प्रियंवदा को पत्र: जब मैं खुद से हार जाता हूँ, फिर भी मुस्कुरा लेता हूँ || दिलायरी : २१/०५/२०२५

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यह तो मेरा शाब्दिक खेल है..

प्रियंवदा ! जीवन मे हर हमेश आगे बढ़ते रहना चाहिए है न? लेकिन मैं बहुत बार पीछे की ओर बढ़ने लगता हूँ। शायद मुझ में संघर्ष करने की शक्ति का अभाव है। या शायद नए पराक्रम करने से अब डरने लगा हूँ। या कुछ जिम्मेदारियों के निभाव में नया रिस्क लेना नही चाहता। पता नही जो भी हो, जीवन मे आगे पीछे आज बाजू हर जगह लड़ लेना चाहिए यह भी मैं स्वीकारता हूँ। यह तो मेरा शाब्दिक खेल है, जहाँ मैं ही स्पर्धक हूँ। मैं ही प्रतिद्वंदी हूँ। मैं ही अपने आप के खिलाफ रिस्क लेता हूँ। 


Khabaro me khoye Dilawarsinh..!

टंगड़ी फिर भी ऊंची ही रहेगी..

सुबह ऑफिस पहुंचकर आजकल यही मेरा पहला काम होता है, कि मैं अपनी पोस्ट पब्लिश करूँ। शिड्यूल नही लगा पाता हूँ। कारण यही है कि आजकल शाम को ही कोई न कोई काम आ जाता है या फिर गजा मेरी केबिन में हिमालय की तरह जम जाता है। मुझे लगता है मेरा पागलपन भी हावी हो जाता है मुझ पर। एक साथ कई दिशाओं में मैं दौड़ लगा देता हूँ। और फिर हर जगह से पाकिस्तान की तरह हार खा लेता हूँ। लेकिन उसीकी तरह स्वीकारता भी नही हूँ। हाँ, हारे है तो क्या हुआ, टंगड़ी फिर भी ऊंची ही रहेगी। फिलहाल नाइट क्रिकेट टूर्नामेंट भी देख रहा हूँ। और यह लिख भी रहा हूँ। लिखने का भी मन है, देखने का भी।


खूब गर्मी का अनुभव लिया है..

दो दिन से ऑफिस का ac नही चल रहा है। ऊपर से सारे ऑफिस में एक भी खिड़की हम खोलते नही। खिड़की खोलने से डस्ट बहुत ज्यादा आ जाती है भीतर। ऊपर से एक और समस्या है। लाइट नही होने पर जनरेटर चलता है और उसका सारा धुआं ऑफिस में आ जाता है। दो दिन में तो खूब गर्मी का अनुभव लिया है। हालात तो ऐसी है कि चार बजे के आसपास तो ऑफिस चेयर पर भी नही बैठा जाता। गर्मी के कारण पीठ जलती है रिकलाइनर चेयर पर। 


दोपहर को ऐसी धूप में कौन भला कहीं जाए? मजाक कर रहा हूं, हम जाते ही है, बस आज आलस कर गए। दोपहर में सारे पंखे फुल कर पड़े रहे। शाम ढल गयी लेकिन यह गर्मी.. गजब ही है। आज से इसी ब्लॉग पर एक तीस दिन का अलग विषय भी लिखना शुरू किया है। एक पोस्ट तो लिख दी है। अब सोच रहा हूँ, उसे कोई अलग लेबल देकर सेपरेट कर लूं, जिस तरह यह दिलायरी है, जहां दिनचर्या के साथ साथ कुछ मेरे विचार शामिल होते है। वहां एक पत्र है, लेकिन समझ नही आ रहा उसे क्या नाम दिया जाए। 30 दिन में मेरे बहुत से भाव सीधे सीधे लिखने की सोच रहा हूँ। अनफिल्टर्ड। बस एक मेरी पहचान पर पर्दा बनाए रखते हुए। टाइटल तो सही से रख दिया है, 'मैं खुद से मिलने जा रहा हूँ।' लेकिन अब बस उनकी कैटगरी तय करनी बाकी है। सोचता हूँ, 'प्रियंवदा को पत्र' नाम रख दूँ। स्नेही भी गैरहाजिर है। वरना अच्छा सलाह-मशवरा हो जाता।


दो-तीन दिलचस्प खबरे सुनी है..

वैसे प्रियंवदा ! दो-तीन खबरे सुनी है, बहुत दिलचस्प लगी मुझे तो। एक तो पाकिस्तानी मुल्ला मुनीर ने अपने आप को ही प्रमोशन देते हुए खुद को फील्ड मार्शल बना लिया। भगवान ऐसी शक्ति सबको दे। खुद ही खुद का प्रमोशन कर पाए.. खुद ही खुद की सैलरी तय कर पाए। गुजराती में कहते है कि, 'पोते पोताना पगनो अंगूठो धोये मात्यम नो वधे..' तातपर्य कोई और आपके पैर धोए तो आपका महात्म्य बढ़ा माना जाता है। खुद ही खुद के पैर धोने से नही। वैसे एक और मस्त खबर पिग्गीस्तान से ही आयी है। सिंध में गृहमंत्री का घर फूंक दिया लोगो ने.. पिछली बार प्रधानमंत्री आवास से फ्रिज में पड़ा चिकन उठाया था, अब की बार एके47 फोड़ रहे थे। 


पाकिस्तानी हमेशा रहने चाहिए, वरना ऐसा एंटरटेनमेंट कौन दे सकता है..? कोई अपने बोलने के ढीले लहजे के कारण चर्चा में रहता है, तो कोई तोशाखाना के चक्कर मे। कोई अपने आप को प्रमोशन दे देता है, तो कोई pm हाउस से मोर लूट लेता है। कोई पाव-पाव किलो के परमाणु बम बनाए बैठा है, तो कोई कहता है मुझे मारो..! बड़ी फनी बिरादरी है.. जोकर कहूं या जाहिल.. तय नही कर पाता। दूसरी तरफ अफ़ग़ानिस्तान काबुल नदी और शहतूत डेम बांधने की बात करके इन पगलेट पाकियो का पानी बंद करने जा रहा है। एक तरफ बलोच ने पाकिस्तानियों का फन दबाया है, तो दूसरी तरफ सिंध वालो ने.. खैबर वाले पश्तून तो वैसे भी इनको भाव नही देते.. बच गए यह पाकिस्तानी पंजाबी..! इनके लिए तो वो अज्ञात शूटर ही काफी है।


खबरों से याद आया.. उस दिन भारत पाकिस्तान तनाव के बीच, लाहौर और रावलपिंडी कब्जाने वाले न्यूज़18 ने, थोड़े दिन पहले रक्षामंत्री राजनाथ सिंह भुज एयरबेस पर आए थे तो इन लोगो ने लाइव टीवी पर लिख दिया था, 'भुज-राजस्थान'। इन्हें यह तक नही पता होगा क्या की भुज गुजरात मे है। या फिर रेगिस्तान और रन को एक मानते हुए भुज राजस्थान को सौंप दिया गया है और हमे पता नही। समाचार में बोल रहे है कि, 'राजनाथसिंहजी ने गुजरात के भुज एयरबेस पर मुलाकात ली।' लेकिन स्क्रीन पर तो 'भुज राजस्थान' लिखकर ही चला दिया। गजब ही लेवल पर चलता है अपना न्यूज़ मीडिया।


वो सब छोड़ो प्रियंवदा, तुम तो मेरा पत्र तुम्हे मिले तब जरूर से प्रत्युत्तर देना। तब तक के लिए,


शुभरात्रि।

(२१/०५/२०२५)


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