मैं खुद से मिलने निकला हूँ..!
Date - 23/05/2025Time & Mood - 17:28 || कोई बैचेनी है, जो बयां नहीं हो पाती..
मैं तुमसे क्यों जुदा नहीं हो पाया..?
प्रियंवदा ! आज सोचता हूँ, मैं कभी तुमसे जुदा क्यों नहीं हो पाया? मेरी यह प्रेम की व्याख्या तो मैंने बहुत अपना ली थी कि प्रेम माने आकर्षण, आवश्यकता और उत्तरदायित्व..! मुझे नहीं पता है मैं तुमसे प्रेम करता हूँ या नहीं, लेकिन मेरा आकर्षण अनन्य है, यह मैं जानता हूँ। मैं यह भी जानता हूँ, कि शायद तुम्हे भी मेरे प्रति आकर्षण जरूर था। भले ही हमारे मध्य कोई सम्बन्ध स्थापित नहीं हो पाया था। लेकिन मैं यह नहीं स्वीकार पाता हूँ, कि उस कारण से मैं तुम्हे भुला दू। हमारा मार्ग अलग था, मंजिल भी.. लेकिन कुछ दिनों तक हम साथ चले थे, वह संगत मुझमे अमिट बस गयी थी। वैसे भी अपने पहले आकर्षण को कौन ही भुला होगा?
प्रियंवदा ! कोई किसी से क्यों जुदा होता है? जब कोई बेहतर मिल जाता है। या फिर तब, जब कोई आगे का सफर ही ख़त्म करना चाहता हो। हमारा तो रास्ता ही एक न था प्रियंवदा। और तुमसे बेहतर खोजने की मैं जहमत ही क्यों उठाता भला? मैं तो आज भी वही आलसी हूँ..! मेरा तुमसे कोई प्रत्यक्ष जुड़ाव ही न था, तो तुमसे अलग या जुड़ा होने की बात ही नहीं जन्मती..!
एक सवाल :
लोग बिछड़ते है, तो जाके मिलते है कभी। हमारे बिच तो बिछड़न ही नहीं है। फिर यह एकतरफा लगाव जो है उससे जुदा हो जाना चाहिए था मुझे?
सबक :
जुदा हो जाना या मन मोड़ लेना भी कभी-कभार अच्छा होता है। लेकिन यह भी समझ पा रहा हूँ कि यदि यह पीड़ा नहीं अनुभवी तो आकर्षण या प्रेम अधूरा है।
अंतर्यात्रा :
शायद अगर मैं अपनी मनपसंदगी से जुदा हो जाता तो आज यह लिख नहीं पाता।
स्वार्पण :
मैं अपने आप को दिलासा दे पाता हूँ। अपने मन को, अपने आकर्षण को संभालके रख सकता हूँ।
जुदा होकर भी हम एक है प्रियंवदा,मेरे तमाम रास्तो का पता एक ही है।