मैं खुद से मिलने निकला हूँ..! || Day 12 || जो मैं कह न सका..

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मैं खुद से मिलने निकला हूँ..!



Date  - 27/06/2025
Time & Mood - 12:33 || अकेलेपन के आलिंगन में..

जो मैं कह न सका.. 

हाँ ! जानता हूँ, सताइश दिनों के अंतराल में यह पत्र लिख रहा हूँ। पर क्या करता.. तुम्हारे ख्यालो में खोया हुआ मैं कुर्सी पर बैठा ही रहता था। तो थोड़ी स्वास्थ्य संबंधित समस्याओ में फंस गया था। अब थोड़ा ठीक है, लेकिन थोड़ी थोड़ी देर में, यह कुर्सी छोड़ देता हूँ। लेकिन जाने अनजाने में भी यह मन कभी भी तुम्हे नहीं छोड़ पाया। कैसे छोड़ देता? उसे हक नहीं था। 


मैं कभी तुमसे नहीं कह पाया, तुम्हारे नाम और तुम्हारी आवाज़ में कितनी साम्यता है। दोनों एक से ही मालुम होते थे मुझे। ऐसा लगता था जैसे तुम्हे सुनता ही रहूँ, सदा के लिए। फिर तुम भले ही डांट दो मुझे। मेरी किसी उस गलती पर, जो मुझसे हुई ही न हो। ऐसा नहीं था कि मैने कभी कहा नहीं, कहा था, अपने मन में। पर वह ध्वनि तुम तक नहीं पहुँच पायी। या मैं तुम तक नहीं पहुंचा पाया।


तुम्हारे चेहरे की रौशनी में मैं हमेशा सराबोर रहता था। ठीक तुम्हारे सामने मैं तुम में ही खो जाया करता था, पर अफ़सोस.. तुम्हे यह अंदाज़ कैसी आता..? तुम्हे बता पाने ही.. मेरा भयस्थान था। कईं शंकाएं थी, कि कहीं मैं यह तुम्हे देखने सुनने से भी वंचित हो जाऊं। तुमसे कभी यह भी कहाँ कह पाया था, कि मैं तुम्हे उतना पसंद करता हूँ, जितना चंद्र को चकोर..! लेकिन हाँ ! मुझे आज यह अफ़सोस भी नहीं है, कि मैंने तुमसे कभी कहा नहीं। क्योंकि मैंने तुम्हे जितना निहारा है, जितना तुम्हे सुना है.. वह सदा के लिए अंकित है, मेरे ह्रदय के बगीचे में, सुगंध के स्वरुप में।


एक सवाल :

उस स्वर, उस स्वरुप को मैं जगतसुंदर के बाद का प्रथम क्रमांक क्यों न दूँ? मेरे लिए तो वही सर्वश्रेष्ठ सुंदरता, और सर्वश्रेष्ठ स्वर था।


सबक :

सुंदरता का एक मापदंड होता है। लेकिन तुम उस मापदंड की क्षमता से परे हो। 


अंतर्यात्रा :

ब्रह्माण्ड में से कौनसा रूपक तुम्हे दूँ, कौन सी संज्ञा तुम पर सुहाएगी, मैं नहीं जानता। क्योंकि मैने तुम्हारी तुलना करते हुए सर्व सामान्य रूप से लेकर सर्वदा श्रेष्ठ उपमा दी होगी।


स्वार्पण :

मेरे उस ह्रदय के उपवन के कभी बादल छाते है, तो वहां बिजलियोंकी गड़गड़ाहट में तुम्हारा हास्य सुनाई पड़ता है मुझे। 


 हर बात कह देनी, या बता देनी जरुरी नहीं, उसे संभाल कर भी रखी जा सकती है..

 

वही,
जो नहीं जानता, तुम्हारे ह्रदय में उन दिनों क्या था..


***


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