मैं खुद से मिलने निकला हूँ..!
Date - 02/07/2025Time & Mood - 19:31 || मूड समझ नहीं आ रहा..
उसने सिखाया..
प्रियंवदा ! तुम से बहुत कुछ सीखा हूँ मैं। उन क्लासेज में। जब तुम पढ़ते हुए मग्न हो जाती थी। तुम्हारी आँखों की पुतलियां बड़ी तेज तेज पन्नो पर घुमा करती थी। और तुम्हारा एकाग्र होना.. यह मैंने सीखा है। बस फर्क यह था, तुम्हारा ध्यान बुक्स में होता था, मेरा तुम पर। मैंने उन कागज़ी पन्नो पर तुम जितना ध्यान कभी नहीं दिया। तभी तो रिजल्ट्स में तुम मुझे पीछे छोड़ चुकी थी। और मैं तो वैसे भी काफी पीछे छूट गया।
तुमने सिखाया, मुस्कुराते कैसे है। मुस्कुराने से तात्पर्य है, एक वो मंद मुस्कान होंठो पर बसाना, जिससे फोटो भी अच्छी आती है। पता नहीं क्यों, लेकिन मैं मुस्कुराना भूल गया। जब से तुम से बिछड़न हुई। ऐसा ही तो होता है, प्रत्येक शिक्षा कभी न कभी तो भूल ही जाता है हर कोई। तुमसे सीखा मैने कैसे समयानुसार चलना है। शायद आवाज को धीरी रखना भी तुम्हारी ही देन है। मैं आजतक अपनी आवाज बुलंद नहीं कर पाया। हो जाती, तुम साथ रहती। लेकिन तुम साथ होती, तो आज यह शब्द तुम्हे इतना कुछ न कह पाते। वे पड़े रहते, या फ़टे कागज़ों के साथ जल जाते, या कहीं भूगर्भ में दब जाते।
एक सवाल :
उन शिक्षाओं को मैं भूल कैसे सकता हूँ? मुस्कुराना भी..?
सबक :
आज जब बात तुमसे सिखने की आयी, तो अभी मेरे होंठो पर उसी अंदाज में मुस्कान है, जो कभी तुम्हे देखते हुए प्रकटती थी।
अंतर्यात्रा :
वे शिक्षाएं सदा के लिए ही है। बस उन पर कुछ विस्मृतियों की धुल चढ़ बैठी थी। झटकते ही सारा वाकिया साफ हो गया।
स्वार्पण :
उस मुस्कान को तुमने तो संभाल रखी है। लेकिन मेरी समय समय पर आतीजाती रहती है।
हँसना भी बिलकुल सरल काम तो नहीं है प्रियंवदा..! कुछ मेहनत तो दिल को भी लगती है।
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