मैं खुद से मिलने निकला हूँ..! || Day 6 || अगर तुमने पलट के देखा होता..

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मैं खुद से मिलने निकला हूँ..!



Date  - 26/05/2025
Time & Mood - 23:24 || चोरी-छिपे अतीत में झांकने का..

अगर तुमने पलट के देखा होता.. 

प्रियंवदा, वो आखरी दिन था ट्यूशन क्लास का, या जिंदगी का मोड़ था.. मैं आज तक तय नही कर पाया। बोर्ड्स के एग्जाम से लगभग पंद्रह दिन पूर्व.. सबको ही घर पर पढ़ने को कह दिया था। आखरी दिन था, मैं तुम्हे ही निहारता रहा था। मैं उसी ख्याल में डूबा हुआ था कि तुमसे कहूं? पूछूं या नही? मुझे पता था, यहां से सब कुछ ही बदलने वाला था.. जीवन भी। 


क्लास छूट गयी, तुमने अपनी स्कूटी चालू की, मैं बस एक आखरी बार नजरें मिलाना चाह रहा था, मैं बस एक बार आंखों ही आंखों में अपना समर्पण कर देना चाह रहा था। लेकिन तुमने पलटकर नही देखा.. मैं - किसी अधूरे गीत की आखरी धुन में फंसा रह गया था। उस आखरी पल को मैंने अपने सपनो में कई बार दोहराया है। मैंने हर बार एक आशा में देखा, हर बार स्वप्नों में तुम पलटी थी। लेकिन हकीकत हकीकत होती है। तुमने पीछे मुड़कर नही देखा था। 


शायद देखती तो रुक जाती। मेरी आँखें सबकुछ बोल पड़ती। मेरे कंधों पर टिकी थकन, मेरे होंठ पर अटकी सिसकी, और कांपते हाथों से छूटता 'रुको ज़रा' तुम सुन लेती। काश.. तुम रूक जाती, तो शायद मेरी जिंदगी किसी और रास्ते पर चल पड़ती..


लेकिन यह चिट्ठी भी अधूरी ही रहेगी, जैसे अधूरा रह गया तुम्हारे बिना मैं..


एक सवाल :

आज अपने इस वीरान जीवन मे पीछे मुड़कर देखता हूँ, तो बस काश.. ही काश बिलखते दिखते है..! क्या इन काशों की लाशें ही मेरे हक की है?


सबक :

पलटकर न देखने वाले कभी भी लौटते नही।


अंतर्यात्रा :

उस एक हिम्मत के बाद तो सारी दुनिया से लड़ने की हिम्मत थी मुझ में। लेकिन मेरा अधूरापन मुझे वापिस नही मिला।

 

स्वार्पण :

एक अनुभव जरूर मिला, उन परिस्थितियों से बाहर आने का..  


“आंतरिक युद्ध भी अच्छे होते है, अनंत !
अपने आप से हारकर भी जीतते हम ही है..”

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