"मन का टीवी: ख्यालों की सीरीज़ और ज़िंदगी के एपिसोड्स" || दिलायरी : २७/०५/२०२५

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पौने बारह की कहानियाँ: छत, ठंडी हवा और मन

पौने बारह बजे आजकल लिखने लेटता हूँ, हाँ क्योंकि इस फोन की कलरनॉट में, छत पर ठंड़कभरे उन्मादी पवनों से घिरे हुए बिस्तर पर पड़े पड़े लिखता हूँ। आजकी तिथि भी बड़ी विचित्र है, कल भी अमावस्या मानी गयी थी, आज भी। प्रतिस्पर्धा में उतरे बादल ऐसे मैदान (आसमान) छोड़कर भाग रहे है, जैसे भागते है मन के ख्याल..! बिल्कुल मन के ख्यालों की तरह आज आसमान में बादल बदल रहे है.. आगे बढ़ रहे है। कभी कभी सोचता हूँ मेरा मन मात्र मन नही है, अविरत चलता tv है.. जहां अलग अलग चैनल्स की तरह अलग अलग ख्याल है..! फ्री सब्सक्रिप्शन वाले tv चैनल्स.. वो भी नॉनस्टॉप। सुबह उठते ही लगता है कोई नया एपिसोड शुरू हुआ है। 



सुबह का ड्रामा, ऑफिस का ऑस्कर

इस एपिसोड में वो यादें आती है जो मैं भूल चुका होता हूँ। हाँ ! आदमी अक्सर काम याद करता है सुबह सुबह जो भूल गया होता है। ब्रश करते हुए, या नहाते हुए। यह एपिसोड खत्म होते होते यह भी भूल जाता है कि खाना क्या खाया था..! अगला एपिसोड ड्रामा से भरपूर। ऑफिस या काम पर तरह तरह के ड्रामेबाज़ी होती ही है। यह तो ऑस्कर नॉमिनेशन की गाइडलाइंस में नही आता वरना परफॉर्मेंस तो उसी लेवल की होती है। उदाहरण दू क्या? पिछले एक सप्ताह से एक लेबर को लगी चोट के कारण बुधा हररोज उसे क्लीनिक ले जाता है। हररोज मुझसे देढ़सौ - दोसौ ले जाता था। आज भी मेरे ऑफिस पहुंचते ही पैसे के लिए खड़ा हो गया।


सुबह सुबह ड्रामेबाज़ी शुरू.. खोपड़ा खराब। और बुधे को धमका दिया, 'तू उसे डॉक्टर के पास ले जाता है या कंपाउंडर के पास? ऐसा कौनसा डॉक्टर मार्किट में आया है जो डेली पेशंट को थोड़ा थोड़ा अपडेट कर रहा है?' तो बुधा मुझे समझाने लगा, 'हाँ मैं भी वही सोच रहा हूँ, लेबर है, ले तो जाना पड़ेगा..' यह बुधा हमेशा फालतू की बातें ज्यादा करता है। तो मैंने गुस्से में कह दिया, 'तुम्हारा एक्सप्लेनेशन मुझे नही चाहिए, डॉक्टर से पूछो, डेली क्या करने लग रहा है वह पेशंट के साथ? इस ड्रामेबाज़ी के कारण आज देढ़सौ बचे..! 


इस एपिसोड के बाद अगला एपिसोड वो शंकाशील tv सीरियल के कैरेक्टर सा होता है। जहां लगातार वो पुरानी बातें जो खत्म हो चुकी थी, लेकिन दिमाग का डायरेक्टर उन्हें revive कर देता है। क्या बुधा लगातार लेबर के मेडिकल के नाम पर मुझसे लिए पैसे अपनी जेब मे डालता था? या उस ठेकेदार ने सेटिंग करके मुझसे पैसे तो नही ऐंठे होंगे? या फिर वो डॉक्टर ही फर्जी है.. बीच बीच मे एड्स आते है, 'भाई यह क्या सोच रहा है तू?' लेकिन मैं उन्हें म्यूट करके आगे वही शंकाशील विचारों के एपिसोड को पूरा करने में लग जाता हूँ।


प्रियंवदा और सपनों का सीन

कभी कभी लगता है मेरे दिमाग के प्रोड्यूसर्स ने मुझसे मजाक करना शुरू कर दिया है - एक दिन सपने आया मैं और प्रियंवदा समंदर किनारे रेत में बैठे नारियल पानी पी रहे है। जबकी वास्तविकता में तो मैं वही बोरियत भरे ऑफिस में अपनी पोस्ट्स को निखारने में लगा होता हूँ। हाँ ! आजकल अपनी पुरानी पोस्ट्स को बड़ी त्वरा से अपडेट करने में लगा हूँ। अगर कोई काम न आ जाए, तो मेरा ठिकाना ब्लॉगर पर ही होता है। 


दोपहर होते होते 'फ़ूड चैनल्स' चलने लगते है। मैं और गजा आज के तीनों ऑप्शन - दाबेली, कचौरी या समोसे के, लाभालाभ में उतर चुके होते है। यह फ़ूड चैनल मन से लेकर पेट तक को मजबूर कर देता है, कुछ खाना खा लेने के लिये। फिर जो नाश्ते वाला ज्यादा नजदीक, उतना उसका प्राधान्य ज्यादा। बिहारी के समोसे खाने चल पड़े। इस पर भी कोई आयकर विभाग raid करे तो मजा आ जाए। चालिश रुपये लेता है एक समोसे के छोले के साथ। और दिनभर हजारों समोसे बिक जाते है।


शाम के स्पोर्ट्स और रात की विदाई

शाम तक एक एपिसोड चला, वो आते है न गयं बांटने वाले उनका.. और मैं अपने पुराने पोस्ट्स अपडेट करने में लग गया। आजकल अंधेरा साढ़े सात के बाद होता है। घर आकर फिर ग्राउंड में.. वहां भी यह एपिसोड्स रुकते नही। वहां फिर स्पोर्ट्स चैनल लग जाता है। अगले बोल पर आउट होगा का बाउंड्री जाएगा वही सब चलता रहता है।


खेर, अगर कोई मुझसे कह दे कि, 'इतना मत सोचो'। तो मैं कह देता हूँ, 'यह मेरा टीवी है, मेरा सब्सक्रिप्शन फ्री है। और मैं इसका बड़ा binge-watcher हूँ।


ठीक है, अब विदा दो। शुभरात्रि।

(२७/०५/२०२५)


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