गुजरात में गढ़-किलों के बचेखुचे अवशेष..! || The remaining remains of forts in Gujarat...!

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गुजरात में गढ़-किलों के बचेखुचे अवशेष..!



यूँ तो गुजरात का इतिहास बहुत पुराना है, श्री कृष्ण की द्वारिका से लेकर वल्लभी के मैत्रको तक, बौद्ध, जैन तथा ब्राह्मणो के मत फलने-फूलने से लेकर इस्लाम के आगमन तक। शांति काल से लेकर लगातार युद्धों में व्यस्त रहने तक। बड़े बड़े रजवाड़ो से लेकर एक छोटे से तालुकदारी गाँव तक। विश्वासघात से लेकर वीरगति तक। समस्त गुजरात में शायद सबसे ज्यादा संघर्ष सौराष्ट्र ने देखा है। क्योंकि यहां एक एक छोटा गाँव स्वतंत्र तालुकदारी राज्य हुआ करता था। अब सीधे मराठा काल में आते है। शिवाजी की सूरत लूट से मराठो को गुजरात के धन का पता चल गया था, फिर पेशवा काल में मराठे टिड्डो के झुण्ड तरह सौराष्ट्र भर में उतरते, और गाँव के गाँव संघर्ष में जौंक दिए जाते..! सौराष्ट्र में एकता नहीं थी, आपस में ही भयंकर विस्तारवाद मचा हुआ था। सौराष्ट्र को चार हिस्सों में बाँट दिया जाए तो गोहिलवाड़, हालार, झालावाड़ तथा सोरठ थे। आज की दृष्टि से भावनगर गोहिलवाड हुआ, जूनागढ़ सोरठ, जामनगर हालार, तथा सुरेंद्रनगर झालावाड़। एक तरफ जामनगर (नवानगर) का मेरु खवास खूब शक्तिशाली हो गया था, गोहिलवाड़ की और से आताभाई (वखतसिंहजी), गोंडल से भा'कुंभाजी, और जूनागढ़ का दीवान अमरजी। इन चारो ने अपने विस्तारवाद की आकांक्षा में सौराष्ट्र को बड़ा सा चेसबॉर्ड बनाकर खूब वर्चस्व लड़ाया..! दूसरी ओर अस्त होने को आतुर दिल्ली सल्तनत का स्थान लेते उदित होते मराठे मजबूती से अपनी पकड़ जमाते जा रहे थे। पेशवा तथा गायकवाड़ मिलकर बड़ी सेना लेकर सौराष्ट्र में उतरते और सौराष्ट्र के तमाम राजाओ से चौथ वसूला करते। शुरू शुरू में खूब संघर्ष हुआ, लेकिन एकता की कमी के कारण गोहिलवाड अकेला लड़ा, जूनागढ़ ने अकेले ने संघर्ष किया, हालार और झालावाड़ ने भी अकेले से सामना करने के पश्चात शांति की किम्मत चौथ के स्वरुप में स्वीकारना कबूल किया।


लालच का कोई तोड़ कहाँ है? पेशवा तथा गायकवाडी फ़ौज अपने मन अनुसार चौथ की रकम वसूलती.. चाहे राज्य छोटा हो या बड़ा.. चाहे उस राज्य की आय कम हो या ज्यादा.. चौथ की रकम बड़ी ही होती, जिसे चुकाने में सौराष्ट्र में संघर्ष हो ही जाता। १८०२ में पेशवा बाजीराव दूसरे के वसई समझौते, और १८०४ में गायकवाड़ समझौते के कारण अंग्रेज गायकवाड़ तथा पेशवा दोनों के ऊपरी हो गए। कर्नल एलेक्जेंडर वॉकर को मुंबई के अंग्रेज सरकार के प्रतिनिधि के तौर पर वड़ोदरा (गायकवाड़ राज्य की राजधानी) में रेजिडेंट का पद मिला था। वॉकर को यह चौथ (टैक्स) वसूलने का तरीका बदलने की जरूरत लगी। उसने अच्छे से समझा था कि अच्छे से खंडणी (टैक्स) वसूलने के लिए संघर्ष को कम करना होगा। राजाओ को आश्वासन देकर थोड़ी सी नियमितता लाने की जरुरत उसे मालुम हुई। उसने एक संधि-करार बनवाया। सौराष्ट्र के राजाओ के साथ एक निश्चित खंडणी (टैक्स) का करार (समझौता) कर के सौराष्ट्र में से अशांति, असलामती, तथा अराजकता का अंत लाना वॉकर का प्राधान्य था। १८०७ के आसपास मोरबी के पास गुंटू में सभी राजाओ को इकठ्ठा किया। प्रत्येक राजवी गायकवाड़ को देनेपात्र जमाबन्दी (टैक्स) की रकम प्रतिवर्ष वडोदरा की तिजोरी में भेज देते है तो गायकवाड़ के लश्कर को सौराष्ट्र में आने की जरुरत न पड़े, और वहां के लोग तथा गाँव लश्कर के त्रास से बच सके। ज्यादातर राजवीओ ने इस योजना को स्वीकार लिया। और मुख्यतः चार शर्तो के साथ समझौता हुआ,

  • खंडणी (टैक्स) का कायमी करार : इस शर्त के अनुसार राजा अपनी खंडणी की रकम अपने प्रतिनिधि को वड़ोदरा भेजकर मृगशीर्ष, पोष, महा तथा फाल्गुन इस तरह चार मासिक हप्ते में चुकाने की खातरी दी।
  • खंडणी भरते रहने का दस वर्ष का जामीन करार : यह शर्त राजा के बारोट के साथ की गईं, क्योंकि प्रत्येक राजा अपने बारोट को खूब मान देते थे।
  • भायातों के साथ करार : इस करार से राजाओ से वचन लिया गया कि राजा के भायात (राजा के भाई या जिन्हे राजा ने छोटी जागीरें दी है और वे स्वतंत्र हुए है।) गायकवाड़ को अलग सीधे ही खंडणी चूका सकते है, और राजा अपने भायात को किसी भी तरह से परेशान नहीं कर सकेगा।
  • फ़ैल जामीन करार : इस शर्त के अनुसार राजा अपने राज्य में चोरी, धाड़, लूट, खून जैसे गुन्हा रोकेंगे, तथा पड़ोसी राज्य के गुनेहगार को अपने राज्य में आश्रय तथा शरण नहीं देंगे, इस बात की खातरी राजाओं की और से उनके चारण-गढवीओं ने दी थी। गढ़वी और एक अन्य राजा को जामिन बनाया गया। प्रत्येक राजा अपने चारण-गढ़वी का खूब आदर करते थे। 
इन करारो से सौराष्ट्र में शान्ति, व्यवस्था और कायदे के शाशन की शुरुआत हुई। चोरी, लूट, त्रास तथा मुख्यतः युद्ध होने बंद हो गए। आमलोग ने शान्ति का अनुभव किया। कुछ राजाओंने शुरुआत में इन करारो का विरोध जरूर किया लेकिन अंग्रेजी सेना का संख्याबल उन्हें भी इस संधि मानने को मजबूर कर गया। इन संधि की मुख्य भूमिका में कर्नल एलेक्ज़ेंडर वॉकर रहा था, इस कारण से यह करार 'वॉकर करार' या 'वॉकर सेटलमेंट' कहा गया। अब सब कुछ ही एक सिस्टम से चलने लगा। शान्ति काल में प्रगति होने लगी, युद्ध होने बंद हो गए, तो युद्ध की ढाल समान गढ़ और किले निरुपयोगी से बन गए। राजाओ को भी अब गढ़ के संरक्षण की जरुरत न रही तो वह बचा हुआ रुपया अपने राज्य को सजाने में लगाने लगे। मोरबी, भुज, गोंडल, जामनगर, भावनगर जैसे बड़े राज्यों में आज भी बहुत सी जगह यूरोपियन स्टाइल का आर्किटेक्ट देखने मिलता है। लेकिन वृद्ध और दुर्बल हो चुके गढ़-किलो का अब कोई भी सहारा न रहा है। 

इसमें, मतलब की इस पोस्ट में अब से मैं मेरी गूगल मैप्स यात्रा लिखा करूँगा..! मैं क्या सर्फिंग कर रहा हूँ, स्ट्रीट व्यू में क्या दिखा.. वगैरह वगैरह..! वैसे तो मैं मैप्स में बहुत कुछ देख चूका हूँ, पर अब से इसमें यहीं पर अपडेट करता रहूँगा।


  1. सडोदर : गाँव के बीचोबीच एक बड़ा सा गढ़ है। पूर्णतः युद्धोपयोगी गढ़। गढ़ के भीतर खँडहर सी दीवारे दिखती है। कालावड तथा ध्राफा के बिच में स्थित है यह गाँव।
  2. ढांक : ढांक का इतिहास तो बहुत पुराना है। वाळा राजपूतो की राजधानी रही है यह। यहाँ बहुत विशाल गढ़ है, गढ़ के भीतर पैलेस है लेकिन खाली है। ढांक के ठीक पीछे पहाड़ियों में प्राचीनतम बौद्ध गुफाएं है।
  3. अमरापर : यहाँ गढ़ का एक कोठा (रांग) अभीतक अड़ीखम खड़ा है। 
  4. कुतियाणा : पोरबंदर के राणाओ के आधिपत्य में आता था, वहां एक पैलेस है जो अब हाईस्कूल है। और हाँ, कुतियाणा में एक मस्जिद है, पुराने स्थापत्य के अंदाज में बनी हुई। और मामलतदार ओफ्फिस के पास ही छोटा महल बना है।
  5. बावरावदर : कुतियाणा से कुछ दूर, गढ़ का एक कोठा खड़ा है। दीवारे मिट चुकी है। 
  6. अमर : राणा कंडोरणा के ठीक पास अमर नामक गाँव है, गाँव के केंद्र में गढ़ है, और स्ट्रीट व्यू तो इस गाँव के गढ़ के भीतर तक ले जाता है। 
  7. राणावाव : गढ़ सकुशल मौजूद है। लेकिन गढ़ की चारो दीवारों की बाहरी तरफ दुकाने है। गढ़ के भीतर पोरबंदर राणा की कुलदेवी विंध्यवासिनी माता का मंदिर है। एक सरकारी शाला के पास बड़ा सा बंगलो है, पैलेस समान ही है। तथा पास ही इस्लामिक स्कूल है, वह भी सुन्दर स्थापत्य है।
  8. आदित्याणा के पास जांबवान गुफा है, भगवन कृष्ण तथा रामायण के पात्र के जांबवान के मध्य यहां युद्ध हुआ था। जांबवान की पुत्री जाम्बुवति के संग श्री कृष्ण का विवाह हुआ था। 
  9. पोरबंदर : ओल्ड कोर्ट, ठीक समंदर के किनारे चौपाटी पर बना हुज़ूर पैलेस, भावसिंहजी हाईस्कूल, स्टेट लाइब्रेरी, दरबारगढ़, महात्मा गाँधी के पिता पोरबंदर राज्य के दीवान थे, तो माणेकचौक तथा कीर्तिमंदिर भी, सुदामापूरी, .. वैसे पोरबंदर तो जेठवाओ की राजधानी थी, तो यहाँ तो बहुत सारे स्थापत्य मिलेंगे।
  10. छांया : पोरबंदर शहर में समाहित हो चूका छांया किसी समय पर जेठवा राणाओ की राजधानी थी। एक साबूत गढ़,  सम्पूर्ण, बिना किसी नुकसान के खड़ा है। गढ़ के भीतर जेठवाओ की कुलदेवी विंध्यवासिनी माता का मंदिर है। 
  11. पांडावदर : गढ़ के भग्नावशेष तथा डेली है।
  12. श्रीनगर : जेठवा की एक समय राजधानी रही थी, दरबारगढ़ है। 
  13. बरडिया : श्रीनगर से थोड़ी ही दूरी पर बरडिया में पैलेस है। 
  14. विसावाड़ा : गढ़ के भीतर प्राथमिक शाला है। 
  15. मोढ़वाडा : जीर्ण गढ़ के भग्नावशेष..!
  16. घुमली : यहाँ तो हर चीज देखने लायक है, नवलखा से लेकर पहाड़ पर सोन कंसारी के मंदिरो तक.. 
  17. मोड़पर : भाणवड से राणावाव रोड पर मोडपर गाँव है, पहाड़ी पर मोड़पर का किला है।
  18. अडवाणा : पोरबंदर से जाम-खंभाळीया के रास्ते पर अडवाणा गाँव में किला है। 
  19. मियाणी : पोरबंदर द्वारिका हाइवे पर मियाणी गाँव में एक किला है, प्राचीन जैन पार्श्वनाथ मंदिर, तथा प्राचीन शिव मंदिर है।
  20. गंधावी : यहां वर्तु नदी समंदर में मिलती है, तथा मेधा क्रीक है। पास ही कोयला पर्वत पर हरसिद्धि माता का प्राचीन मंदिर है। 
  21. बांकोडी : भाटिया से कल्याणपुर मार्ग पर बाँकोडी में गढ़ का कोठा है, बुर्ज या रांग कह सकते है। 
  22. जाम खीरसरा : अडवाणा से थोड़े ही आगे जाम खीरसरा में अच्छा खासा बढ़ा गढ़ है। 
  23. गुरगढ़ : खंभाळिया से द्वारिका रोड पर गुरगढ़ में एक जीर्ण गढ़ है। शायद जत मलेको का गाँव है।
  24. पोसितरा : ओखामण्डल में पोसितरा से थोड़े आगे अजाब माताजी का मंदिर है, स्थापत्य बहुत पुराना है। इस ओखा मंडल में बहुत सारे अति प्राचीन मंदिरो के अवशेष है। स्वर्ण द्वारिका के कालीन माने जाते है। यहीं पोसितरा के पास एक अति प्राचीन काली माता के मंदिर के भग्नावशेष खड़े है। ध्रासणवेल के पास प्राचीन पथ्थरो से बना मगदेरा महादेव का मंदिर है। 
  25. कोराडा : खंभाळिया से द्वारिका रोड पर कोराडा में गढ़ मौजूद है। 
  26. आरंभडा : राजस्थान से आए राठोड़ो की एक वाढेर शाखा बनी, जिनकी राजधानी ओखा के पास आरंभडा थी। बड़ा सा किला और दरबारगढ़ मजबूती से खड़ा है।
  27. शिवराजपुर : गाँव के बाहर कच्चीगढ़ नामक स्थान पर एक गढ़ के भग्नावशेष खड़े है, लेकिन पास ही शिवराजपुर बिच को ब्लू वाटर बिच का तमगा मिला है इसी कारण से इस गढ़ के भीतर थोड़ा बहुत रिनोवेशन किया गया है। 
  28. वरवाळा : द्वारिका से ओखा के रास्ते पर वरवाळा गाँव में किले की कुछ बची हुई दीवारे भव्य गढ़ होने की चुगली करती है। गढ़ का ज्यादातर हिस्सा ध्वस्त करके बिच में सरकारी शाला बनी हुई है।
  29. धिनकी / ढीणकी : द्वारका से नजदीक ही इस गाँव में गढ़ का दरवाजा और टूटने को तैयार दीवारे खड़ी है। 
  30. मोटा असोटा : जाम खंभाळिया से दूर समुद्र के पास बसे इस गाँव में किला है, भीतर शाला है, और कुछ घर मौजूद है। 
  31. जोगवड : कच्छ में आपसी टकराव के बाद जाडेजाओ ने सौराष्ट्र आकर नवानगर (जामनगर) बसाया, अपनी इष्टदेवी आशापुरा माता को साथ ले आए थे, और यहाँ जोगवड में उनका स्थानक बना, पुराने स्थापत्य में बना यह मंदिर का दरवाजा आकर्षक है।
  32. डबासंग : लालपुर तहसील के डबासंग में दरबारगढ़ का दरवाजा (एंट्रेंस)...!
  33. मटवा : जामनगर से कालावाड रोड पर मटवा पूरा गांव ही किलेबंद है।
  34. हापा : जामनगर के पास में ही हापा गांव में एक मजबूत गढ़ खड़ा है। रोहड़िया शाख के चारणों का गढ़ है।
  35. माछरडा : एक लम्बा इतिहास है वाघेरो का..! वाघेरो की माणेक शाखा प्रख्यात हुई, जाडेजा राजपूतो के वंशज माने जाते है। १८५७ के विप्लव के दौरान ओखामण्डल में भी कुछ बदलाव हुए। गायकवाडी सूबे तथा अंग्रेजी पलटन को ओखामण्डल से वाघेरो ने भगा दिया, लेकिन संख्या में कम होने के कारण इन्होने 'बहारवटिया' का मार्ग अपनाया। जोधा माणेक, मुळू माणेक, तथा देवा माणेक प्रसिद्द बहारवटिया हुए, उनमे से देवा माणेक इस माछरडा की टेकरी पर अंग्रेजो द्वारा घेर लिया गया, तब उसने मरते मरते हेबर्ट तथा लाटूश नाम के दो अंग्रेज अफसरों को भी मार दिया। इस माछरडा की टेकड़ी पर कीर्तिस्तम्भ खड़ा किया गया है।
  36. मोटा खडबा : लालपुर के पास मोटा खडबा में गढ़ था, लेकिन नष्ट हो चूका है। 
  37. झीणावारी : इस गाँव में गढ़ के दो बुर्ज खड़े है, और एक प्राचीन शैली में बना सूर्यमंदिर है। 
  38. होथीजी खडबा : दल जाडेजा ओ एक मजबूत गढ़ खड़ा है। 
  39. भंगड़ा : गढ़ का कोठा तथा डेली (दरवाजा) दिखाई पड़ती है। 
  40. ध्राफा : पूरा गाँव किलेबंद था, लेकिन फ़िलहाल कई जगहों पर गढ़ की डेली तथा बुर्ज खड़े है। दीवारे टूट चुकी है। 
  41. जाम जोधपुर : विकास की गति में दबकर रह गयी गढ़ की डेली मात्र.. किले की दीवारे घिर चुकी है, शत्रुओ से नहीं, पड़ोसियों से। आसपास दुकाने तथा बाजार ने गढ़ की डेली मात्र छोड़ी ही, और गढ़ के भीतर होमगार्ड्स की कचहरी है।
  42. सिदसर : वेणु नदी के किनारे इस गाँव में एकमात्र गढ़ का बुर्ज है। यहां उमिया माता का मंदिर है, और वेणु नदी के तट पर रिवरफ्रंट बनाया हुआ है। 
  43. हरियासण : गढ़ का एक बुर्ज है। 
  44. मोटी पानेली : गढ़ का एक बुर्ज खड़ा है, लेकिन वेणु के किनारे दो ब्रिटिशकाल की इमारते है, एक में स्कूल बन चूका है, दूसरी में अस्पताल। दिखने में दोनों इमारते पैलेस लगती है। 
  45. माण्डासण : खाली और खँडहर हो चूका गढ़ खड़ा है। 
  46. कोलकी : एक समय पर यह पूरा ही गाँव जरूर किलेबंद रहा होगा। अब तो बस एक थोड़ी सी दिवार और जाम-जोधपुर की दिशा का दरवाजा शेष बचा है। 
  47. उपलेटा : एक समय पर गोंडल के जाडेजाओ ने जूनागढ़ नवाब को संरक्षण देकर उपलेटा तथा धोराजी अपनी राजसत्ता में मिला लिया था। उपलेटा में बहुत सारे ब्रिटिशकालीन स्थापत्य है। दरबारगढ़ बहुत बड़ा है। गढ़ के बुर्ज बहुत बड़े है। धोराजी दरवाजा। उपलेटा तालुका शाला तो पैलेस समान ही है। रेलवे स्टेशन पर तो अभी तक गोंडल स्टेट का राजचिन्ह बना हुआ है। नगर में बहुत सारी पुरानी इमारते है, झरोखे वाली, और जालीदार खिड़कियों वाली। इसके अलावा जामा मस्जिद का बांधकाम काबिलेदाद है। सर भगवतसिंह गोंडल के इतने लोकप्रिय राजा हुए कि प्रजा लाड से उनका नाम पुकारते 'भगाबापु' कहकर बुलाती थी। 
  48. मेरवदर : गढ़ का बुर्ज है तथा दरबारगढ़ पैलेस है। 
  49. गणोद : उपलेटा से कुतियाणा रोड पर रोड से थोड़ा अंदर गणोद गाँव है। बहुत बड़ा दरबारगढ़ है। 
  50. लाठ : चुडासमा राजपूतो का गाँव है, तथा दरबारगढ़ की डेली तथा बुर्ज दिखाई पड़ते है। 
  51. भीमोरा : यहाँ प्राचीन वाव (बावड़ी) है। 
  52. सरदारगढ़ : खँडहर हालात में पैलेस तथा भग्न गढ़ के अवशेष है। हालाँकि सरदारगढ़ बाबी पठानों का था, जूनागढ़ नवाब के वारिस। स्वतंत्रता के दौरान पाकिस्तान में जुड़ने के दस्तखत किये थे, लेकिन आरझी हुकूमत के कब्जा कर भारत में मिला दिया था।
  53. सराड़िया : कुतियाणा-बांटवा रोड पर सराड़िया में गढ़ का एक बुर्ज तथा डेली (दरवाजा) बना हुआ है। 
  54. मरमठ : सराड़िया के पास ही मरमठ गाँव में एक मात्र बुर्ज है, लेकिन यहां चौरस बुर्ज है। गुजराती में बुर्ज को गढ़कोठा कहते है।
  55. जाम सखपुर : देवड़ा तथा तरसाई के बिच पड़ता जाम सखपुर गाँव में मजबूत किला बना हुआ है। 
  56. खंभाळा : बरडा की पर्वतमाला में खंभाळा डेम के किनारे ही किसी का प्राइवेट पैलेस बना हुआ है। अध्यतन है।
  57. छत्रासा : सरदारगढ़ और जूनागढ़ के बिच में पड़ता यह छोटा सा गाँव बड़ा गढ़ लिए बैठा है। सरवैया राजपूतो का गढ़ है। 
  58. मजेवडी : जूनागढ़ के नजदीक मजेवडी पूरा गाँव ही किलेबंद है। कोई कोई जगह दिवार तोड़कर रास्ता बनाया है। 
  59. धोराजी : दरबारगढ़ बहुत ज्यादा सुन्दर है। झरोखे, और दीवारे.. हालाँकि फ़िलहाल दरबारगढ़ में तहसीलदार की कचहरी है। 
  60. माणावदर : राजशाही काल में माणावदर एक स्वतंत्र राज्य हुआ करता था, बाबी पठानों का राज था। कमालुद्दीन खान बाबी बड़े प्रसिद्द थे। बाबी कमालुद्दीन का मकबरा, नगरपालिका ऑफिस पैलेस में ही बनी हुई है। 
  61. वंथली : जूनागढ़ से केशोद रस्ते पर वंथली स्थित है। बहुत प्राचीन नगर माना जाता  है। इस नगर का 'वामनस्थली' नाम हुआ करता था। सिंध से आए चुडासमा ओ की यह प्रथम राजधानी थी। चुडासमा ओ राज्य ख़त्म होते ही गुजरात सल्तनत, और अंत में बाबी पठानों के राज्य में यह नगर आया। पूरा नगर किलेबंद है। और दो-तीन ब्रिटिशकाल या उससे भी पुरानी इमारते है।
  62. धंधुसर : यहां गढ़ की डेली है। 
  63. शापुर : वंथली तहसील में आता शापुर आज भी पूरा किलेबंद है। बस किले के दरवाजे नहीं है। 
  64. खमीदाणा : केशोद-बालागाम रोड पर खमीदाणा गाँव में गढ़ की डेली बहुत सुंदर है। 
  65. सोंदरडा : गढ़ की डेली मौजूद है। 
  66. केवद्रा : केशोद के आसपास जूनागढ़ के अंतिम हिन्दू शासक रा'मांडलिक के वंशज तथा चुडासमा राजवंश की शाखा रायजादा राजपूतो के गाँव ज्यादा है। केवद्रा में दरबारगढ़ है। 
  67. भंडुरी : जूनागढ़ गडु रोड पर भंडूरी गाँव जरूर किलेबंद रहा होगा, अब भी गढ़ के दो दरवाजे दीखते है। एक दरवाजा रिनोवेट किया गया है। 
  68. चोरवाड़ : गडु से मांगरोळ जाते हुए चोरवाड़ गाँव आता है। धीरूभाई अंबानी का गाँव चोरवाड़ है। वहां एक पुलिसचौकी है, उस पुलिसचौकी की बनावट बहुत सुन्दर है। पहले कोई घर या हवेली रही होगी वह। चोरवाड़ के समंदर किनारे एक भग्न पैलेस के अवशेष किसी दिन की भव्यता को बयान करते गिरने को शेष बचे है। 
  69. कुकसवाड़ा : चोरवाड़ से मांगरोळ रोड पर स्थित कुकसवाड़ा में दरबारगढ़ तथा किल्ला है। 
  70. शेपा : मांगरोळ से नजदीक शेपा गाँव में एक मजबूत गढ़ अखंड खड़ा है। 
  71. मांगरोळ : शहर के बीचोबीच एक पैलेस है जो अब खंडहर में तब्दील हो चूका है। 
  72. ओसा : बालागाम बगसरा रोड पर स्थित ओसा का गढ़ नामशेष ही है। एक ही बुर्ज के अवशेष मात्र है।
  73. शील : मांगरोळ से माधवपुर रोड पर स्थित इस गाँव में किले की भांति दरवाजा है। 
  74. माधवपुर : किसी समय यहाँ गढ़ जरूर रहा होगा, आज तो कोई निशाँ नहीं दीखता, लेकिन यहां कृष्ण रुक्मिणी विवाह का चोरी-मंडप है। तथा बहुत प्राचीन शिव मंदिर है।
  75. धणफुलिया : जूनागढ़ से नजदीक इस गाँव में गढ़ आज भी अभंग खड़ा है। गढ़ की डेली तथा बुर्ज मजबूत दीखते है। 
  76. अलीध्रा : काठी की वाळा शाखा का जूनागढ़ के पास अलीध्रा में राज हुआ करता था, तालुका था। दरबारगढ़ है।
  77. नगड़िया : थाणापीपळी- जूनागढ़ के पास इस गाँव में गढ़ के एकमात्र अवशेष स्वरुप डेली (प्रवेशद्वार) मौजूद है। 
  78. शेरगढ़ : अजाब के पास शेरगढ़ गाँव में दरबारगढ़ है, पथ्थर का कमानाकार दरवाजा है।
  79. मानपुर : वाळा शाखा के काठी में नाजावाळा माणसियावाळा ने मेंदरडा से नजदीक मानपुर गाँव में किला बंधवाया, आज भी वह किला राजसी ठाठ से भरपूर खड़ा है, गढ़ के भीतर पैलेस भी है। 
  80. मेंदरडा : पथ्थर का बना दरबारगढ़ जीर्ण हालत में खड़ा है। मेंदरडा शायद महिया के पास था। केशोद के रायजादा राजपूतों के बढ़ते जोर को नियंत्रित रखने के लिए के जूनागढ़ नवाब ने महिया तथा हाटीओ को केशोद के आसपास बसाया था।
  81. गोरखमढ़ी : प्राची सोमनाथ हाइवे पर स्थित गोरखमढ़ी में कपिला नदी के किनारे एक सुरक्षा की दृस्टि से बहुत मजबूत गढ़ आज भी खड़ा है। गढ़ के भीतर गोरखनाथ मंदिर है, तथा महंतो का समाधिस्थल है। गढ़ के भीतर एक सुन्दर पैलेस भी है। यह रसप्रद है, इस गढ़ के इतिहास के विषय और माहिती होनी चाहिए। देखते तो लगता है जैसे साधुओ का गढ़ हो, लेकिन फिर वहां पैलेस का क्या काम?
  82. कदवार : सूत्रापाड़ा के पास स्थित इस गाँव में भगवन विष्णु के अवतार 'वराह' का मंदिर है। और मंदिर की स्थापत्य शैली बहुत ही अलग है, शिखर नहीं है।
  83. सुत्रापाड़ा : गढ़ के अवशेष दीखते है, भीतर पुलिस स्टेशन है। 
  84. कोडिनार : गढ़ की कुछ दीवारे है, गढ़ के भीतर पोलिस स्टेशन है। 
  85. ऊना : ऊना में भी एक किलेबन्द खँडहर एक ऐतिहासिक विरासत को लिए खड़ा है। 
  86. देलवाड़ा : ऊना के पास स्थित देलवाड़ा भी एक किलेबंद नगर रहा होगा। गूगल स्ट्रीट व्यू के सहारे गढ़ के तीन द्वार आज भी खड़े दीखते है। 
  87. दीव : दीव तो वैसे यूनियन टेरिटरी है, केंद्रशासित प्रदेश, लेकिन कभी यह गुजरात सल्तनत का बंदरगाह हुआ करता था। मसालों के लिए आए यूरोपियन में से पोर्तुगीजों ने दीव पर कब्ज़ा कर लिया, और यहां एक विशाल गढ़ बनवाया, समंदर में भी एक किला है, 'पानीकोठो' कहते है। एक विजयस्तम्भ भी खड़ा है, पोर्तुगीजो का ही। यहाँ बहुत सारा यूरोपियन आर्किटेक्ट आज भी खड़ा है, कई सारे यूरोपियन चर्च। दीव द्वीप के एक छोर से दूसरे छोर तक की एक लम्बी दिवार बनी है, कुछ कुछ जगह सरकार ने उस दिवार को रिनोवेट भी किया है। इस दिवार में प्रवेशद्वार बिलकुल ही छोटे, सादे और अंडाकार है। जबकि अपने किलो के प्रवेशद्वार बड़े ही सुन्दर नक्काशिकाम किये हुए होते है। दीव में बहुत कुछ देखनेलायक है, लेकिन मुझे एक तो किला, और एक नाइडा केव्स देखनेलायक लगी है। इसके अलावा आईएनएस खुकरी मेमोरियल बनाया गया है। दीव से थोड़े दूर सिमर गाँव के पास भी समंदर में एक छोटे से द्वीप पर एक किला है, वह भी यूनियन टेरिटरी में आता है।
  88. जाफराबाद : जाफराबाद एक स्टेट हुआ करता था, राजधानी भी, और राजा थे सिद्दी। जंजीरा और जाफराबाद में सिद्दीओं का शासन हुआ करता था। आसपास के बारह गाँवों पर इनका कब्ज़ा था। जाफराबाद में बड़ा और मजबूत गढ़ खड़ा है, लेकिन दिवार टूटी है, गढ़ के भीतर सरकारी अस्पताल बना है। जाफराबाद नगर भी किल्लेबंद रहा होगा, कुछ कुछ नगर की दीवारे खड़ी दिखती है। 
  89. हीरावा : धारी से नजदीक हीरावा के पास एक पुरातन किला है, जिसकी अब केवल दो दिवार्रे शेष बची है, एक अर्धभग्न बुर्ज खड़ा है। गाँव से थोड़े दूर यह किला किसी समय सैन्य चौकी रहा होगा।

* यह पोस्ट मुझे जब भी समय मिले, मैं अपडेट करता रहता हूँ।

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