"जगन्नाथ जी की लू, प्लेन क्रैश की विभीषिका और ग्राउंड का प्रेम-नाटक" || दिलायरी : १२/०६/२०२५

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जगन्नाथ जी को भी लग गई लू: श्रद्धा बनाम यथार्थ


Jay Jagannath..!

    प्रियंवदा ! इस गर्मी में तो जगन्नाथ जी को भी लू लग गयी कल। वैसे तापमान का पारा बड़ी तेजी से चढ़ा है। ac तो इसबार इस गर्मियों में मैंने एक बार भी नही चलाया है। बस पिछले रविवार कार ट्रेवलिंग की थी सिर्फ वह एक दिन छोड़कर। एक बात तो अच्छे से समझ आ गयी, बगैर ac के रहने से रात की नींद और अच्छी आती है। जब पिछली गर्मियों में दिनभर ac में पड़ा रहता था तो रात की नींद टूट जाया करती थी। और वैसे भी दुनिया कौन सी सारी ही ऐसी में बैठती है, मजदूर तो दोपहर को काम भी करते है। शरीर ऐसा ही होना चाहिए, हर ऋतु में तपा हुआ। एक बात बड़ी अच्छी है, मेरे शहर की। गर्मियां बहुत ऊंचे पारे पर नहीं चढ़ती। इस गर्मियों में तो वाकई मैंने पारा 40 के ऊपर जाते नही देखा। लेकिन खामी भी है, उमस के कारण 42 से 45 का अनुभव होता है। 


सुबह की दिनचर्या और आलस से संघर्ष

    खेर, आजकल सुबह छह बजे जागकर मैदान में वाकिंग करता हूँ, 200 मीटर दौड़ भी लगाता हूँ, उसके बाद दसेक सूर्य नमस्कार, और फिर कुछ अन्य स्ट्रेचिंग.. सीमेंट के ब्लॉक से डम्बल भी लगाता हूँ.. जुगाड़ू आदमी चंद दिनों के उत्साह में खर्चा नही कर लेते डम्बल्स का। हाँ ! वो मुग्दल की रील आती है तो खर्चा करने का मन जरूर करता है। लेकिन तुरंत वास्तविकता में आ जाता हूँ। मैं यह सब कुछ दिनों तक करता हूँ, और उसके बाद वापिस अपने आराध्य आलस के पास लौट जाता हूँ। घर से तैयार होकर, सीधे जगन्नाथ, दुकान और ऑफिस। मेरे साथ हर बार होता है, हर बार मैं भूल जाता हूँ। आज जब मंदिर में दर्शन करने गया तो जगन्नाथ जी, बलभद्र जी और सुभद्राजी तीनो गायब.. गर्भगृह के बाहर नन्ही मूर्तियां है, उनपर भी पर्दा था.. मुझे याद आया, जरूर प्रभु बीमार हुए होंगे। प्रतिवर्ष होते है। पंडित से पूछा, भगवन को कब ले गए? बोले कल। तो मैंने कहा, कल तो दर्शन किये थे मैंने। तो बोले दसेक बजे।


    प्रियंवदा ! श्रद्धा हो तो भगवान भी मनुष्य जैसा व्यवहार करते है। रोग मनुष्यों को होता है। दैवीय देहों में रोग पास भी नही भटकता। पंडित बड़ी दृढ़ता पूर्वक कहता है, 'सच मे भगवन की मूर्तियां गर्म होती है।' इस मामले में मैं कुछ लिखूंगा तो नास्तिक लगूंगा। लेकिन उनकी श्रद्धा को नमस्कार। मैं ऑफिस पहुंचा, आज दिनभर लाइट ऑफिस पर अप-डाउन होती रही। उसके कारण बार बार इंटरनेट आ-जाता रहा। कल की दिलायरी पोस्ट की, और शेयर की। 


हादसा: जब आसमान से आग गिरी

    दोपहर को एक लड़का प्रिंटआउट लेने आया था, उसने पूछा, 'बापु ! वो ढाईसो में से कोई बचा होगा? आपको क्या लगता है?' मुझे कुछ समझ नही आया। तो उसने बताया, अहमदाबाद में एक फ्लाइट क्रेश हो गयी। उसके जाते ही JIOTV पर समाचार लगाया, वहां लाइव कवरेज इसी पर चल रही थी। ट्विटर पर इस अकस्मात को लागू हैशटैग ट्रेंड पर था। फ्लाइट लगी भी बड़ी खतरनाक थी। टेकऑफ करके एक हॉस्पिटल की बॉयज होस्टल में जा टकराई। कितना दर्दनाक रहा होगा। और कठिन काम तो यह था कि इतने गर्म कुदरती तापमान के बीच, क्रेश हुए विमान के ईंधन से उठी लपटों को शांत करने के लिए फायर ब्रिगेट, NDRF, और आर्मी के जवान.. जलते लोहे को बुझाने में लगे थे। मलबा हटा रहे थे। गर्मियों में धूप में रखी बाइक पर बैठना कितना मुश्किल होता है, यहां तो ऐसी स्थिति में काम करना था, काम भी क्या कहूँ, सेवा करनी थी। 


    कैसी विचित्र अनहोनी थी यह, कोई युवक होस्टल में भोजन ले रहा होगा, या आराम कर रहा होगा, और अचानक से धु-धु करती आग घेर ले, सीमेंट का मलबा गिरे..! कल्पना भी मुश्किल है। पत्ते का फोन आया, बोला तुम्हारा वो पिछला मुख्यमंत्री भी था। हाँ! रुपाणी साहब भी नही रहे। मैं अक्सर उनकी हिंदी, उनका बेबाक वर्तन पसंद करते हुए 'विजु काका' कहकर कुछ मजाक लिखा करता था। मेरी तो चाह थी कि वे फिर से मुख्यमंत्री बने। वे भी उसी विमान में थे। और इस दुर्घटना में स्वर्गवासी हुए। अभी समाचार में देखा कि एक व्यक्ति सकुशल रहा इस कल्पान्तकारी दुर्घटना से। सच मे इसने मौत को छूकर वापिस आकर दिखाया है। वो बात बड़ी सच है, भाग्य होता है। मृत्यु भाग्य के आधीन है। वरना इस हादसे के वीडियो देखकर यकीन करना बड़ा मुश्किल है। भगवन सभी मृतात्माओं को परम शांति दे।


इस्तीफे की राजनीति और न्यूज चैनलों की चीखें

    ऐसी घटनाओं में कुछ लोग तत्काल मंत्रियों से लेकर प्रधानमंत्री का इस्तीफा मांग लेते है। जैसे इस्तीफ़ा बस एक कागज का टुकड़ा हो। इस्तीफ़ा जिम्मेदारियों के भार से तुरंत मुक्त करता है। क्या किसी आपातकालीन स्थिति में एक और आपातकाल चाहिए, इन इस्तीफा-मंगुओ को? पहले कारण तो जानो.. या बस मांग करनी आती है? वैसे पिछले कुछ दिनों में न्यूज़ वालो ने खूब पैसा छापा होगा, पहले पाकिस्तान, फिर यह सोनम-राजा, और अब यह.. इनका चिल्लाना चालू ही रहता है। चीख चीख कर खबरें सुनाते है। जैसे शांत गले से बोला गया वाक्य खबर में न परिणमता हो। 


प्रेम या प्रवंचना? ग्राउंड में इमोशनल ब्लैकमेल

    फिलहाल ग्राउंड में जब मैं पहुंचा तो एक युवक फोन पर जोर जोर से किसी से बातें कर रहा था। इतनी जोर से, जैसे किसी को धमका रहा हो। मैं पास पहुंचा, तो पता चला वह फोन पर अपनी प्रेयसी से बात कर रहा था, और उसे मिलने के लिए बुला रहा था। अगली पारिवारिक बंधनो में इस समय - रात के साढ़े नौ - कैसे आए? इस लिए वह मना कर रही थी। और यह गधा इमोशनल डेमेज दे रहा था, बोला, "मैं भूखा प्यासा यहीं बैठा रहूंगा, जब तक तू मिलने नही आती.." कुछ देर बात बन्द रही, थोड़ी देर बाद फिर से इसने फोन मिलाकर कहा, "मुझे चक्कर आ रहे है, प्यास लगी है। मिलने आ रही है या नही? मैं यही बैठा रहूंगा।" अब मैंने इस फालतू नौटंकी से परेशान होकर उसीके और कदम बढ़ाए। उसने मुझे आता देख, अपना स्वर धीमा कर लिया। फिर मैंने वाकिंग के बहाने कुछ देर उसे ही घूरते हुए उसके आसपास वाकिंग की। तो वह अपनी फटीचर स्कूटी लेकर ग्राउंड से बाहर निकल गया। 


रात की वॉक में दिखे असली चेहरे

    कितना आसान है न एक लड़की को इमोशनल ब्लैकमेल करना। डींगें हांक रहा था, पानी नही पिऊंगा, प्यास बैठा रहूंगा.. और ग्राउंड से निकलते ही पहले दुकान पर गया, और पानी और सिगरेट दोनो पी उसने। सब बरगलाने के टेक्टीक्स है। कोई प्यासा नही मरता अपनी प्रेमिका के लिए। कोई प्रेमिका सच्ची नही होती..! सब कुछ एक मिलन के लिए रचा जाता नाटक है। तृप्ति के लिए किया गया एक त्राटक। जहां एक फटीचर और असामर्थ्यवान पुरुष डींगें हांकता है, चांद तारे तोड़ लाने की, भूखा-प्यासा रहने की, और प्रेयसी पर अपने अधिकार की.. सामने वह प्रेयसी भी अपने मोती से आंसू बहाती है, हिचकियाँ भरती है, लाचारी दर्शाती है, और ललचाती है.. और यह सब नाटक को प्रेम के नाम मे खपाते है। दोनो ही एक दूसरे को झूठ को, आडंबर को, ब्रह्मसत्य मानते है, दोनो ही इस कथित प्रक्रिया को प्रेम कहते है, और अपना प्रेम उससे अधिक है यह विश्वास दिलाने की कोशिश करते है।


    और ऐसे लड़के, जो भावनात्मक तरीके से बरगलाने की कोशिश करते है, उनसे तो सदा सावचेत रहना चाहिए। इनकी स्कूटी में डला तेल उधारी के पैसों का होता है, लेकिन प्रेम कहाँ पैसे देखता है.. वो तो झोंपड़े को महल समझता है, और बासी-सूखी रोटी को मालपुआ..!


    शुभरात्रि।

    (१२/०६/२०२५)


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