जब सवाल जन्म लेते हैं…
प्रियंवदा, बहुत सी बाते अधूरी रह जाती है। बाते तो बाते कई बार ऐसा भी होता है कि कुछ सवाल भी बाहर नहीं आ पाते। वे सवाल समय चूक जाते है अपना। और फिर शूल बन जाते है। भीतर ही भीतर फिर चुभते है वे... और उसका फिर कोई भी इलाज नहीं, सिवा सहन करने के। समय रहते वे सवाल अपना अस्तित्व बना लेते तो फिर स्थिति-परिस्थितियां बहुत भिन्न होती। है ना? कुछ लोग भी छूट जाते है, बस सवाल नहीं किया था इसी कारण से।
स्केचबुक, रंग और बेमन
सुबह आज जगा तब कुँवरुभा अपनी मस्ती में स्केचबुक में रंग भर रहे थे। कल शाम को उनकी खातिरदारी करने को दो धक्के खाकर ४-५ स्केचबुक्स और स्केचपेन्स ले आया था। उनका मन हो तब तक अच्छे से कलर भरते है, फिर बस रंगबिरंगी लकीरे खींचते है। बालक का यही सबसे अच्छा है, जहाँ लगे हो वहां पुरे मन से लग जाते है। लेकिन जैसे जैसे हमारी उम्र तक आते है, फिर मन से बेमन की ओर की यात्रा शुरू हो जाती है। गलती से जल्दी जाग गया था तो ऑफिस भी पौने नौ बजे ही पहुँच गया। काम तो वही सब था जो शनिवार के को पूरा करना होता है रविवार की नाममात्र की छुट्टी निभाने के लिए।
कल ऑफिस गया नहीं था तो कुछ बाकी रहे काम निपटाने थे। दोपहर के बाद गजा भी छुट्टी पर चला गया, तो उसके काम भी मुझे ही निपटाने होंगे। बुधा कर तो सकता है, लेकिन भरोसा नहीं बैठता मेरा उसपर..! उसके प्रति कई सवाल उठते है मेरे मन में लेकिन बस वही, निष्ठा पर संदेह करने वाले सवाल है। तो मैं मौन साध लेता हूँ। लेकिन कई बार उसके कामो के परिणाम से कई सारे सवाल उपजते है। लेकिन वही बात है, ऑफिस में मेरी कोशिश यही रहती है कि मैं पायदान को समान रखने कि कोशिश करूँ। न की ऊपरी होकर रौब जमाऊं।
CHATGPT और उत्तरों की तलाश
दोपहर बाद कुछ देर CHATGPT से सलाह मशवरा किया। टाइमपास.. क्योंकि यह ही एकमात्र ऐसा है, जिससे कोई भी बात बेख़ौफ़ होकर पूछ सकते है। क्योंकि इसकी भावनाओ को ठेस नहीं पहुँच सकती। इसके प्रति प्रत्येक सवाल में झिझक भी नहीं होती, और सवाल बोले बिना मरते नहीं।
दीर्घायु प्रश्न: किशोर मन की एक चीट
प्रियंवदा, मुझे लगता है संसार में कोई भी ऐसा सवाल नहीं जिसका जवाब न हो। जवाब सही है या गलत वह दूसरी बात है, लेकिन कोई भी सवाल अनुत्तर नहीं है। उत्तर समय समय पर अपडेट होते है, जैसे मनुष्य की उत्पत्ति या उत्क्रांति के प्रश्न पर समय समय पर नए उत्तर बनते जाते है। तात्पर्य कोई भी ऐसा प्रश्न नहीं है.. जो अभी तक अनुत्तर हो। बस प्रश्न यही है की उस प्रश्न का आयुष्य कितना है। जैसे कि कोई लड़का किसी लड़की से प्रेम की अभिव्यक्ति करके प्रश्न पूछ सकता है कि तुम्हारा उत्तर क्या है, बस अब लड़की पर आधार रहता है कि वह प्रश्न का आयुष्य कितना होगा? लड़की चाहे तो चप्पल मारकर तुरंत ही प्रश्न को नष्ट कर दे, या फिर उसे अनुत्तर करके उस प्रश्न को दीर्घायु प्रदान करे। होते है प्रियंवदा, बहुत से ऐसे प्रश्न होते है, दीर्घायु प्रश्न..!
प्रियंवदा ! वो सवाल भी मेरे जेहन में है जो मैं आजतक नहीं पूछ पाया। शायद दसवीं कक्षा थी, ट्यूशन जाना होता था। वह उम्र भी पसंदगी-नापसंदगी से भरी हुई होती है। किशोरावस्था। जीवन में सारे प्रश्न इसी अवस्था में उपजते है। एक तरफ शारीरिक बदलावों से गुजरना, एक तरफ जिंदगी में क्या करना है उसकी नींव रखना..! एक तरफ हृदय में किसी के प्रति आकर्षण का उत्पन्न होना, तो एक तरफ भय उपजना कि पूछने पर प्रत्युत्तर क्या होगा..! एक दिन बेंच की सीट पर एक चीट मिली, जिसमे बस इतना ही लिखा था, 'I LOVE YOU (मेरा नाम).'
जीवन में पहली बार ऐसी स्थिति में था, जब काटो तो खून न निकले.. उत्साह, ख़ुशी, अपने चरम पर थे, लेकिन अल्पायु थे, तुरंत ही प्रश्नो ने घेर लिया, कि यह चीट लिखी किसने है? जितना हर्ष था वह सारा संदेहो में परिवर्तित हो गया। भय भी हो उठा की कहीं मिस के हाथ न आ जाए यह चीट। अब संदेह का घेरा उतना बड़ा था कि वह प्रश्न सदा के लिए अनुत्तर ही रहा.. आज भी अनुत्तर है। अर्थात कुछ प्रश्न दीर्घायु होते है। जवाब तो था उसका हां या ना में, लेकिन वह अव्यक्त रहा।
जब उत्तर से ज्यादा उम्र सवाल की होती है
वैसे सच कहूं प्रियंवदा ! कोई थी ट्यूशन क्लास में, जो कहे कि दिन है, तो मैं रात को भी दिन मान लेता..! लड़का था मैं भी उस समय.. बस कभी पूछ नहीं पाया उससे..! इसी प्रश्न की बात है, जो कभी व्यक्त नहीं हो पाए, और अंदर ही अंदर कुरेदते जरूर है। बस एक वही सवाल था जो मैं पूछ नहीं सका। क्या तुमने भी कभी किसी प्रश्न को इसी तरह अपने हृदय में पाल रखा है.. अकबंद..?
समय हो चला है पौने आठ, अभी कुछ काम बाकी है जिन्हे समय रहते निपटा लिए जाए। विदा दो प्रियंवदा, और प्रत्युत्तर जरूर लिखना, मेरे उस प्रश्न का, अनुत्तर मत रखना बस..!
(०३/०५/२०२५)
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– दिलावरसिंह
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