
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IDHAR TO HAWAAO NE THAND WAPAS LAA DI HAI !
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