प्रियंवदा की परछाइयाँ और विकल्पों की उलझन
प्रियंवदा ! किसी की आकांक्षा में उसकी परछाइयां अपने आप प्रकटती है। कुछ चाहिए होता है, कोई लक्ष्य साधना होता है, तब बहुत से विकल्प ऐसे प्रकटते है, जैसे उनका लक्ष्य हमारे लक्ष्य को भटकाना हो। इन विकल्पों में अक्सर मन फंस जाता है, और जो निर्धारित लक्ष्य था, वहां तक पहुँचने में विलम्ब हो जाता है..!
आलस बनाम परिश्रम – सुबह की पहली टकराहट
यह सार था, आज की दिनचर्या का। थोड़ा सरल करना ही पड़ेगा, क्योंकि मुझे भी तो अपने शब्दों का विस्तार करना है। प्रियंवदा ! ब्लोगर पर यह लिखना थोड़ा मुश्किल हो रहा है आज। मेरी टाइपिंग गति के साथ इसका तालमेल नहीं बैठ पा रहा है। फोन के कीबोर्ड में वर्तनी की भूले भी बहुत होती है। हालाँकि कि का की तो मैं यहाँ भी कर देता हूँ। खेर, सुबह सुबह प्रकृति ने ठगा है आज तो। गर्मियों की इस ऋतु में, लगभग छह बजे होंगे, ठण्ड लगने लगी। मुझे छत पर सोना पसंद है, गर्मियों में। चादर ओढ़नी पड़े ऐसी ठण्ड। अब आँखे खुल ही गयी थी, तो मेरा यह मन भी नहीं हुआ कि चलो कुछ शारीरिक श्रम पूर्ण कसरतें कर ली जाए.. क्योंकि मैं तो आलस का आराधक हूँ.. चद्दर ओढ़के सो गया तो सीधे आठ बजे ही उठा हूँ। विकल्प था, परिश्रम या पसरना..!
कृष्ण की चेतावनी और विकल्पों का विस्तार
ऑफिस पहुंचकर पहला काम दिलायरी और प्रियंवदा के पथ पर वाली दोनों पोस्ट्स को शेयर करना होता है। दोपहर तक स्नेही से कुछ बात-चित हुई, और स्नेही ने जाते जाते कहा, 'कृष्ण की चेतावनी' जरूर पढ़ना..! विकल्प हो गया.. अधूरा बांचन पूरा करूँ या पहले यह पढूं? मैंने कृष्ण की चेतावनी पढ़ी। बड़े लयबद्ध शब्द है सारे ही। छंदबद्ध नहीं है, लेकिन एक फिर भी एक लय में। सममात्रिक सा। ऐसे काव्य पढ़ने में और मजा आता है, जो थोड़े तेज गति के हो.. और एक समान लय के। थोड़ा लम्बा काव्य था लेकिन पढ़ लिया। तभी कुछ पहचान वाले ऑफिस में आकर बैठ गए। बैठ क्या गए, च्युइंगम से चिपक ही गये। और उठे लगभग एक बजे..!
महाभारत की ओर बहकता मन – यूट्यूब की चालाकी
मैंने तब तक कुछ काम निपटाए और फोन चलाते बैठा रहा। यूट्यूब को प्राधान्य दिया.. यूट्यूब की फीड में सामने से BR चोपड़ा वाली महाभारत आ खड़ी हुई.. यूट्यूब ने लिंक कर लिया था, कि मैंने गूगल में 'कृष्ण की चेतावनी' सर्च किया था। बड़ा ही सीधा अल्गोरीधम है। जो भी सर्च करते है, उससे ताल्लुक रखती चीजे प्रत्येक एप्लिकेशन में कहीं न कहीं दिख जाएगी। फिर से विकल्प प्रस्तुत हुआ प्रियंवदा, या तो पढ़ो, या फिर देखो.. ऑफिस में और भी लोग थे इस लिए पढ़ना स्किप किया, और एक कान में ब्लूटूथ लगाकर महाभारत देखनी चालु कर दी..! और सालो पुरानी वह टीवी सीरियल शाम के पांच बजे तक देखता रहा..यह विकल्प लक्ष्य से काफी दूर ले गया मुझे।
रश्मिरथी का पुनर्मिलन और विचारों की वापसी
खेर, देर आए दुरस्त आए। वापिस से रश्मिरथी पर पहुंचा..! परशुराम से शिक्षा प्राप्त कर के शाप भी प्राप्त कर चूका था कर्ण। और मैं.. मुझे याद आया, यह तो मैं बाद में भी पढ़ लूंगा, पहले यह लिखना जरुरी है.. पढ़ना और लिखना - फिर से दो विकल्प.. और परिणाम आप पढ़ रहे हो। लगभग द्वितीय सर्ग पूरा कर चूका हूँ। लेकिन बाकी आज नहीं पढ़ा जाएगा..! और सही भी है, क्योंकि पढ़ने का असली मजा शांति पूर्वक ही आता है, यह पढ़ना कोई रेस थोड़े है..! यहां तो दिनभर मशीनों के कर्कश स्वरों में या तो कोई न कोई आकर टोकने के कारण बार बार ध्यान भंग होता रहता है। कल वाली पोस्ट के कुछ अंश इंस्टग्राम पर भी डाले है।
क्या मैं पूरी कर पाऊँगा यह यात्रा?
अच्छे प्रभाव है, लोगो के इस काव्य के बारे में। कोई कहता है, बुक से पढ़ो, कोई कहता है आराम से पढ़ो.. हालाँकि मेरी कोई भी इच्छाएं कम आयु की रही है। और मुझे शंका है, कि मैं इसे पूरी करूँगा भी या नहीं? क्योंकि मुझे कई सारे विकल्प दिख जाते है। अब जिसके सामने रास्थाल पड़ा हो, वो फिर खाने से ज्यादा एक साथ कई सारे रस एक साथ लेने लग जाता है। या यूँ समझिये की एक साथ दो-तीन नौकाओ पर सवार हो जाना.. क्योंकि वो यूट्यूब पर महाभारत देखते देखते मैंने शिखंडी के इतिहास तक पहुँच गया.. बताओ, कृष्ण के शांति-प्रस्ताव से लेकर लगभग ९ एपिसोड्स देख लिए..! ऐसा ही है प्रियंवदा.. मैं भुलक्कड़ भी हूँ। और इस भुलक्कड़पने का विकल्प मुझे नहीं मिल रहा है..!
विदा प्रियंवदा – एक दिन की पूरी कहानी
मैं सच में चाहे कितना ही भुलक्कड़ होऊं, भले ही इस भुलक्कड़पने का मुझे विकल्प न मिला हो। विकल्प तो बहुत आते है ज़िंदगी में, दिशा दे जाते है, तो कुछ भटका जाते है। पर तुम, तुम तो परे हो, प्रत्येक विकल्पों से परे। स्थिर सी बैठी रहती हो, मेरी सोच के किसी शांत कोने में।
चलो फिर, आज इतना बहुत है, विदा दो..
शुभरात्रि।
(३०/०५/२०२५, १९:३६)
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