मन की सन्नाटी शुरुआत और विचारों की भूलभुलैया
प्रियंवदा ! दो तीन बढ़िया बातें दिमाग मे थी लेकिन अभी जो लिखने बैठा हूँ तो दिमाग मे सन्नाटा छाया है। मेरे साथ तो हमेशा से होता है तो अब नया भी नही लगता है। प्रियंवदा ! अक्सर हम पहले मन को पूर्णतः मुक्त कर देते है किसी विषय मे, और फिर जैसे जैसे परिचय बढ़ता है, हम अपने मन पर नियंत्रण की लगाम कसने लगते है। फिर चाहे वह कोई व्यक्ति हो, कोई आदत हो या टेक्नोलॉजी..!
ऑफिस, खर्चे और ब्लॉगिंग की माथापच्ची
सुबह डेली के ही समय पर ऑफिस पहुंच गया था। काम तो आज भी उतना ही था जितना हररोज होता है। पैसे आते कम है, जाने ज्यादा लग रहे है। दिमाग मे भी नए विचार कम आ रहे है, लेकिन पुराने जा भी नही रहे है। दोपहर तक तो यही सब चलता रहा, और फिर शाम तक मैंने अपनी पुरानी पोस्ट्स, फिर से seo के अनुसार अपडेट करनी जारी रखी। भाईसाहब मस्ती-मजाक में ही मैंने इतनी सारी पोस्ट्स लिख दी है, और अब सरदर्द सी हो पड़ी है। किसी मे कोई सारः नही, किसी मे कोई उपदेश नही, किसी मे कोई ज्ञान नही। फिर भी मैंने लिखी है, बस अपने मनोरंजन के लिए।
सड़कें सोती नहीं — शहर की रात और मन की उलझनें
शाम को सोचा कुछ लिखा जाए, दो-तीन अच्छी बातें तय थी, लेकिन अभी ग्यारह बज गए लेकिन वो मुद्दा ही याद नही आ रहा है। प्रियंवदा, यह कैसी प्रकृति है? इतनी तेज हवाओं के साथ ऊपर यह खुला आसमान.. लेकिन शांति.. वो नही है। सब सो जाते है लेकिन सड़कें नही सोती, वे सतत कार्यरत रहती है, अनिमेष..! हाँ, कुछ देर सांस लेने के लिए जरूर रुकती है। उसे अगर झपकी लेनी हो तो भी होर्न्स उसे उठा देते है.. हवाओं का रूख उन चीखते होर्न्स की आवाज यहां तक ले आती है, जहां मैं एक ध्यान लगाने की कोशिश कर रहा हूँ। यहां इतनी रोशनी है, जैसे अमावस्या की तिथि ही मिटा दी हो, यहाँ ध्वनि के तरंग से सतत रूबरू होता मैं बार-बार पथ भटक जाता हूँ।
एक गली, एक घर और गाली-गलौज का रणक्षेत्र
प्रियंवदा ! एक स्त्री ही दूसरी स्त्री की भयंकर आबरू उछालती है, छडेचौक। एक तो मेरा जीव भी कभी कभी बड़ा पंचातीया हो जाता है। दुसरो के पंगो में मामला क्या है वह जानने की उत्कंठा बड़ी तीव्र हो जाती है। टूर्नामेंट देखते-देखते याद आया कि दिलायरी लिखनी बाकी है, तो सोचा घर चला जाऊं, छत पर लिख लूंगा.! तो रास्ते मे एक घर पड़ता है, अनायास ही मेरी नजर घर के भीतर चली गयी, दरवाजा खुला था, और दो औरते और एक आदमी मिलकर एक औरत को कूट रहे थे। मामला कुछ गंभीरता पकड़े उससे पहले ही जिसकी कुटाई हो रही थी वो स्त्री चिखने-बिलखने लगी। मैंने अपनी मोटरसायकल लगाई साइड में और सारा मामला देखा..!
अपशब्द, आंसू और सामाजिक सत्य की झलक
आसपास के घरों से औरते इकठ्ठा होने लगी, और जिसकी पिटाई हुई वो स्त्री भी घर से निकलते हुए पूरे रोड-मोहल्ले को इकट्ठा करने लगी.. अब स्त्री के आंसू तो वैसे ही पलकों पर बंधे हुए ही रहते है। इकट्ठी हुई भीड़ को देखकर तो उसके और ज़ोर ज़ोर से आंसू गिरने लगे। सच कहूं तो मुझे भी दया आ गयी थी। क्योंकि एक पुरुष ने भी इस स्त्री को मारा था। धीरे धीरे मामला जानने - समझने में आने लगा। मामला कुछ ऐसा था कि, उस पुरुष की पत्नी और यह जिसकी कुटाई हुई, वह स्त्री एक साथ किसी कंपनी में काम कर रही थी। दोनो ही एक दूसरी को पहचानती है, और दोनो ही बनारस तरफ की है। जिसने मार खाया वह स्त्री दूसरी पर आरोप डाल रही थी कि उसके पैसे नही लौटा रही है यह स्त्री।
वो उस घर मे आयी ही इस लिए थी, कि उसे अपने पैसे वापिस चाहिए थे, लेकिन पैसों की जगह मार पड़ी.. अब यह दूसरी स्त्री और उसका पति, इन दोनों का कहना था, कि वो स्त्री गलत नीति की है, उसका पति कुछ काम नही करता इसी लिए यह कम्पनी में नौकरी करती है, और दूसरे पुरुषों के साथ संबंध रखती है। खुद को पच्चीस की उम्र की बताकर लड़को को फंसाती है.. आरोप - प्रत्यारोप बड़े गंभीर हो चले थे। इकट्ठा हुए लोग सारा मामला शांत कराना चाहते थे, लेकिन वे दोनों स्त्रियां बिल्लियों की तरह लड़ने - कूटने पर उतारू थी। एक ने तो पत्थर तक उठा लिया था। लेकिन आसपास की महिलाओं ने रोक लिया।
औरतों की आपसी टकराहट में पुरुषों की विवशता
अब दौर शुरू हुआ भोजपुरी में अपशब्दों का.. प्रियंवदा ! ऐसी गालियां तो शायद पुरुष भी भीड़ में नही उगलते जैसी स्त्रियां बोल जाती है। मैं खुद शर्म अनुभवने लगा था। और वो दोनो ही एक दूसरे को बड़ी बड़ी उपमाओं के साथ दिए जा रही थी। इकट्ठा हुए लोगो मे से पुरुष प्रजाति पीछे हटने लगी, कोई नजर चुराकर घर मे जाने लगे, कोई खाली-फोकट ही फोन चलाने लगे, और मैं खड़ा खड़ा यह सब लोगो का निरीक्षण करता रहा। जिसने मारा था, उस स्त्री की लड़कीं चोरी छिपे वीडियो बना रही थी.. गालियों की बौछार में जब पुरुष प्रजाति हताहत हो चुकी थी, तब महिलाओने ही हरावल संभाली, और कम से कम अपशब्द तो रुकवा ही दिए। जिसने मार खाई थी उसे दो आसपड़ोस की महिलाएं घर जाने का बोलते हुए थोड़े दूर तक छोड़ने चली गयी.. उसके जाते ही यह स्त्री बड़ी जोर जोर से अपनी कथित जीत के चर्चे और स्वयं के निर्दोष होने की बातें बताने लगी, और हो सके उतना जोरो से उस स्त्री के लक्षणों का विवरण देती रही.. इन विवरणों को सुन पाने की क्षमता मुझ में नही थी प्रियंवदा। मैं घर लौट आया।
दिल का सबक: जहां स्त्रियां लड़ें, वहां पुरुष न खड़े हों
एक बात या सबक, स्त्रियां लड़ती है तब पुरुष वहां नही होना चाहिए। उस रणक्षेत्र में पुरुष के लिए दो हानि है। एक है आंसू, और एक है अपशब्द..! पुरुषों के दिल स्त्री के आंसू नही झेल पाते। और पुरुषों के मन स्त्री के मुख से अपशब्द सुन विचलित हो जाते है। यह सिर्फ मुझे लागू नही होता, मैंने देखा, वहां जितने पुरुष मौजूद थे सब ही सकपका गए थे। ऐसी स्थितियों में पुरुष का मस्तिष्क सुन्न पड़ जाता है। उनके मन मे यही बात होती है, "कहाँ फँस गए यार.." मैंने पहले भी स्त्रियों की लड़ाई देखी है। लेकिन उस दिन इतना हेवी फायर नही था गालियों का..! शायद यह भी एक अनकहा सीजफायर है, क्योंकि मुझे लगता है जिसने मार खाई उस स्त्री का पति भी तो मैदान में उतरेगा..
दिनभर तो कुछ बड़ा नही हुआ था प्रियंवदा, लेकिन रात के जो मजे मिले है.. आहाहा ! दिनभर की थकान उतर जाए। चलो अब विदा दो प्रियंवदा..
शुभरात्रि।
(२८/०५/२०२५)
प्रिय पाठक,
यदि दिल की किसी बात ने झनझनाया हो,
या किसी वाक्य ने स्मृति की रग छेड़ी हो...
तो Like ज़रूर कीजिए,
Comment करके बताइए — कौनसी पंक्ति दिल में उतर गई?
और Share कर दीजिए,
किसी उस मित्र के साथ, जो शब्दों का सच्चा सहयात्री हो।
www.dilawarsinh.com | @manmojiiii
– दिलावरसिंह