'हम जीत गए..'
अरे कहाँ हो तुम प्रियंवदा..? तुम भी पाकिस्तानी सीज़फायर की तरह कभी भी टूट के बिखर जाती हो..! तुम बेफालतू में सारी बातो को गंभीरता से लेना कब छोड़ोगी? यहाँ पाकिस्तान सीज़फायर जैसे शब्द को गंभीरता से नहीं लेता और एक तुम हो कि छोटी छोटी बातो में रुआँसा मुँह बना लेती हो..! तुम से अच्छा तो यह पाकिस्तान है, जो इतनी मार खाने के बावजूद भी जीत का दावा करता है। पाकिस्तान के शरीफ वजीरेआजम अपनी आतंकी आवाम को कहते पाए गए कि 'हम जीत गए..' बताओ..! मैं ही पागल हूँ प्रियंवदा, जो उस बेशर्म शरीफ को सच में शरीफ मान बैठा..!
सुबह सुबह ऑफिस पर कोई काम न था, उपर से सोमवार.. एक छोटा सा काम था, वो तो कुछ देर में ही निपट गया..! फिर बिलकुल खाली समय.. करने को कुछ भी नहीं, तो मेरे जैसा बुद्धूजीवी तो लग जाता है, ट्विटर पर हालिया ट्रेंडिंग के पीछे.. स्क्रॉल करते हुए देखा तो पाकिस्तानी ISI के पप्पेट शाहबाज़ शरीफ जित का दावा करते हुए भाषण कर रहे थे। मुझे तो लगता है इन जाहिलो ने बुद्धि भी बेच खायी है..! वरना अपने इतने सारे हवाई अड्डों पर मार खायी हो जिसने, अपना एयर डिफेन्स सिस्टम के साथ साथ चीन की भी इज्जत को चांटे खिलवाये हो, और तो और किराना हिल्स से उठते धुंए पर ध्यान देने के बजाए कोई वजीरेआजम कैसे कह सकता है कि 'हम जीत गए?' चूरन बेच रहे थे अपने जाहिलों को..!
दावे तो हर कोई कर सकता है प्रियंवदा, लेकिन जीत वहीँ है जो सच्चाई के साथ संयम बरतता हो..! पिछले पुरे हफ्ते में भारत और पाकिस्तान के बिछ हुए तनाव ने समस्त भारतीय उपमहाद्वीप के वातावरण को गरमा दिया था। सीमाओं से गूंजते धमाके, टीवी मिडिया का सायरन - शोर, और सोसियल मिडिया पर मीम-महायुद्ध.. वैसे यह भी एक जाना पहचाना मंजर ही है..! लेकिन सवाल यह है कि जीता कौन? (ऑफकोर्स भारत ही जीता है, लेकिन यह तो बात बनाने का तरीका है कि जीता कौन..!)
पाकिस्तान का जीत का दावा : हकीकत या आतंक की ढाल?
१९४७, १९६५, १९७१ और १९९९.. चारो बार पाकिस्तानियों की बड़ी तसल्ली से कुटाई हुई है.! लेकिन पाकिस्तान १९७१ के अलावा सारे युद्धों में अपनी जीत का दावा करता है। १९७१ में तो सरेंडर का फोटो है, इस लिए कुछ खास बोल नहीं पाता। तो हर बार की तरह इस पिछले हफ्ते हुए मिलिट्री ऑपरेशन्स पर भी पाकिस्तान ने दुनिया के सामने जीत का झुनझुना बजाया है। सरकारी ऑफिसियल बयानों से लेकर सोसियल मिडिया तक एक बनावटी वीरता के साथ अपनी शेखी बघारी है। लेकिन हकीकत बेहद शर्मनाक है।
छुटपुट लड़ाइयों से लेकर बड़े युद्ध हारने के बावजूद वह आज भी आतंकवाद का पालक और संरक्षक बना हुआ है। UN और FATF जैसी संस्थाओ द्वारा पाकिस्तान को कई बार ग्रेलिस्ट में डाले जाने के बावजूद उसने अपने यहाँ जैश ए महम्मद और लश्कर ए तैयबा जैसे आतंकी संगठनों को खुली छूट दे रखी है। मसूद अज़हर और हाफिज सईद जैसे शोणितप्यासे आतंकी न सिर्फ खुले घूमते है, बल्कि देशभक्त और साहब कहे जाते है। यह वही देश है जो अपनी भीतर से सड़ चुकी सिस्टम, बर्बाद अर्थव्यवस्था और राजनितिक विफलता को छिपाने, और पब्लिक का ध्यान भटकाने के लिए भारत से टकराव और संघर्ष का नाटक करता रहता है। जो देश अपने घर में बारूद इकठ्ठा कर के किसी के घर जलाना चाहता हो, वो खुद सबसे पहले तबाह होता है।
जीत हुई भारत के संयम और रणनीति की..
इस संघर्ष से पूर्व भारत ने UNSC में पाकिस्तान को लताड़ा था, अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पाकिस्तान के खिलाफ एक मजबूत केस रखा। सेना को पूरी तैयार सीमा पर तैनात रखा, और बगैर उकसावे के कार्यवाहियां की। छवि का ख़ास ख्याल रखते हुए एक भी पाकिस्तानी सिविलयन प्लेन को आंच न आने दी, और पाकिस्तान के आतंकवादी ठिकानों से लेकर एयरबेस उड़ा दिए। विश्व के सामने अपनी एक मजबूत और जिम्मेदार शक्ति की छवि प्रस्तुत की। और इस शान्ति समझौते के बाद भारत ने यह साबित किया की हर गोली का जवाब मात्र गोला ही नहीं, लेकिन सोच और निति भी हो सकती है।
जीत का असली मतलब क्या है?
फर्जी विडिओ, फोटोशॉपेड इमेजिस और मिडिया के शोर को जीत माना जाता हो तो पाकिस्तान जीत गया। आतंकियों को पनाह देकर बर्बरता करना जीत मानी जाती हो तो बेशक पकिस्तान जीत गया। या फिर अपनी जनता को सुरक्षित रखना, सिमा को अडिग रखना, और वैश्विक स्तर पर सम्मान पाना - यह जीत की व्याख्या में नहीं आते..?
जीत की परिभाषा पाकिस्तान को फिर से सीखनी होगी..!
पाकिस्तान स्वयं को विजेता मानता है, तो कुछ सवाल है जो उसे खुद से पूछ लेने चाहिए..
- क्या आतंकवाद से दोस्ती जीत है?
- क्या अंतर्राष्ट्रीय शर्मिंदगी जीत है?
- क्या खुद के लोगो का अशिक्षा, गरीबी तथा पलायन जीत है?
जीत की नपाई शब्दों से नहीं, कर्मो से होती है। पाकिस्तान हर बार इस कसौटी में फ़ैल हुआ है। जबकि मुझे लगता है कि भारत का यह उकसावे के प्रति संयम, विकास की ओर अग्रसरता, और एक सम्माननीय छवि वास्तव में युद्ध-जीत की परिभाषा से खूब ऊपर है।
भाई भाई प्रियंवदा.. बड़ी धारदार बातें कर दी मैंने.. है न? क्या करूँ मैं भी कभी कभी इन पाकिस्तानियो की तरह अपनी शेखी के ख्याली पुलाव खाते रहता हूँ। वैसे ट्विटर पर और इंस्टाग्राम पर एयर चीफ मार्शल का एक डायलॉग बड़ा छाया हुआ था कल से। किसी रिपोर्टर ने जब उनसे पूछा कि 'आपके अंदाज से पाकिस्तान के कितनी casualties हुई होंगी?' तब एयर चीफ मार्शल ने एकदम स्पष्ट और कड़क शब्दों में कहा, 'हमारा काम है टारगेट हिट करना, बॉडी बैग्स हम काउंट नहीं करते।' हमारे आर्मी, नेवल और एयर अफसर का बैठने का ढंग, रुआब, और बोलने की छटा देखते ही बनती है। बिलकुल स्पष्ट और निःसंदेह प्रत्युत्तर। जबकि पाकिस्तानी अफसर भी मिडिया के सामने प्रस्तुत हुए थे, देखा होगा हर किसीने, कोई गंभीरता नहीं, हँसी-ठिठोली करते हुए। लगता है वहां किसी को भी उठाकर किसी भी सीट पर बैठा देते होंगे। और वैसे भी उन्हें कौन सी सैन्य सेवाएं देनी है, उन्हें तो अपनी बिज़नेस चैन का ख्याल बना होता है। अरे हाँ ! आज के इंटरव्यू में रिपोर्टर ने उस किराना हिल्स के विषय में भी पूछ लिया..!
ऐसी खबरे है की पाकिस्तानी न्यूक्लियर हथियार किराना हिल्स में अंडरग्राउंड रखे हुए थे। एक एयर स्ट्राइक में वहां भी मिसाइल गिरी..! और अब वहां न्यूक्लिर रेडिएशन लिक कर रहे है। जबकि भारतीय चीफ मार्शल ने स्पष्ट कहा है कि, 'वहां जो कुछ भी रखा हो, हमे ख्याल नहीं है, और हमने वहां कोई हमला नहीं किया है।' खेर जो भी हो, प्रियंवदा, आज का सोमवार भी सुबह शिव मंदिर से शुरू हुआ, और शाम को ऑफिस पर ही दिन ढला.. बिच बिच में मैं इन खबरों का रूख करता रहा.. लेकिन तुम हो कहाँ प्रियंवदा..? तुम्हारी राय जाने बिना मुझे कैसे चैन पड़ेगा..!
शुभरात्रि।
(१२/०५/२०२५)
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