भावना में बहते प्रधानमंत्री...
प्रियंवदा ! कल साहब का भाषण सुना था? भाईसाहब भावना में बह गए थे। सीधे ऊँगली दिखा-दिखा कर बात बता रहे थे। सही है, देश का प्रधानमंत्री थोड़ा गुस्सैल भी दिखना चाहिए, राष्ट्रिय सुरक्षा के मामलो में। मोदी सरकार की ख़ास बात मुझे यह भी लगती है इस में कोई भी प्रसंग हो.. डिटेलिंग पर यह खूब ध्यान रखते है। शब्दों के चयन से लेकर चेहरे के हावभाव तक..!
कल के सम्बोधन में कुछ मुख्य बातें थी।
- ऑपरेशन सिन्दूर के द्वारा ९ आतंकी ठिकाने ध्वस्त।
- महिलाओं के सम्मान की रक्षार्थ कटिबद्ध भारत।
- आतंकवाद के प्रति शून्य सहिष्णुता।
- परमाणु की धमकियों को नजरअंदाज करना।
- पाकिस्तान के साथ सारी बातचीत बंद, अगर होगी तो बस आतंकवाद और पाक अधिकृत कश्मीर के मुद्दे पर।
- ब्रह्मोस और आकाशतीर जैसे स्वदेशी हथियारो की सफलता और आत्मनिर्भर भारत की पहचान।
- एक डायलॉग, 'भारत शान्ति चाहता है, लेकिन सुरक्षा से समझौता नहीं।'
- ऑपरेशन सिन्दूर पर एक अल्पविराम है, पूर्णविराम नहीं।
- जल और रक्त एक साथ नहीं बहेंगे, 'सिंधु जल संधि' स्थगित ही रहेगी।
मौसम और माहौल – बादलों के बीच युद्ध की आहट..
प्रियंवदा, युद्ध या युद्ध की आशंका तो अब जैसे रुक ही गयी है, लेकिन पाकिस्तानी नहीं सुधरेंगे, शाम होते ही शराबियों की तरह उत्पात मचाने लगते है। सीज़फायर के बावजूद सीमापार से आते ड्रोन्स जारी है। अनीति आचरने वाले से और क्या ही उम्मीद रख सकता है कोई? खेर, आज का दिन बड़ा गर्मीभरा रहा, वातावरण में पुनः गर्मी आ चुकी है, पिछले हफ्ते युद्ध के साथ साथ वर्षा के भी बादल मंडरा रहे थे। हवाएं तो इतनी तेज थी कि मुंद्रा पोर्ट पर कंटेनर उड़े थे। ओले तो गिर ही रहे थे, और साथ ही पाकिस्तान के टर्किश ड्रोन का मलबा भी..! लेकिन अब मौसम पुनः गर्मी के पथ पर चल पड़ा है। रात को घर के भीतर नींद नहीं आयी तो छत पर चले गया था। और सुबह कुंवरुभा ने जगाया, 'मेहमान आए है।' मेहमान के साथ कुँवरुभा अपने ननिहाल जाने वाले है। आज शाम की बस से।
ब्लॉगिंग और प्रचार – CHATGPT से बनी तस्वीर..
सुबह नित्यक्रमानुसार अपने ऑफिस पर हाजिर हो गया था। कल लिखी हुई पोस्ट पब्लिश नहीं की थी, क्योंकि एक अच्छे बैकग्राउंड की तलाश थी। फिर आखिरकार CHATGPT के सहयोग से एक अच्छी इमेज बना ली। और पोस्ट सुबह शेयर कर दी। आजकल बहुत से जगह अपने ब्लॉग को प्रमोट करने लगा हूँ। लेकिन एक बात खूब तसल्ली से अनुभव हुई। स्नेही द्वारा शेयर किया गया ज्यादा दूर तक जाता है। स्नेही अभी कच्ची उम्र का है, और अपने सामने कई सारे रास्ते देखकर शायद असमंजस में फंसा है। यूँ तो बहादुर है, लेकिन लगता है कभी कभी गभरा जाता है।
स्वास्थ्य और मूर्खता – इनो की कहानी..
प्रियंवदा ! कभी अपने ही द्वारा की गयी मूर्खता पर खुद ही ठहाके लिए है? ऐसी गर्मियों में कल शाम और आज सुबह सुबह तेल से सना भोजन कर लिया, कल रात को पूरियां, और आज सुबह परांठे। छाती में ज्वालामुखी धधकने लगे.. एसिडिटी से बेहाल होने लगा...! एक समय था, जब ऐसी कोई स्वास्थ्य समस्या होती न थी, अब होने लगती है। खेर, सुना है इनो छह सेकंड में काम शुरू कर देता है। अब इस प्रकरण में मूर्खता यह हुई कि अपन ठहरे किचन ज्ञान के कच्चे..! किचन से जुड़ा सामान्य ज्ञान से भी वंचित। अब मुझे क्या पता इनो कैसे उपयोग में लेते है? टीवी पर सुना-देखा था बस। तो मैंने तो पानी से छलाछल ग्लास भरा, और उसमे इनो का पैकेट डाल दिया। पानी में इनो के मिलते ही दो विरही जीव भावुक हो कर गिर पड़े उस तरह पानी और इनो दोनों ने गिलास से बहार की और छलांग लगा दी। और मैं बस इस स्नेहमिलन को ताकता ही रह गया, आखिरकार आधा ग्लास बचने पर सब मामला शांत हुआ।
दोपहर को भूख भी लगने लगी, सोचा बड़े दिन हो गए, युद्धविराम चल रहा है तो नाश्ता करने भी जाना चाहिए। बिलकुल ताज़ी ताज़ी एसिडिटी से निजाद पायी थी, और गर्मागर्म कचौड़ियां आरोगने चल पड़े..! सच में आदमी 'भूतिया' है, कुछ भी चाहता है। प्रियंवदा, आज काम ने भी खूब परेशां किया। कूकर में फूटते पॉपकॉर्न की तरह काम पर काम प्रकटता रहा। लंच समय में भी काम किया है।
आजकल रील्स भी जाहिल पाकिस्तानियो से भरी रहती है मेरी..! गधे उत्सव मना रहे है जीत की ख़ुशी में। हाँ ! वैसे बाप की जीत भी बेटे की जीत मानी जा सकती है। खेर, दोपहर बाद भी कुछ हिसाब किताबो में लगना था, लेकिन तुमसे बतियाने के लिए मेरे पास समय ही समय है प्रियंवदा..! देखो न, प्रतिदिन कुछ न कुछ खबरों के साथ तुम्हे संबोधित करके यह सब लिखता रहता हूँ।
चिड़ियाँ और आदमी – स्वामित्व की लड़ाई..
कभी लगता है, मैं स्वयं से ही बाते करता हूँ.. क्योंकि मैं और तुम - है तो एक जैसे ही..! प्रियंवदा, आज तुम्हे देखने की बड़ी तीव्र इच्छा हो आयी है। तुम जहाँ भी हो वहां मैं पहुँच जाना चाहता हूँ। तुम्हारे साथ कुछ देर बैठना चाहता हूँ, कुछ बाते बताना चाहता हूँ, कुछ तुमसे सुनना चाहता हूँ। लेकिन एक संकोच भी सदैव बना रहेगा। बहुत सही है। क्योंकि कुछ बंधनो की बेड़ियाँ मुझे भी है। कुछ तुम्हे भी.. वही बात है प्रियंवदा, आदमी सदैव जो अपना नहीं हो सकता उसीकी कामना में शोक करता रहता है।
शाम ढल चुकी है। सूर्य की केसरी छांया क्षितिज से भी लुप्त हो चुकी है। ऑफिस के बाहर उस बूढ़े नीम के पेड़ की प्रत्येक शाखाओं पर चिड़िया अपनी जगह बनाने के लिए लगातार लड़ती और चहचहाती दिखाई पड़ रही है। उन्हें भी अपनी एक निश्चित जगह चाहिए। एक दूसरी को हटाकर खुद बैठना चाहती है। क्या पता इन पंछियो ने हमसे स्वामित्व भाव सिख लिया हो.. या उनसे हमने। मानव भी तो पशु ही है। सामाजिक पशु..!
आप इस विषय पर क्या सोचते हैं, कमेंट करें।
शुभरात्रि।
(१३/०५/२०२५)
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