महकते जाते है बागों की तरह..
प्रियंवदा ! कुछ लोग जीवन मे आते है, और रोजमर्रा की जिंदगी में एक अपना हिस्सा बना लेते है। बिल्कुल हवा की तरह, दिखते नही, छू नही सकते, लेकिन मौजूदगी जरूर से महसूस होती है। और फिर हम भी तो कभी कभी उनसे इस लिए भी जुड़ जाते है कि उनसे एक सुकून मिलता है, बगैर कोई वजह के। कुछ एहसास बोलते कम है। समझे ज्यादा जाते है। मुझे लगता है, कुछ रिश्ते किसी मंजिल तक नही पहुंचते, बस हवा की ही तरह बहते जाते है। महकते जाते है बागों की तरह। लेकिन फिर भी वहां एक ठहराव होता है। आगे न बढ़ पाने की अक्षमता। फिर दो रास्ते, दोनो की भिन्न दिशाए, दो अलग अलग मंजिल। और अब कुछ बदल जाता है। बस नही बदलता वह है मन। कुछ वजहें कारगर होती है, कोई जिम्मेदारियां, और कोई पुरानी कहानी..
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Kuchh baato ki jad khodne me lage Dilawarsinh.. |
कलममित्र..
आज तो हद ही हो गयी प्रियंवदा। पौने आठ को छत पर माताजी को खुद जगाने आना पड़ा। कल ग्यारह बजे तक तो सो भी गया था, फिर भी। फिर तो फटाफट तैयार हो कर, जगन्नाथ, दुकान और ऑफिस..! कल पोस्ट शिड्यूल नही कर पाया था क्योंकि गजा मेरी केबिन से उठा ही नही। मैं थोड़ा इस मामले में इनसिक्योर हूँ कि कोई मुझे पहचान न जाए। मैं नही चाहता मेरे यह विचार, यह खुली डायरी, के बारे में मुझे पहचान ले। तो मैं अकेला होता हूँ तभी इस दिलायरी मे अपनी दिनभर की उलझन डालने आता हूँ। ऑफिस पहुंचकर पहला काम दिलायरी को पब्लिश की, और उसे शेयर किया। हालांकि कलममित्र के अलावा मुझे नही लगता कोई रस लेता होगा। और इस कलममित्र को भी मैं कई बार कह चुका हूँ कि आपको क्या मजा आता है इसमें भला.. लेकिन वह प्रश्न अनुत्तर ही रहता है। हालांकि यह भी मुझे मानना होगा कि मेरी इस बालिश लेखनी में कलममित्र का सबसे बड़ा सहयोग रहा है। वर्तनी की भूलो से लेकर आवश्यक सलाह सूचनो तक..
खुशमिजाज गजा..
दिनभर तो आज भी खाली ही था। कभी कभी तो मुझे लगता है, मैं बस ऑफिस में बैठने का ही पगार लेता हूँ। दोपहर को आज गजा नाश्ता कराने ले गया था। उसकी इच्छा थी, मुझे तो भूख न थी। हाँ, वैसे भी उसने दो दिन शेयर मार्केट में अच्छी नोंच-खरोंच मारी है। वो बड़ा खुशमिजाज लड़का है। लड़का नही आदमी। मुझसे 1-2 साल ही छोटा होगा। छोटी छोटी बातों में खुश हो जाता है। जो मन मे आए बोल देता है, ज्यादा सोचता नही है, सही है गलत, वो बाद की बात है। एक बार तो दिमाग मे आया वो उगल दो.. यही फण्डा है उसका। वो इंट्राडे के छोटे छोटे 4-5 ट्रेड कर लेता है। हिम्मती है तो हाइ रिस्क में खेलता है। और पैसों की किम्मत बड़ी बारीकी से जानता है, दुकान पर बचा हुआ एक रुपया बेझिझक वापिस मांग लेता है।
उसने ट्रेडिंग में पाँचसौ निकाले होते है तब भी मुझे दिखाने आता है। थोड़ा बड़बोला भी है, कहता है, 'यहां से मुझे पक्का पता था कि अगली केंडल ऊपर ही जाएगी..' अब पता नही इसका अंदाज है या किस्मत.. सच मे केंडल ऊपर ही जाती है। पिछली बार इसी के इन बार बार प्रॉफिट के दिखाने में आकर मैंने अपने 7-8 हजार कुर्बान कर दिए थे। फिर मैंने अपने आप पर नियंत्रण करके बाहर निकल गया। अब यह फिर से मुझे अपने प्रॉफिट दिखा-दिखाकर वापिस इस दलदल में ले जाएगा ऐसा मुझे लगता है। मेरा अपने मन पर कोई नियंत्रण नही है। मुझे जो मन मे आयी, फिर वो मुझे चाहिए। बस मेरे कुछ बंधनो से बाहर का न हो तो। जैसे प्रियंवदा..!
खेर, दोपहर बाद एक व्यापारी से बुक्स मिलानी थी। उसके साथ जब भी बुक्स मिलानी हो, मुझे बड़ा चौकन्ना रहना पड़ता है। कई बार छोटी छोटी कलम का एक इकट्ठा हिसाब बनता है। लेकिन यह व्यापारी थोड़ी चीटिंग करने में मानता है। बड़ा बचते संभलते काम करना पड़ता है। एक आंख अपनी बुक में, तो दूसरी से उसकी बुक में नजर रखनी पड़ती है। आज तो वह भी बोल पड़ा, 'बापु ! चील की नजर है आपकी, बनिये को एक बापु संभालकर बैठा है यह भी एक विचित्रता है।' खेर, शाम होते होते दिलायरी खलने लगी.. क्योंकि आज कोई ढंग के विचार नही आए थे। दिनभर वैसे तो गेम ही खेली है। या तो रिल्स देखी है।
Chatgpt की chats..
शाम को Chatgpt की सेटिंग्स में देखा तो पता चला कि उसने कई सारी चैट्स सेव करके रखी है, इसी कारण से वह मुझे याद किये बैठा था। वरना मैंने तो जनरली सारी चैट्स डिलीट की हुई थी, फिर भी वह कैसे याद कर पा रहा था। उसमे बायडिफ़ॉल्ट कुछ चैट्स सेव हो जाती है। या शुरुआती चैट्स मैंने डिलीट नही किए होंगे। फिर आज उसको नए सिरे से नई पहचान बताई तो उसने मान ली.. यह अच्छा टाइम पास हो गया मेरा। हालांकि उससे जानकारियां लेनी चाहिए। लेकिन मेरे जैसे टाइमपासिये मजे लेने से बाज़ नही आते।
फिलहाल घर आकर भोजनादि से निवृत होकर ग्राउंड चला आया, लेकिन यहां कुछ दिनों के नाईट क्रिकेट टूर्नामेंट होने जा रही है तो उसका ग्राउंड पिच वगेरह और लाइटिंग वगेरह से एकदम तैयार करके रखी है। कुछ लड़के प्रेक्टिस कर रहे है। और मैं एक कोने बैठा यह दिलायरी लिख रहा हूँ, बार बार बोल इस तरफ आती है। बस तुम भी किसी दिन इस बोल की तरह मेरे हाथों में आ जाओ.. इस बोल को तो लौटना पड़ रहा है, लेकिन तुम्हे..
तुम्हे क्या लगता है प्रियंवदा, कोई कुछ बड़ी जिम्मेदारियों के बावजूद एक खिंचाव क्यों अनुभवता है? या यह एक कमजौर मन का चिन्ह है?
शुभरात्रि।
१६/०५/२०२५